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Monday, August 18, 2025

साइबर अपराधों के विरुद्ध निर्णायक युद्ध की शुरुआत – CBI की कार्रवाई एक चेतावनी और अवसर दोनों

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शरद कटियार

भारत जैसे विशाल और डिजिटल रूप से तेजी से उभरते राष्ट्र के लिए साइबर अपराध एक अत्यंत गंभीर और जटिल चुनौती बन चुका है। ऐसे में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा हाल ही में चलाया गया ‘ऑपरेशन चक्र-V’ एक न केवल बड़ी कार्रवाई है, बल्कि यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब सरकार और जांच एजेंसियां इस खतरे को हल्के में नहीं लेने वालीं। दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के 42 ठिकानों पर छापेमारी कर 9 आरोपियों की गिरफ्तारी और 8.5 लाख म्यूल खातों की जांच इस ऑपरेशन की गहराई और गंभीरता को दर्शाता है।

बीते दशक में भारत ने डिजिटल लेनदेन के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। यूपीआई, ऑनलाइन बैंकिंग, ई-वॉलेट्स और मोबाइल एप्लिकेशन ने आम आदमी की जिंदगी को आसान बनाया है, लेकिन इसके साथ ही एक खतरनाक साइड इफेक्ट भी देखने को मिला है — साइबर फ्रॉड का विस्फोटक विस्तार। यह विडंबना ही है कि जिस डिजिटल इकोसिस्टम ने आम आदमी को सशक्त बनाया, वही अब एक संगठित ठगी नेटवर्क का शिकार बन चुका है।

CBI की ताजा जांच ने इस डर को और भी ठोस रूप दिया है कि कैसे देश की बैंकिंग प्रणाली और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को म्यूल खातों के ज़रिए कमजोर किया जा रहा है। ये म्यूल खाते वे बैंक अकाउंट होते हैं जिनका प्रयोग धोखाधड़ी की रकम को इधर-उधर करने के लिए किया जाता है। CBI की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे खातों को खोलने में बैंक कर्मचारी, एजेंट, बिचौलिये, ‘ई-मित्र’ और बैंकिंग नेटवर्क से जुड़े लोग शामिल रहे हैं। कई जगह बिना KYC, बिना पहचान पत्र और बिना किसी जोखिम मूल्यांकन के खाते खोल दिए गए, जो एक गंभीर लापरवाही है।

इस ऑपरेशन के तहत CBI ने न केवल मनी लॉन्ड्रिंग को उजागर किया, बल्कि उन नई तकनीकों को भी सामने लाया जिनका प्रयोग साइबर ठग कर रहे हैं। इनमें फर्जी डिजिटल गिरफ्तारी, नकली विज्ञापन के माध्यम से निवेश घोटाले, यूपीआई आधारित फ्रॉड और SMS/WhatsApp के ज़रिए फर्जी लिंक भेजने जैसे तरीकों का इस्तेमाल शामिल है। इस तरह की घटनाओं से न केवल लोगों की मेहनत की कमाई लुटती है, बल्कि यह साइबर सुरक्षा के पूरे ढांचे पर सवाल खड़ा करती है।

सबसे गंभीर बात यह है कि ऐसे फ्रॉड सिर्फ छोटे स्तर पर नहीं, बल्कि संगठित तरीके से पूरे देश में फैले हुए हैं। CBI की जांच में यह सामने आया कि हजारों की संख्या में ऐसे बैंक खातों का संचालन हो रहा है जो किसी न किसी रूप में साइबर ठगी का हिस्सा हैं। इस पूरे नेटवर्क को तोड़ना, उसके हर कड़ी तक पहुंचना और उसे खत्म करना एक लंबी प्रक्रिया होगी, लेकिन ऑपरेशन चक्र-V इसकी एक सशक्त शुरुआत है।

CBI की इस कार्रवाई ने देश की बैंकिंग प्रणाली की एक कड़वी सच्चाई भी उजागर की है — अनियमितताएं, लापरवाही और भ्रष्टाचार। जब KYC जैसी अनिवार्य प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए लाखों खाते खोले जाएं, तो यह एक संकेत है कि बैंकिंग व्यवस्था में गहरे सुधार की आवश्यकता है।

