शरद कटियार
मेघालय की वादियों में एक नवविवाहित युवक की हत्या (murder) और उसकी पत्नी के प्रेमी के साथ कथित साजिश के खुलासे ने पूरे देश को झकझोर दिया है। जिस ‘सोनम’ (Sonam) ने अपने परिवार के सम्मान के नाम पर विवाह किया, उसने मात्र चार दिन में अपने पति ‘राजा रघुवंशी’ (Raja Raghuvanshi)की हत्या करवा दी। हत्यारों की सूची में उसका प्रेमी ‘राज कुशवाहा’ और उसके दो साथी भी शामिल हैं। लेकिन यह घटना सिर्फ एक क्राइम स्टोरी नहीं है—यह आधुनिक भारत के सामाजिक ढांचे, प्रेम संबंधों, माता-पिता की भूमिका, महिला सशक्तिकरण के मायने और कानून के संभावित दुरुपयोग पर एक गहन सवाल भी खड़ा करती है।
राजा रघुवंशी, एक सफल, आत्मनिर्भर और प्रतिष्ठित युवा व्यवसायी थे। हाल ही में उनकी शादी सोनम नाम की युवती से हुई थी। विवाह के मात्र चार दिन बाद, सोनम ने अपने पूर्व प्रेमी राज कुशवाहा को लोकेशन भेजी, जहां राजा रघुवंशी अपने हनीमून पर पत्नी के साथ ट्रैकिंग पर निकले थे। मेघालय पुलिस के मुताबिक, पहले राजा को खाई में धक्का देने की योजना थी, जो विफल रही। इसके बाद सोनम के प्रेमी और उसके दो साथियों ने मिलकर राजा रघुवंशी की पीट-पीट कर हत्या कर दी, और फिर शव को खाई में फेंक दिया। सोनम मौके पर मौजूद थी, पर उसने न हत्या रोकी, न सहायता मांगी—बल्कि साजिश की सूत्रधार बनी रही।
सवाल, जो चुभते हैं
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक संदेश तेजी से वायरल हो रहा है—
> “ये नए जमाने की आज़ाद नारियाँ हैं, जो अपने माता-पिता की पसंद के खिलाफ जाकर शादी करती हैं और फिर निर्दोष पति को मरवा देती हैं।”
> यहाँ सवाल यह नहीं कि महिला आज़ाद क्यों है—बल्कि यह कि आज़ादी का इस्तेमाल किसलिए हो रहा है?
> क्या महिला सशक्तिकरण का अर्थ सिर्फ अधिकार है? कर्तव्यों की कोई भूमिका नहीं?
> महिला सशक्तिकरण: शक्ति या हथियार?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार:
2023 में भारत में महिलाओं द्वारा दर्ज कराए गए घरेलू हिंसा के मामलों में से 18% शिकायतें बाद में झूठी पाई गईं। धारा 498A के तहत दर्ज मुकदमों में से लगभग 20% मामले अदालतों द्वारा खारिज कर दिए गए। हर साल लगभग 1,00,000 पुरुष झूठे दहेज या उत्पीड़न मामलों में फँसाए जाते हैं, जिनमें से अधिकांश निर्दोष साबित होते हैं। इन आंकड़ों का उद्देश्य महिला अधिकारों को कमजोर करना नहीं, बल्कि यह दिखाना है कि अगर कानून का संतुलन नहीं रखा गया, तो समाज असंतुलित हो जाएगा।
भारत में अब भी लगभग 90% विवाह माता-पिता की सहमति और सामाजिक रीति-रिवाजों के तहत होते हैं। लेकिन जब युवाओं का प्रेम संबंध पहले से हो और उसे छिपाकर विवाह किया जाए, तो परिणाम इसी तरह की त्रासदी बन सकता है। ऐसी घटनाएँ इस बात को दोहराती हैं कि,माता-पिता को युवाओं से संवाद बढ़ाना चाहिए। युवतियों को विवाह से पूर्व अपने प्रेम संबंधों की पारदर्शिता रखनी चाहिए।समाज को ‘बेटियों की आज़ादी’ को अधिकार और उत्तरदायित्व दोनों के रूप में देखने की ज़रूरत है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार:सोनम और राज कुशवाहा के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध थे। सोनम ने अपने माता-पिता के दबाव में विवाह किया, लेकिन मन में प्रेमी के लिए स्थान बरकरार रहा। विवाह के बाद भी वह लगातार प्रेमी से संपर्क में रही। शादी के चौथे दिन ही हत्या की योजना बनी। ये सिर्फ भावनात्मक धोखा नहीं था, यह एक पूर्व नियोजित आपराधिक षड्यंत्र था। ऐसे मामलों में ‘प्रेम’ शब्द की आड़ में हिंसा और अपराध को सही ठहराना समाज को गलत दिशा में ले जा रहा है।
इस घटना ने कई ज़िम्मेदार वर्गों को कठघरे में खड़ा किया है:
सशक्त होना अलग है और अपराधी बनना अलग। कानून का समर्थन तभी तक है, जब तक आप निर्दोष हैं। अगर आपकी आज़ादी किसी की जान ले रही है, तो वह अपराध है। बेटियों के विवाह को लेकर आज भी अनेक माता-पिता उन्हें सम्पत्ति या इज्जत का विषय मानते हैं। बिना उनकी राय जाने, उन्हें विवश कर विवाह कराना सामाजिक हिंसा की एक रूपरेखा है। राज कुशवाहा जैसे युवाओं की मानसिकता भी सवालों में है, जो प्रेम के नाम पर हत्या करने को तैयार हो जाते हैं। प्रेम कभी हत्या नहीं सिखाता—वह सहनशीलता सिखाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), धारा 120B (षड्यंत्र) और धारा 34 (साझा मंशा) के तहत सोनम, राज कुशवाहा और उसके साथियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है। अगर हत्या की पूर्व नियोजित साजिश साबित हो जाती है, तो अधिकतम सज़ा मृत्यु दंड या आजीवन कारावास हो सकती है। इस केस को लेकर सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान और असंवेदनशील टिप्पणियों ने एक और समस्या उजागर की है—विचारों में संतुलन की कमी। ‘सभी महिलाओं को झूठा’, या ‘हर प्रेमी को हत्यारा’ मानना उतना ही खतरनाक है जितना कि अपराध को प्रेम कहकर ढकना।
मीडिया का काम है—तथ्यों के आधार पर रिपोर्टिंग करना। महिला और पुरुष दोनों पक्षों के अधिकारों की व्याख्या करना। कानून की प्रक्रिया का सम्मान करना। राजा रघुवंशी अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनका परिवार टूट चुका है। सोनम अब हत्या की साजिश में नामजद आरोपी है। राज कुशवाहा की ज़िंदगी भी जेल की सलाखों के पीछे जाने वाली है। यह केस प्रेम, विवाह, सशक्तिकरण, और कानून—all four—की सीमाओं को दोबारा परिभाषित करने की चेतावनी है।
समाज को इस केस को सिर्फ “क्राइम न्यूज” की तरह नहीं देखना चाहिए। यह एक नव सामाजिक विमर्श की शुरुआत होनी चाहिए:
जहाँ बेटियों की आवाज सुनी जाए, लेकिन उनके अपराधों पर भी पर्दा न डाला जाए। जहाँ माता-पिता बच्चों से संवाद करें,और सबसे महत्वपूर्ण—जहाँ सशक्तिकरण का मतलब शक्ति का संतुलित और जिम्मेदार प्रयोग हो, न कि उसे हथियार बना दें।
शरद कटियार
प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया