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Sunday, April 20, 2025

स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अभाव में डिजिटल लेनदेन का जोखिम: यूपीआई के भविष्य पर पुनर्विचार की जरूरत

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भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली का चेहरा बदलने वाली यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने न केवल शहरी, बल्कि ग्रामीण भारत को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का काम किया है। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में यूपीआई के माध्यम से 11.5 बिलियन से अधिक लेनदेन हुए, जिनका कुल मूल्य ₹26.9 लाख करोड़ था। यूपीआई ने भारत में डिजिटल भुगतान में क्रांति लाई है और देश के सबसे लोकप्रिय और विश्वसनीय लेनदेन प्लेटफॉर्म के रूप में उभरा है।

हालांकि, यूपीआई पारिस्थितिकी तंत्र में तेजी से बढ़ते लेनदेन और वित्तीय समावेशन की सफलता के बावजूद, इसके भविष्य को कुछ महत्वपूर्ण जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है। दो प्रमुख थर्ड पार्टी ऐप प्रोवाइडर्स (टीपीएपी) – फोनपे और गूगल पे का वर्चस्व बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अभाव का संकेत देता है, जिससे नवाचार और सेवा विस्तार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

यूपीआई ने देशभर में डिजिटल भुगतान को सहज, सुलभ और किफायती बनाया है। यूपीआई का शून्य शुल्क मॉडल, जो उपयोगकर्ताओं को बिना किसी अतिरिक्त लागत के लेनदेन करने की अनुमति देता है, इसे आर्थिक रूप से विविध भारतीय आबादी के बीच बेहद लोकप्रिय बनाता है। छोटे व्यापारी, किराना स्टोर, और स्ट्रीट वेंडर्स अब डिजिटल भुगतान स्वीकार कर रहे हैं, जो उन्हें औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़ने का काम करता है।
इसके अलावा, यूपीआई ने सरकारी सेवाओं को एकीकृत करके एक भरोसेमंद और सुरक्षित प्लेटफॉर्म प्रदान किया है। इससे न केवल वित्तीय समावेशन बढ़ा है, बल्कि ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में भी डिजिटल वित्तीय सेवाओं की पहुंच आसान हुई है।

हालांकि, यूपीआई के इस प्रभावशाली सफर का एक चिंताजनक पहलू है: फोनपे और गूगल पे जैसे दो प्रमुख ऐप्स का 80% से अधिक बाजार पर कब्जा। यह एकाग्रता नए खिलाड़ियों के लिए बाधा बन रही है और नवाचार की संभावनाओं को सीमित कर रही है।

फोनपे और गूगल पे की मजबूत बाजार हिस्सेदारी ने पेटीएम जैसे अन्य छोटे खिलाड़ियों के लिए प्रतिस्पर्धा करना और नई सुविधाओं को लागू करना मुश्किल बना दिया है। यह न केवल संभावित प्रगति को रोकता है, बल्कि बाजार में विविधता की कमी भी पैदा करता है।

उच्च बाजार एकाग्रता प्रणालीगत जोखिम पैदा करती है। अगर फोनपे या गूगल पे में तकनीकी खराबी हो जाए, तो यह यूपीआई के 80% लेनदेन को बाधित कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
फोनपे और गूगल पे जैसे विदेशी स्वामित्व वाले प्लेटफॉर्म भारतीय नागरिकों की वित्तीय जानकारी तक संभावित “पिछले दरवाजे” से पहुंच प्रदान करते हैं। वॉलमार्ट (फोनपे का मालिक) और गूगल के स्वामित्व वाली कंपनियां डेटा सुरक्षा और उपयोगकर्ता गोपनीयता के मुद्दों पर चिंता बढ़ाती हैं।

डिजिटल लेनदेन में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लाने के लिए भारत को यूपीआई पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाने की आवश्यकता है। बाजार हिस्सेदारी की सीमा निर्धारित करना, छोटे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देना, और स्थानीय समाधानों को बढ़ावा देना कुछ आवश्यक कदम हो सकते हैं।

NPCI ने पहले फोनपे और गूगल पे की बाजार हिस्सेदारी को 30% तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा था। यदि यह लागू किया जाता है, तो यह बाजार में नए खिलाड़ियों के लिए अवसर पैदा कर सकता है और विदेशी वर्चस्व को कम कर सकता है।भारतीय स्वामित्व वाले पेटीएम और अन्य क्षेत्रीय ऐप्स को सब्सिडी या अनुदान प्रदान करके अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है। यह न केवल विदेशी खिलाड़ियों पर निर्भरता को कम करेगा, बल्कि स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने वाले समाधान भी प्रस्तुत करेगा।

छोटे डेवलपर्स और स्टार्टअप्स के लिए विशेष अनुदान या नवाचार चुनौतियां आयोजित की जा सकती हैं, जो डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में नई संभावनाएं उत्पन्न कर सकते हैं। डिजिटल लेनदेन में डेटा सुरक्षा एक महत्वपूर्ण पहलू है। यूपीआई आधारित ऐप्स के लिए कड़े डेटा सुरक्षा नियम लागू करना अनिवार्य है। उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी को अनधिकृत पहुंच और संभावित दुरुपयोग से बचाने के लिए मजबूत कानूनों की आवश्यकता है।
यूपीआई ऐप्स के लिए बैकअप सर्वर और फेलसेफ मैकेनिज्म सुनिश्चित करने से तकनीकी बाधाओं के दौरान सेवा में रुकावट को रोका जा सकता है।

यूपीआई ने अब तक वंचित समुदायों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल करने का उत्कृष्ट काम किया है। इसे और मजबूत करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
यूपीआई सेवाओं का विस्तार ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में करने से अधिक लोगों को डिजिटल लेनदेन में शामिल किया जा सकता है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया जा सकता है।

क्षेत्रीय भाषाओं और स्थानीय व्यावसायिक जरूरतों को ध्यान में रखकर यूपीआई ऐप्स विकसित करना आवश्यक है।
यूपीआई ने भारत को डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में अग्रणी बना दिया है, लेकिन इसके विकास और स्थिरता के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और मजबूत नियामक ढांचे की आवश्यकता है। बाजार संकेन्द्रण को कम करने, छोटे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने, और डेटा सुरक्षा को प्राथमिकता देने से यूपीआई का पारिस्थितिकी तंत्र अधिक समावेशी और लचीला बन सकता है।

भारत को डिजिटल भुगतान में अपनी सफलता को बनाए रखने और वैश्विक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना होगा। इससे न केवल नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि आर्थिक समावेशन और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।

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