जिन बैंक अधिकारियों और प्रबंधकों ने संदिग्ध लेन-देन की अनदेखी की, वे सिर्फ ‘लापरवाह’ नहीं बल्कि संभवतः ‘साजिशकर्ता’ भी हो सकते हैं। यही वजह है कि इस ऑपरेशन में सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और BNS की धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए हैं।

सिर्फ एजेंटों या फ्रॉड करने वालों को पकड़ना पर्याप्त नहीं होगा, जब तक उस पूरे नेटवर्क को नहीं तोड़ा जाता जिसमें बैंकिंग अधिकारी, फाइनेंशियल एग्रीगेटर, KYC प्रोसेस करने वाले एजेंसियां और तकनीकी प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
अब यह समय आ गया है कि देश साइबर अपराधों से निपटने के लिए एक व्यापक और बहुस्तरीय रणनीति अपनाए, जो केवल कार्रवाई या गिरफ्तारी पर आधारित न हो।

सरकार को चाहिए कि RBI और अन्य नियामक संस्थानों के सहयोग से बैंकिंग क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों के लिए साइबर फ्रॉड प्रबंधन और KYC नियमों की अनिवार्य ट्रेनिंग शुरू करे। साथ ही, हर बैंक में एक स्वतंत्र साइबर धोखाधड़ी ऑडिटिंग टीम की स्थापना की जानी चाहिए जो समय-समय पर खातों की समीक्षा करे।

यह बात भी समझनी होगी कि जितनी जिम्मेदारी सरकार और एजेंसियों की है, उतनी ही आम नागरिकों की भी है। जब तक लोग स्वयं सतर्क नहीं होंगे, तब तक साइबर ठग अपनी चालों में सफल होते रहेंगे। फर्जी कॉल, संदिग्ध SMS या WhatsApp लिंक, नकली वेबसाइट और लोभ देने वाले निवेश प्रस्तावों को पहचानना और उसकी सूचना देना हर नागरिक की जिम्मेदारी बनती है।

सरकार को चाहिए कि वह डिजिटल प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया और शिक्षा संस्थानों के माध्यम से एक राष्ट्रीय स्तर की ‘साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान’ चलाए, जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक को प्रशिक्षित किया जाए।

CBI का यह ऑपरेशन एक ‘ट्रेलर’ है — असली लड़ाई अब शुरू हुई है। इस तरह की कार्रवाई यह संदेश देती है कि अब अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वे कितनी भी ऊंची पहुंच रखते हों या कितनी भी चतुराई से सिस्टम का फायदा उठा रहे हों।

लेकिन साथ ही, यह एक अवसर भी है — बैंकिंग, प्रशासनिक और तकनीकी तंत्र को दुरुस्त करने का, जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इस दिशा में यदि केंद्र सरकार इच्छाशक्ति दिखाती है, तो भारत एक सशक्त और सुरक्षित डिजिटल राष्ट्र बन सकता है।

ऑपरेशन चक्र-V न केवल एक साइबर ठगी गिरोह की कमर तोड़ने की कार्रवाई है, बल्कि यह भारतीय शासन व्यवस्था के सामने एक दर्पण भी है। इसमें हमें अपनी कमियों को पहचानने, उन्हें सुधारने और एक अधिक जिम्मेदार साइबर इकोसिस्टम तैयार करने का अवसर मिला है।

यह एक निर्णायक क्षण है — हमें तय करना होगा कि हम इस चेतावनी को केवल ‘एक खबर’ मानकर आगे बढ़ जाएंगे या इसे एक संकेतक के रूप में लेंगे कि समय आ गया है, जब हमें साइबर अपराधों के खिलाफ युद्ध स्तर पर कदम उठाने होंगे।

यदि इस चेतावनी को गंभीरता से लिया गया, तो न केवल अपराधियों को सजा मिलेगी, बल्कि भारत दुनिया के सबसे सुरक्षित डिजिटल लोकतंत्रों में भी शामिल हो सकेगा।

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