असाधारण साहस और बलिदान का प्रतीक है। जिस धरती ने दुधमुंहे भरत को शेर के दांत गिनते देखा, नचिकेता को यमराज से ब्रह्म विद्या का ज्ञान प्राप्त करते देखा, और ध्रुव तथा प्रह्लाद जैसे भक्ति के प्रतीक देखे, उसी भूमि पर तीन शताब्दी पहले गुरु गोबिंद सिंह के चार पुत्रों ने अपने त्याग और शौर्य से इतिहास रच दिया। ये चार बाल वीर – अजीत सिंह (17 वर्ष), जुझार सिंह (14 वर्ष), जोरावर सिंह (9 वर्ष), और फतेह सिंह (7 वर्ष) – भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अमर बलिदान देने वाले नायक बने।
खालसा पंथ का इतिहास गवाह है कि गुरु गोबिंद सिंह ने मुगल शासक औरंगजेब से धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए 14 युद्ध लड़े। इनमें 1704 में हुए चमकौर और सरहिंद के युद्ध में सिख योद्धाओं ने अभूतपूर्व वीरता दिखाई। चमकौर के युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में मात्र 43 सिख सैनिकों ने मुगलों की 10 लाख की सेना का सामना किया और विजय प्राप्त की। यह घटना सिख साहस और बलिदान का अमर प्रतीक बन गई। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई, “सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियां ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबे गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।”
गुरु गोबिंद सिंह का उद्घोष “सूरा सो पहचानिए, जो लड़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे, कबहू न छोड़े खेत” भारतीय संस्कृति और धर्म के लिए सर्वस्व त्यागने के संकल्प का प्रतीक है।
इतिहास के अनुसार, चमकौर साहिब के युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह के बड़े पुत्र अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। वहीं छोटे पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह को वजीर खान ने धोखे से पकड़ लिया और इस्लाम कबूलने के बदले जीवनदान की पेशकश की। लेकिन इन बाल वीरों ने धर्म की रक्षा के लिए दीवार में जिंदा चुनवाया जाना स्वीकार किया और अमर हो गए। यह घटना 26 दिसंबर 1704 को घटी, जो आज भी शौर्य और धर्मनिष्ठा की पराकाष्ठा मानी जाती है।
अत्यंत खेद का विषय है कि आजादी के बाद कांग्रेसी शासन के दौरान इस गौरवशाली अध्याय को इतिहास के पन्नों से हटा दिया गया। यह वामपंथी इतिहासकारों की एकपक्षीय सोच और झूठे लेखन का परिणाम था, जिसने भारतीयों को उनकी विरासत से वंचित कर दिया। परंतु आज का नया भारत इन भूलों को सुधार रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस (Veer Bal Diwas) के रूप में मनाने की घोषणा की, ताकि गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों के जीवन संदेश को हर बच्चे तक पहुंचाया जा सके। इसका उद्देश्य बच्चों में देशभक्ति और साहस की भावना को प्रोत्साहित करना है।
इस वर्ष वीर बाल दिवस की थीम को और अधिक व्यापक बनाया गया है। गणतंत्र दिवस के बजाय अब वीर बाल दिवस पर बहादुर बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। आज (26 दिसंबर) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में आयोजित समारोह में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्राप्त 17 बच्चों को सम्मानित करेंगी। ये पुरस्कार न केवल वीरता, बल्कि कला, संस्कृति, विज्ञान, समाजसेवा, खेल और पर्यावरण के क्षेत्र में योगदान के लिए भी दिए जाएंगे।
भारत के इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह और उनके पुत्रों का बलिदान सदा अमर रहेगा। वीर बाल दिवस उनके महान त्याग की स्मृति और प्रेरणा का प्रतीक है।