– मेडिकल फिटनेस प्रमाणपत्र बना मज़ाक, जनसुरक्षा पर मंडरा रहा खतरा
फर्रुखाबाद। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रांतीय रक्षक दल (पीआरडी) के जवानों के लिए अनिवार्य किए गए चरित्र सत्यापन और मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र की प्रक्रिया अब सवालों के घेरे में है। फर्रुखाबाद जनपद से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां स्वास्थ्य की दृष्टि से अयोग्य पीआरडी जवान कथित रूप से रुपयों के बदले सरकारी चिकित्सकों से फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त कर रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक, लोहिया अस्पताल जैसे प्रतिष्ठित सरकारी संस्थानों में यह खेल बेखौफ चल रहा है। ऐसे जवान बिना वास्तविक जांच के “फिट” घोषित किए जा रहे हैं। शासन द्वारा तय मेडिकल प्रक्रियाओं की यह अनदेखी न केवल नियमों की धज्जियां उड़ा रही है, बल्कि जनसुरक्षा के लिए गंभीर खतरा भी बन रही है।
पीआरडी जवानों की नियुक्ति से पूर्व स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और चरित्र सत्यापन की शर्तें लागू की गई हैं, परंतु जमीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत है। सूत्रों का कहना है कि कुछ जवान निजी लेन-देन के माध्यम से स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र तो बनवा ही रहे हैं, वहीं चरित्र सत्यापन भी सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गया है।
बिना कड़े जांच के नियुक्त हो रहे जवानों को महत्वपूर्ण सुरक्षा ड्यूटी सौंपी जा रही है। अगर किसी अनफिट जवान के कारण ड्यूटी के दौरान कोई गंभीर हादसा हो जाता है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यह एक बड़ा सवाल है।
इस बीच पीआरडी जवानों की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच में याचिका दाखिल की गई है, जिसमें होमगार्ड के बराबर वेतन और सुविधाएं देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे होमगार्ड की तरह कठिन और जोखिमपूर्ण ड्यूटी निभाते हैं, परंतु वेतन और भत्तों में भारी असमानता है। यह मामला फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन इसका असर पीआरडी की सेवा शर्तों पर दूरगामी हो सकता है।
इस पूरे मामले में अब तक प्रशासन की ओर से कोई सख्त कार्रवाई या जांच के संकेत नहीं मिले हैं। इससे साफ़ है कि शासन के निर्देशों की खुलेआम अवहेलना हो रही है। यदि मेडिकल और सत्यापन जैसी बुनियादी शर्तें भी पैसों के दम पर पूरी की जाएँगी, तो यह व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि “जो जवान खुद शारीरिक रूप से अस्वस्थ हैं, वे हमारी सुरक्षा कैसे कर सकते हैं?” लोगों ने स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन से इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
यह मामला केवल पीआरडी की भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था के मूलभूत सिद्धांतों पर चोट का है। शासन को चाहिए कि वह इस मामले में तत्काल संज्ञान लेकर उच्चस्तरीय जांच कराए और दोषी चिकित्सकों व कर्मचारियों के खिलाफ उदाहरणात्मक कार्रवाई करे।