भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने लगभग पांच वर्षों के बाद नीतिगत दरों (Repo Rate) में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब केंद्र सरकार ने इनकम टैक्स में राहत देकर आम नागरिकों को राहत दी है। रेपो दर में कटौती का सीधा असर मिडिल क्लास, छोटे व्यवसायों और बैंकिंग सेक्टर पर पड़ता है। इस कदम से सस्ते कर्ज का रास्ता साफ हो गया है, जिससे आवास, वाहन और व्यक्तिगत ऋण लेने वाले लोगों को फायदा होगा।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद घोषणा की कि रेपो रेट को 6.5% से घटाकर 6.25% कर दिया गया है। एमपीसी के अनुसार, यह निर्णय मुद्रास्फीति में गिरावट, आर्थिक स्थिरता और वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए लिया गया है। इसके अलावा, आरबीआई ने एसडीएफ (स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी) को 6.0% और एमसीएफ (मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी) और बैंक दर को 6.5% पर बनाए रखने का निर्णय लिया है।
रेपो दर में कटौती का प्रभाव
रेपो दर में कमी से बैंकों के लिए आरबीआई से उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिससे वे कम ब्याज दरों पर ग्राहकों को ऋण प्रदान कर सकते हैं। इससे खासकर होम लोन, ऑटो लोन और बिजनेस लोन लेने वालों को राहत मिलेगी।
मध्यवर्गीय परिवारों के लिए यह राहतपूर्ण कदम है, क्योंकि सस्ती ब्याज दरों पर ऋण लेने की सुविधा से वे अपने वित्तीय लक्ष्य पूरे कर सकते हैं। इससे रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता सामानों की मांग में भी वृद्धि होगी।
आरबीआई का निर्णय मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को संतुलित करने की दिशा में उठाया गया कदम है। मौद्रिक नीति समिति का मानना है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता और वैश्विक अनिश्चितताओं में कमी के कारण अब ब्याज दरों में कटौती संभव हो पाई है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपने बयान में कहा कि भारत वर्तमान में 129.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुमानित प्रवाह के साथ वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा प्रेषण प्राप्तकर्ता बना हुआ है। इससे यह संकेत मिलता है कि प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजा गया धन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत सहारा बना हुआ है।
इसके अलावा, 31 जनवरी, 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 630 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था, जो 10 महीने के आयात कवर के बराबर है। भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit – CAD) भी संधारणीय स्तर पर बना हुआ है, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता बनी हुई है।
आरबीआई गवर्नर ने यह भी स्पष्ट किया कि बैंकिंग और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया जाता है, लेकिन यह किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जाता। इससे संकेत मिलता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक बाजार में संतुलन बनाए रखने और अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
आरबीआई ने मई 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान रेपो रेट को 4% तक घटा दिया था। लेकिन मई 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक अस्थिरता और महंगाई बढ़ने से आरबीआई को दरें बढ़ानी पड़ीं। फरवरी 2023 में यह बढ़ोतरी रोक दी गई थी, और अब लगभग दो वर्षों के स्थिरता के बाद, पहली बार दरों में कटौती की गई है।
रेपो रेट में कमी से यह उम्मीद की जा रही है कि खपत और निवेश में तेजी आएगी, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ मजबूत होंगी। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए आरबीआई ने वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान 6.7% रखा है।
हालांकि, आरबीआई की यह नीति मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने की चुनौती भी पेश कर सकती है। अगर ब्याज दरें कम होने के कारण माँग अधिक बढ़ी, तो महंगाई फिर से ऊपर जा सकती है। ऐसे में आरबीआई को संतुलन बनाए रखना होगा ताकि महंगाई दर काबू में रहे और विकास को भी गति मिले।
भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक घटनाओं, जैसे कि तेल की कीमतों, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों और भू-राजनीतिक संकटों से प्रभावित होती है। यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता बढ़ती है, तो यह आरबीआई की मौद्रिक नीति पर भी असर डाल सकता है।
आरबीआई द्वारा 0.25 प्रतिशत की कटौती का निर्णय देश की अर्थव्यवस्था, बैंकिंग सेक्टर और आम नागरिकों के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह कदम मिडिल क्लास, छोटे व्यापारियों और उद्योगों को राहत प्रदान करेगा, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा आएगी।
हालांकि, यह महत्वपूर्ण होगा कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहे और विदेशी निवेशकों का विश्वास बना रहे। आने वाले महीनों में आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति बैठक और वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम यह तय करेंगे कि ब्याज दरों की यह कटौती एक नई शुरुआत है या अस्थायी राहत।