उत्तराखंड सरकार द्वारा 26 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने का निर्णय न केवल राज्य के लिए बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह कदम भारत के संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों की दिशा में एक मजबूत प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इस फैसले के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा, जो सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करेगा।
समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों (Directive Principles of State Policy) में अनुच्छेद 44 के तहत उल्लिखित है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा। हालांकि, भारत में विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार जैसे मामलों में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून प्रचलित हैं।
संविधान सभा की बहसों में इस विषय पर व्यापक चर्चा हुई थी। डॉ. बी.आर. आंबेडकर और अन्य प्रमुख नेताओं ने समान नागरिक संहिता को राष्ट्रीय एकता और समानता के लिए आवश्यक बताया था। लेकिन तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण इसे तत्काल लागू नहीं किया जा सका।
उत्तराखंड का यह कदम न केवल संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने की दिशा में एक पहल है, बल्कि यह देश के सामने कई सामाजिक और कानूनी चुनौतियों का समाधान भी प्रस्तुत करता है।
समान नागरिक संहिता का मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों को धर्म, जाति और लिंग के आधार पर समान अधिकार प्रदान करना है। यह महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करेगा, विशेष रूप से उन समुदायों में जहां व्यक्तिगत कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं।
वर्तमान में विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों के कारण कानूनी प्रक्रियाओं में जटिलता और असमानता उत्पन्न होती है। समान नागरिक संहिता इस जटिलता को दूर करेगी और न्याय प्रणाली को अधिक सरल और पारदर्शी बनाएगी।
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य नागरिकों को एक समान पहचान प्रदान करना है, जिससे सांस्कृतिक और धार्मिक विभाजन कम होंगे। यह कदम “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के विचार को भी मजबूती देगा।
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए व्यापक तैयारी की है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में नियमों की समीक्षा और संशोधन के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया। यह समिति राज्य की सामाजिक संरचना और विभिन्न धार्मिक समूहों के हितों को ध्यान में रखते हुए सुझाव देने के लिए जिम्मेदार थी।
सरकार ने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए ब्लॉक स्तर पर विशेष सत्र आयोजित किए हैं। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कानून का क्रियान्वयन सुचारु और प्रभावी हो।
समान नागरिक संहिता पर लंबे समय से बहस जारी है। इसके समर्थक इसे समाज में समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने वाला मानते हैं, जबकि विरोधी इसे सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बताते हैं।
यह कानून महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक बनाएगा और उनके साथ होने वाले भेदभाव को कम करेगा।
समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों को एक समान कानून के तहत लाएगी, जिससे न्याय प्रणाली में सुधार होगा।
कानून के सरलीकरण से निवेशकों और उद्यमियों के लिए एक बेहतर वातावरण तैयार होगा, जो राज्य की आर्थिक प्रगति में सहायक होगा। कुछ समूहों का मानना है कि समान नागरिक संहिता उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है।
इस कानून के लागू होने से सामाजिक और सांस्कृतिक तनाव बढ़ने की संभावना है, विशेष रूप से उन समुदायों में जो अपने व्यक्तिगत कानूनों को अपनी पहचान का हिस्सा मानते हैं।
उत्तराखंड का यह साहसिक कदम अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। देश में इस विषय पर लंबे समय से बहस चल रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया था। उत्तराखंड का निर्णय अन्य राज्यों को समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में सोचने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
हालांकि, समान नागरिक संहिता का क्रियान्वयन आसान नहीं होगा। इसमें कई प्रकार की चुनौतियां सामने आ सकती हैं, जैसे: सरकार को विभिन्न धार्मिक समूहों के साथ संवाद स्थापित करना होगा और उनके संदेहों को दूर करना होगा।
कानूनों का सरलीकरण करना और उन्हें एक समान रूप देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके लिए विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए।
नागरिकों को इस कानून के लाभों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है। इसके लिए व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाने की आवश्यकता होगी।
उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता को लागू करने का निर्णय ऐतिहासिक और साहसिक है। यह कदम राज्य और देश को सामाजिक समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता की दिशा में आगे बढ़ाएगा। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में चुनौतियां होंगी, लेकिन सही नीतियों और पारदर्शिता के साथ इनका समाधान किया जा सकता है।
यह निर्णय न केवल उत्तराखंड के विकास में सहायक होगा, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक उदाहरण पेश करेगा। समान नागरिक संहिता का सफल क्रियान्वयन भारत को एक समृद्ध और एकीकृत राष्ट्र बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।