– भारत की आज़ादी से लेकर अब तक मुसलमानों ने निभाया है देश के प्रति वफादारी का फर्ज़,
– फिर क्यों वक्फ की संपत्तियों पर सवाल और ट्रस्टों की पारदर्शिता पर चुप्पी?
लखनऊ। भारत एक धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं से भरा हुआ लोकतंत्र है। लेकिन जब किसी विशेष वर्ग या समुदाय को निशाना बनाकर कोई कानून बनाया जाता है या उसमें संशोधन होता है, तो सवाल उठते हैं – और उठने भी चाहिए। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा वक्फ एक्ट में संशोधन को लेकर जो हलचल है, वह केवल कानूनी नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है।
क्या यह बदलाव जरूरी था या किसी एजेंडे के तहत लाया जा रहा है?
भारत में वक्फ संपत्तियाँ वो जमीनें, इमारतें और संसाधन हैं, जिन्हें मुसलमानों ने समाज के कल्याण के लिए दान किया। इन संपत्तियों की संख्या लाखों में है – 2011 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 4.9 लाख वक्फ संपत्तियाँ हैं, जिनकी कीमत लाखों करोड़ में आँकी जाती है। लेकिन इसी तरह:
भारत में 3,00,000 से ज्यादा हिंदू ट्रस्ट पंजीकृत हैं,केवल तिरुपति मंदिर में सालाना 3,000 करोड़ से ज्यादा चढ़ावा आता है,शिर्डी साईं बाबा मंदिर, सिद्धिविनायक, वैष्णो देवी, काशी, और अन्य मंदिरों की संपत्तियाँ हजारों करोड़ में हैं।
लेकिन इन संस्थाओं की पारदर्शिता, जमीनों की जानकारी, आमदनी और खर्च पर सरकारी जांच या निगरानी बेहद सीमित है।
तो क्या केवल मुसलमानों की संपत्तियों पर ही सवाल उठाए जाएंगे?
अगर वक्फ बोर्ड के तहत संपत्तियों का दुरुपयोग होता है तो सुधार लाना सही है। लेकिन क्या यही बात हिंदू, जैन, सिख और अन्य धर्मों के ट्रस्टों पर लागू नहीं होनी चाहिए? अगर पारदर्शिता चाहिए, तो वह सभी धार्मिक संस्थाओं पर एक समान रूप से लागू होनी चाहिए।
भारत के इतिहास में मुसलमानों की भूमिका को कभी भी नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता ,1947 के बंटवारे के बाद भी करोड़ों मुसलमानों ने पाकिस्तान नहीं, भारत को चुना।स्वतंत्रता संग्राम में अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान, अब्दुल बारी, मौलाना आज़ाद जैसे कई नाम इतिहास में दर्ज हैं।
भारतीय सेना, आईएएस, आईपीएस, वैज्ञानिक संस्थानों, मीडिया और खेलों में आज भी मुस्लिम समाज योगदान दे रहा है।
भारत के संविधान, लोकतंत्र और संस्कृति की रक्षा में मुसलमान हमेशा साथ खड़े रहे हैं।
कई राज्यों में वक्फ संपत्तियों से मदरसों का संचालन होता है
ग़रीबों के लिए कब्रिस्तान, स्कूल, अस्पताल, छात्रावास बनाए गए हैं
कई बार इन्हें अवैध कब्जे से बचाने के लिए कोर्ट में लंबी लड़ाइयाँ भी लड़ी गई हैं।
वक्फ एक्ट की निष्पक्ष समीक्षा हो – समुदाय की भागीदारी के साथ।सभी धार्मिक ट्रस्टों की संपत्तियों की पारदर्शी ऑडिट हो। कोई भी संशोधन संविधान की मूल भावना के खिलाफ न हो।
आज भारत को बांटने की नहीं, जोड़ने की जरूरत है। अगर किसी समुदाय के दान को संदेह से देखा जाएगा, तो यह केवल विश्वास की नींव को कमजोर करेगा। एक सच्चा लोकतंत्र वही होता है, जहां हर धर्म, हर नागरिक, और हर संस्था को बराबर का सम्मान और जवाबदेही दी जाए।