यूथ इंडिया समाचार
नई दिल्ली। चीन के तियानजिन में हाल ही में हुई शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन बैठक के बाद भारत की विदेश नीति को लेकर अमेरिका में तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक साथ दिखाई दिए। इस तस्वीर ने वॉशिंगटन में हलचल मचा दी है और डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सलाहकारों से लेकर बाइडन प्रशासन तक, दोनों ही ओर से भारत पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
ट्रंप के वरिष्ठ ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने प्रधानमंत्री मोदी की पुतिन और जिनपिंग के साथ मौजूदगी को शर्मनाक करार दिया। उन्होंने कहा कि भारत को यह समझना चाहिए कि उसकी जगह रूस के साथ नहीं, बल्कि अमेरिका के साथ है। नवारो ने यह भी आरोप लगाया कि भारत रूस से सस्ते दाम पर कच्चा तेल खरीदकर उसका रिफाइनिंग करता है और ऊँचे दामों पर बेचता है। इस प्रक्रिया से रूस को यूक्रेन पर युद्ध छेडऩे के लिए पैसा मिलता है और अंतत: नुकसान आम भारतीयों को उठाना पड़ता है। नवारो ने भारत को रूस की धुलाई मशीन तक कह डाला और आरोप लगाया कि भारत ऐसे गठबंधनों को मजबूत कर रहा है, जो सीधे-सीधे अमेरिका के हितों के खिलाफ हैं।
नवारो यहीं नहीं रुके। उन्होंने भारतीय ब्राह्मणों पर मुनाफाखोरी का आरोप लगाते हुए कहा कि रूसी तेल से सबसे अधिक लाभ एक विशेष वर्ग उठा रहा है, जबकि इसकी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ रही है। उनका यह बयान भारत के भीतर भी विवाद पैदा कर सकता है।
उधर अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भी भारत की नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि रूस से तेल खरीदने का मतलब है मास्को की जंग मशीन को ताकत देना। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की स्ष्टह्र बैठक को सिर्फ दिखावा बताते हुए भारत को बुरा खिलाड़ी करार दिया। हालांकि बेसेंट ने यह भी स्वीकार किया कि अमेरिका और भारत दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और दोनों देशों के बीच मतभेद संवाद के माध्यम से सुलझाए जा सकते हैं।
एससीअसो बैठक से पहले हुए फोटो सेशन की तस्वीरों में मोदी, पुतिन और जिनपिंग को एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए देखा गया। इसके अलावा मोदी, पुतिन की कार में बैठकर उनसे करीब एक घंटे तक गोपनीय बातचीत करते भी नजर आए। इन दृश्यों ने अमेरिकी राजनीतिक हलकों में यह धारणा बनाई कि रूस, चीन और भारत की एकजुटता ट्रंप के लिए चुनौती के तौर पर प्रस्तुत की जा रही है। बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मौजूदगी ने भी चर्चाओं को और अधिक तूल दे दिया।
गौरतलब है कि पीटर नवारो लंबे समय तक ग्लोबलाइजेशन और मुक्त व्यापार के समर्थक रहे हैं, लेकिन ट्रंप से जुडऩे के बाद उनका रुख पूरी तरह बदल गया। अब वे खुले व्यापार की आलोचना करते हैं और मानते हैं कि अमेरिका का असली गौरव उस दौर में था, जब देश बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन करता था। उनकी दृष्टि में चीन को विश्व व्यापार संगठन में शामिल करना अमेरिका के लिए सर्वनाश साबित हुआ और डोनाल्ड ट्रंप ही ऐसे नेता हैं जो अमेरिका को उस कठिनाई से बाहर निकाल सकते हैं।
नवारो पहले भी रूस-यूक्रेन युद्ध को मोदी वॉर करार दे चुके हैं। उनका तर्क है कि यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो अमेरिका अगले ही दिन भारत पर लगे 25 प्रतिशत टैरिफ को हटा देगा। इस तरह वे भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करते रहे हैं।
कुल मिलाकर, स्ष्टह्र बैठक के मंच पर मोदी, पुतिन और जिनपिंग की संयुक्त मौजूदगी ने वैश्विक राजनीति में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग दिख रहा है, वहीं अमेरिका की निगाह में रूस और चीन से उसकी बढ़ती नजदीकी एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती बन चुकी है।