20.5 C
Lucknow
Wednesday, December 4, 2024

सत्ता का आनंद ले रही यूपी पुलिस: न्यायपालिका की सख्त टिप्पणी और चिंताएं

Must read

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) के कामकाज पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि “यूपी पुलिस अपनी शक्ति का आनंद ले रही है और उसमें संवेदनशीलता की कमी है।” यह टिप्पणी न केवल पुलिस तंत्र की वर्तमान स्थिति को उजागर करती है, बल्कि इसके राजनीतिक प्रभाव और जनता के प्रति असंवेदनशीलता पर भी सवाल खड़ा करती है।

उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) की छवि अक्सर कठोर कार्रवाई और सत्ताधारी दल के प्रति झुकाव के कारण विवादों में रही है। यह स्थिति कानून व्यवस्था बनाए रखने के बजाय शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक बन गई है।

मानवाधिकारों का हनन और फर्जी मुठभेड़

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2023 में उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में 18 मौतों के मामले दर्ज हुए, जो देश में सबसे ज्यादा हैं। इसके अलावा, 2017 के बाद से यूपी में 10,000 से अधिक मुठभेड़ें हुईं, जिनमें 180 से ज्यादा लोगों की जान गई। इनमें से अधिकतर मामलों में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

इन घटनाओं से यह साफ होता है कि पुलिस तंत्र अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहा है। इसका सीधा असर जनता और पुलिस के बीच के विश्वास पर पड़ा है।

जनता के प्रति असंवेदनशीलता

सुप्रीम कोर्ट की “संवेदनशीलता की कमी” वाली टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि पुलिसकर्मी आम नागरिकों के साथ उचित व्यवहार करने में असफल हो रहे हैं। यूपी पुलिस की कठोरता और भय का माहौल राज्य में कानून व्यवस्था को अधिक चुनौतीपूर्ण बना देता है।

महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि के बावजूद पुलिस का असंवेदनशील रवैया स्थिति को और खराब कर रहा है। एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार, केवल 25% महिलाएं ही अपने खिलाफ अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराती हैं।
उत्तर प्रदेश में पुलिस पर सत्ताधारी दल का प्रभाव स्पष्ट है। विरोधी राजनीतिक दलों और प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के मामले में पुलिस की कठोरता साफ नजर आती है। सीएए विरोधी आंदोलन और हालिया पंचायत चुनावों में पुलिस के पक्षपातपूर्ण व्यवहार ने न्यायपालिका और मानवाधिकार संगठनों का ध्यान खींचा।

सत्ता के इस प्रभाव ने पुलिस को संविधान और कानून के प्रति जवाबदेह बनाने के बजाय राजनीतिक उपकरण में बदल दिया है। उत्तर प्रदेश पुलिस में सुधार लाने के लिए गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।

पुलिस को राजनीतिक दबाव से मुक्त करने के लिए स्वतंत्र आयोग की स्थापना होनी चाहिए।पुलिसकर्मियों को नियमित रूप से संवेदनशीलता और मानवाधिकार कानूनों पर प्रशिक्षण दिया जाए।पुलिसकर्मियों की जवाबदेही तय करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएं।सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा देकर जनता और पुलिस के बीच के रिश्ते में सुधार किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी केवल चेतावनी नहीं है, बल्कि यह पुलिस तंत्र में सुधार का एक अवसर है। जनता की सुरक्षा और विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को संवेदनशील और न्यायपूर्ण बनाना आवश्यक है। जब तक पुलिस तंत्र कानून और संविधान के प्रति जवाबदेह नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के मूल उद्देश्यों की पूर्ति संभव नहीं है।

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article