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Wednesday, December 4, 2024

युवा बेरोजगारी और मानसिक स्वास्थ्य: एक राष्ट्रीय चुनौती

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शरद कटियार

वर्तमान समय में भारत समेत पूरी दुनिया में बेरोजगारी (Unemployment) एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है, जिसका असर विशेष रूप से युवाओं पर हो रहा है। आज के युवा, जो किसी भी राष्ट्र के भविष्य की बुनियाद होते हैं, बेरोजगारी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस मुद्दे का समाधान खोजना केवल सरकार का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का कर्तव्य है। इसलिए, इस विशेष संपादकीय में हम युवा बेरोजगारी और उससे उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का विश्लेषण करेंगे और उन समाधानों पर विचार करेंगे जो इस स्थिति को सुधार सकते हैं।

भारत एक युवा देश है, जहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवाओं से बना है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रही है। 2023 की शुरुआत में भी, भारत की बेरोजगारी दर लगभग 7-8% थी, जिसमें अधिकांश युवा शामिल थे। हालांकि, महामारी के बाद अर्थव्यवस्था के खुलने से रोजगार के कुछ अवसर मिले हैं, लेकिन यह दर अभी भी संतोषजनक स्तर पर नहीं पहुंची है।

बेरोजगारी (Unemployment) के मुख्य कारणों में शिक्षा प्रणाली और औद्योगिक आवश्यकताओं के बीच असंगति, रोजगार के अवसरों में कमी, और कुशलता प्रशिक्षण की कमी शामिल हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद कई युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाता, क्योंकि उनके पास व्यावसायिक कौशल का अभाव होता है। इसके अलावा, कृषि और निर्माण क्षेत्र में भी नौकरियों में कमी देखी गई है, जिससे ग्रामीण युवाओं को बड़े शहरों में पलायन करना पड़ता है, लेकिन उन्हें वहां भी स्थायी रोजगार नहीं मिल पाता।

बेरोजगारी (Unemployment) का सीधा असर युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। जब युवा अपनी मेहनत के बावजूद रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते, तो उनके मन में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है। वे अपने आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में कमी महसूस करने लगते हैं, जो मानसिक समस्याओं की शुरुआत बन सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि बेरोजगारी युवाओं में तनाव, चिंता और अवसाद का प्रमुख कारण बनती जा रही है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2023 में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित युवाओं की संख्या में 20% से अधिक की वृद्धि देखी गई। बेरोजगारी के कारण युवाओं को अपने भविष्य के प्रति आशंका महसूस होती है, और यह अस्थायी रूप से उन्हें अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं में धकेल सकता है। इसके अलावा, समाज में बेरोजगारों को अक्सर हीन दृष्टि से देखा जाता है, जिससे उनमें अस्वीकार्यता और हताशा की भावना पैदा होती है।

बेरोजगारी केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि इसका समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। बेरोजगार युवा समाज की उन गतिविधियों में कम भाग लेते हैं जो एक राष्ट्र को सशक्त बनाती हैं। वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो पाते और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए परिवार पर निर्भर रहते हैं, जिससे पूरे परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। इसके अलावा, बेरोजगारी के कारण युवाओं में नशे की लत, अपराध और हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ने की भी संभावना होती है, जो समाज के लिए एक गंभीर खतरा है।

भारत में बेरोजगारी की समस्या का एक मुख्य कारण शिक्षा प्रणाली और रोजगार बाजार के बीच असंगति है। हमारे शिक्षा संस्थान युवाओं को पारंपरिक विषयों में तो प्रशिक्षित करते हैं, लेकिन उन्हें आधुनिक व्यावसायिक कौशल और तकनीकी प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। आज के वैश्वीकरण और डिजिटल युग में कंपनियां तकनीकी और व्यवसायिक कौशल से लैस युवाओं को वरीयता देती हैं, लेकिन हमारे अधिकांश युवा इन कौशलों से वंचित रह जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाते हैं और उन्हें अच्छी नौकरी पाने में कठिनाई होती है।

हालांकि भारत सरकार ने रोजगार के क्षेत्र में कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मुद्रा योजना, और स्टार्टअप इंडिया, लेकिन इनका प्रभाव उतना व्यापक नहीं हो पाया जितनी उम्मीद थी। अधिकतर योजनाएं शहरों में केंद्रित हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के युवा भी बेरोजगारी से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। इसके अलावा, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कई बार भ्रष्टाचार और असमानता की समस्या भी देखी जाती है, जिससे योजनाओं का लाभ सभी तक नहीं पहुंच पाता।

बेरोजगारी के कारण उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए जागरूकता का अभाव भी एक गंभीर मुद्दा है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी सामाजिक कलंक की दृष्टि से देखा जाता है, और लोग मानसिक समस्याओं के प्रति जागरूकता नहीं रखते। युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए परामर्शदाताओं, मनोचिकित्सकों और सहायता समूहों की कमी है।

आज, हमें मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता फैलाने की जरूरत है। स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग को अनिवार्य बनाना चाहिए, ताकि युवा अपने मानसिक समस्याओं को पहचान सकें और उनसे निपटने के उपाय जान सकें।
सरकार को रोजगार सृजन के लिए अधिक से अधिक निवेश की आवश्यकता है, ताकि विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों में युवाओं को काम के अवसर मिल सकें। कृषि, विनिर्माण, और सेवा क्षेत्र में नए रोजगार पैदा करने के साथ-साथ स्वरोजगार और उद्यमिता को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। युवाओं को छोटे और मध्यम आकार के उद्यम शुरू करने के लिए सरकारी वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण, और मार्केटिंग समर्थन प्रदान करना एक प्रभावी कदम हो सकता है।

सरकार के अलावा, निजी क्षेत्र भी रोजगार सृजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर निजी कंपनियां युवाओं को प्रशिक्षित करने और रोजगार के अवसर देने में सरकार के साथ सहयोग करें, तो यह देश में बेरोजगारी दर को कम करने में सहायक हो सकता है। इसके साथ ही, युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए, जिससे वे अपने व्यवसायिक विचारों को अमल में ला सकें।
समाज को भी इस समस्या के समाधान में योगदान देना चाहिए। हम सभी को अपने आसपास के युवाओं के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति दिखानी चाहिए और उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने के प्रयास करने चाहिए। परिवार, मित्र और समुदाय के सदस्य युवाओं के समर्थन में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। परिवार को विशेष रूप से युवाओं की मानसिक स्थिति को समझने और उनके संघर्षों का सम्मान करने की आवश्यकता है।

मीडिया और सामाजिक संगठनों को भी मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और बेरोजगारी से निपटने के उपायों को सामने लाने में भूमिका निभानी चाहिए। सामुदायिक संगठनों को युवाओं के बीच आत्मनिर्भरता की भावना को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य और कैरियर विकास पर ध्यान दिया जाए।
युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी और मानसिक समस्याएं समाज के लिए गंभीर मुद्दे हैं। भारत की प्रगति के लिए यह जरूरी है कि हमारे युवा मानसिक और आर्थिक रूप से सशक्त हों। बेरोजगारी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान खोजना एक सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसमें सरकार, समाज, और परिवारों का योगदान महत्वपूर्ण है।

यदि हम इस समस्या का समाधान खोजने में सफल होते हैं, तो भारत को एक सशक्त और स्वस्थ राष्ट्र के रूप में देखने का सपना साकार हो सकता है।

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