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Tuesday, April 22, 2025

सच्ची पत्रकारिता के व्यापक मायने

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शरद कटियार

आज जब सूचना की बाढ़ है और सोशल मीडिया की हर फीड खबरों से भरी है, तब सवाल उठता है—क्या सच में पत्रकारिता अपने उद्देश्य को निभा रही है? क्या पत्रकार केवल खबर पहुंचाने वाला है, या वो समाज का आइना, व्यवस्था का प्रहरी और जनता की आवाज़ है?

एक सच्चे पत्रकार का फ़र्ज़ महज़ खबर रिपोर्ट करना नहीं होता, बल्कि जनता के सवालों को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाना होता है। पत्रकार वह होता है जो न किसी दबाव में झुकता है, न किसी लोभ में बिकता है। वह सत्ता, व्यवस्था, समाज और बाजार के बीच खड़ा होकर केवल सत्य का पक्ष लेता है—चाहे इसके लिए उसे कितना ही संघर्ष क्यों न करना पड़े।

सच के लिए जोखिम उठाना

एक ईमानदार पत्रकार वह होता है जो अन्याय, भ्रष्टाचार, शोषण या दमन के खिलाफ निडर होकर आवाज़ उठाता है। वह जानता है कि झूठ के खिलाफ खड़ा होना खतरों से खाली नहीं, लेकिन फिर भी वह कलम उठाता है। कभी सड़क पर उतरी जनता के बीच, तो कभी प्रशासन के कड़े सवालों के सामने, वह सत्य की मशाल लिए खड़ा रहता है।
सच्चा पत्रकार वही होता है जो जनता की पीड़ा को अपनी पीड़ा माने। उसे यह समझ होनी चाहिए कि एक गांव में टूटी पुलिया, एक अस्पताल में दवाओं की कमी, एक छात्र का दाखिला न होना या एक गरीब की जमीन पर कब्जा—ये सिर्फ खबरें नहीं हैं, ये इंसाफ की लड़ाई हैं, जिनकी आवाज़ उसे बनना है।

आज जब TRP और स्पॉन्सरशिप ने खबरों को बाजार बना दिया है, तब भी एक सच्चा पत्रकार निष्पक्षता से सच्चाई दिखाने की कोशिश करता है। वह तथ्यों को बिना तोड़े-मरोड़े प्रस्तुत करता है, और खबर को सनसनी नहीं, समाधान का माध्यम बनाता है।

पत्रकार का धर्म सरकार के प्रवक्ता बनना नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछना है। जब पत्रकार जनता की आंख और कान बन जाता है, तब ही लोकतंत्र मजबूत होता है। लेकिन जब पत्रकार सत्ता का हिस्सा बन जाता है, तब लोकतंत्र अपंग हो जाता है।

आज जो युवा पत्रकारिता में आ रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि यह करियर सिर्फ माइक पकड़ने या कैमरे के सामने आने का नाम नहीं है। पत्रकारिता का रास्ता कांटों से भरा है, जहां सच्चाई की कीमत बहुत महंगी होती है। लेकिन यही रास्ता समाज में बदलाव लाने का सबसे सशक्त साधन भी है।

Youth India जैसे प्लेटफॉर्म आज इस दौर में पत्रकारिता की असली भावना को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जहां सत्ता से सवाल भी होते हैं, और समाज की नब्ज़ भी समझी जाती है। ऐसे मंचों की ज़रूरत आज पहले से कहीं ज्यादा है, ताकि सच्चे पत्रकारों को वह मंच मिल सके जहाँ वे बिना डर, बिना दबाव, और बिना सेंसरशिप के अपने फ़र्ज़ को निभा सकें।
एक सच्चे पत्रकार का फ़र्ज़ सिर्फ रिपोर्टिंग करना नहीं, बल्कि व्यवस्था को जवाबदेह बनाना, पीड़ित को न्याय दिलाना और समाज में भरोसा बनाए रखना होता है। जब तक यह भावना पत्रकारिता में जीवित है, तब तक लोकतंत्र जीवित है। और जब तक कलम की स्याही में ईमानदारी है, तब तक अंधेरे में भी उजाले की उम्मीद जिंदा है।

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