नई दिल्ली। सहारा इंडिया, पर्ल्स (PACL) और अन्य चिटफंड कंपनियों (Chit Fund Scams) में लाखों निवेशकों का पैसा फंसा हुआ है, लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिल पाया है। इन कंपनियों ने उच्च रिटर्न का वादा कर निवेशकों को लुभाया, लेकिन बाद में अनियमितताओं और धोखाधड़ी के आरोपों के चलते नियामक संस्थाओं ने इनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की। बावजूद इसके, धन वापसी की प्रक्रिया धीमी है, जिससे लाखों परिवार परेशान हैं।
सहारा इंडिया: निवेशकों के लिए आशा की किरण या एक और इंतजार?
सहारा इंडिया की चार सहकारी समितियों में फंसे निवेशकों के धन की वापसी के लिए सरकार ने ‘सीआरसीएस-सहारा रिफंड पोर्टल’ लॉन्च किया है। इस पोर्टल के माध्यम से 50,000 रुपये तक के दावों को स्वीकार किया जा रहा है, और दावा स्वीकृत होने पर 45 दिनों के भीतर राशि आधार से जुड़े बैंक खातों में जमा हो रही है।
हालांकि, बड़ी राशि वाले निवेशकों के लिए यह प्रक्रिया काफी धीमी है। निवेशकों का आरोप है कि सहारा समूह से जुड़े मामलों में धन वापसी की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है और सरकार इसे प्राथमिकता के साथ नहीं देख रही।
PACL (पर्ल्स) में निवेशकों की संख्या लगभग 5 करोड़ बताई जाती है। सेबी द्वारा धन वापसी की प्रक्रिया शुरू किए जाने के बावजूद, अधिकांश निवेशक अभी भी अपने पैसे के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस कंपनी पर करीब 60,000 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है।
सेबी की वेबसाइट पर दावा दर्ज करने की प्रक्रिया ने कई निवेशकों को राहत की उम्मीद दी थी, लेकिन तकनीकी जटिलताओं और धीमी जांच ने इस प्रक्रिया को निराशाजनक बना दिया।
न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति
चिटफंड घोटालों (Chit Fund Scams) से जुड़े मामलों में न्यायिक प्रक्रिया बेहद धीमी है। अदालतों में लंबित मामलों और परिसंपत्तियों की नीलामी में देरी के कारण निवेशकों को पैसा वापस मिलने में सालों लग रहे हैं।
धन वापसी की प्रक्रिया को तेज किया जाए।सरकार और सेबी की ओर से पारदर्शी और समयबद्ध कार्रवाई हो। दोषी कंपनियों और अधिकारियों पर सख्त दंड लगाया जाए।
चिटफंड घोटालों (Chit Fund Scams) में फंसे करोड़ों निवेशकों की समस्या न केवल आर्थिक है, बल्कि यह सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का भी मुद्दा बन चुकी है। सरकार और नियामक संस्थाओं को इस दिशा में सख्त और ठोस कदम उठाने चाहिए।
निवेशकों को न्याय दिलाने के लिए मीडिया, खासकर ‘यूथ इंडिया’ जैसी ईमानदार और प्रगतिशील पत्रकारिता का भी अहम रोल है। इन मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना और पीड़ितों की आवाज बनना जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।