आज के समाज में शिक्षा को सबसे बड़ी सफलता की कुंजी माना जाता है। माता-पिता और शिक्षक अक्सर इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चों को अधिक से अधिक पढ़ाई करनी चाहिए ताकि वे अच्छे अंक प्राप्त करें, प्रतिष्ठित कॉलेजों में प्रवेश पाएं, और अपने करियर में ऊंचाई तक पहुंच सकें। हालांकि, यह विचारधारा अधूरी है। सिर्फ पढ़ाई-लिखाई से किसी व्यक्ति का अच्छा इंसान बनना संभव नहीं है। इसके लिए परवरिश और संस्कार (Culture) उतने ही जरूरी हैं जितना शिक्षा।
शिक्षा और संस्कार का परस्पर संबंध
शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान प्रदान करती है, लेकिन संस्कार उसे उस ज्ञान का सही उपयोग करना सिखाते हैं। जब ज्ञान और संस्कार का संतुलन होता है, तभी एक व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी और नैतिक रूप से सुदृढ़ बन सकता है। केवल पढ़ाई से कोई डॉक्टर, इंजीनियर या वैज्ञानिक तो बन सकता है, लेकिन वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी तभी निभा पाएगा जब उसमें सही संस्कार होंगे।
परवरिश केवल बच्चों की देखभाल करना ही नहीं है, बल्कि उन्हें अच्छे-बुरे का भेद समझाने और सही मूल्य प्रदान करने की प्रक्रिया है। घर में माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की भूमिका बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में अहम होती है। एक बच्चे का आचरण उसके माता-पिता की सोच और व्यवहार का प्रतिबिंब होता है। अगर माता-पिता खुद सच्चाई, ईमानदारी और मेहनत के आदर्शों पर चलेंगे, तो बच्चे भी वही सीखेंगे।
संस्कार वे नैतिक मूल्य हैं, जो व्यक्ति को जीवन में सही और गलत के बीच अंतर करना सिखाते हैं। ये किसी व्यक्ति को यह समझने में मदद करते हैं कि सफलता केवल पैसे या प्रतिष्ठा में नहीं है, बल्कि यह दूसरों के प्रति दया, सहानुभूति और सहायता में भी है।
संस्कार व्यक्ति को यह सिखाते हैं कि:सच बोलना और गलत के खिलाफ खड़ा होना क्यों महत्वपूर्ण है।
अगर कोई व्यक्ति बहुत पढ़ा-लिखा है, लेकिन उसमें दया, सहानुभूति और ईमानदारी का अभाव है, तो उसकी शिक्षा अधूरी मानी जाएगी।
आज का युग प्रतिस्पर्धा का है। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा सबसे बेहतर बने। इस दौड़ में अक्सर बच्चों के चरित्र निर्माण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। उन्हें परीक्षा में अच्छे अंक लाने, टॉप करने और बड़ी नौकरियां पाने के लिए प्रेरित किया जाता है, लेकिन नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता। परिणामस्वरूप, बच्चे भले ही करियर में सफल हो जाएं, लेकिन उनमें जीवन के लिए आवश्यक संवेदनशीलता और नैतिकता की कमी रह जाती है।
संस्कार और परवरिश के अभाव में शिक्षा व्यक्ति को अहंकारी बना सकती है। एक ऐसा व्यक्ति, जो केवल अपनी महत्वाकांक्षाओं के बारे में सोचता है और दूसरों के दुख-दर्द को नजरअंदाज करता है, समाज के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
उदाहरण के लिए, एक कुशल डॉक्टर, जो केवल पैसे कमाने के लिए काम करता है और रोगियों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता, वह अपने ज्ञान का सही उपयोग नहीं कर पाएगा। इसी तरह, एक सफल बिजनेसमैन, जिसमें नैतिकता की कमी है, समाज को धोखा देकर या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर अपनी संपत्ति बना सकता है।
परिवार किसी भी बच्चे का पहला विद्यालय होता है। माता-पिता और दादा-दादी के साथ बिताया गया समय बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। परिवार के सदस्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दें, जो उन्हें समाज का अच्छा नागरिक बनाने में मदद करें।बच्चों के साथ समय बिताएं और उनके साथ संवाद करें। उनकी भावनाओं और विचारों को समझें। बच्चे वही सीखते हैं, जो वे अपने आसपास देखते हैं। माता-पिता को अपने आचरण से बच्चों को सही मार्ग दिखाना चाहिए। बच्चों को ईमानदारी, मेहनत, सहानुभूति और दया के महत्व को समझाएं। बच्चों को सिखाएं कि उनका जीवन केवल उनके लिए नहीं, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी है।
हमारे शिक्षा प्रणाली में भी नैतिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। स्कूलों में केवल किताबों का ज्ञान देने के बजाय, बच्चों को नैतिकता, सहानुभूति और मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। इसके लिए विभिन्न गतिविधियों और सत्रों का आयोजन किया जा सकता है, जैसे:सामुदायिक सेवा में भागीदारी।
नैतिक कहानियों और जीवन के अनुभवों पर आधारित चर्चा। सहनशीलता और विविधता को समझाने के लिए कार्यशालाएं।
धर्म और संस्कृति का योगदान
हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथों में नैतिकता और संस्कारों के अनेक उदाहरण हैं। भगवद्गीता, रामायण, और महाभारत जैसे ग्रंथ न केवल आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाते हैं, बल्कि जीवन जीने की सही दिशा भी दिखाते हैं। इनका अध्ययन बच्चों के व्यक्तित्व विकास में सहायक हो सकता है।
एक अच्छा इंसान ही समाज को सही दिशा में ले जा सकता है। आज जब हमारा समाज भौतिकता, असहिष्णुता और आत्मकेंद्रितता के जाल में फंसा हुआ है, तो अच्छे संस्कार और परवरिश से सुसज्जित व्यक्तियों की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। ऐसे व्यक्ति ही समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
अच्छा इंसान बनने के लिए पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ परवरिश और संस्कार का होना अत्यंत आवश्यक है। एक संतुलित व्यक्तित्व वही होता है, जो शिक्षा और नैतिक मूल्यों का सही मिश्रण हो।
माता-पिता, शिक्षक और समाज को यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि वे बच्चों को न केवल शिक्षित करें, बल्कि उनमें ऐसे संस्कार डालें, जो उन्हें अच्छा इंसान बना सकें। तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे, जहां हर व्यक्ति न केवल खुद के लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी जीने की प्रेरणा ले सके।
“आखिरकार, इंसान की पहचान उसकी डिग्री से नहीं, बल्कि उसके चरित्र और व्यवहार से होती है।”