लोकसभा में आज पेश होने वाले वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 ने देश की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। सरकार इसे वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए जरूरी बता रही है, जबकि विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देख रहा है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, AIMIM और INDIA गठबंधन के अन्य दलों ने इस विधेयक के खिलाफ संसद में कड़ा विरोध करने की रणनीति बनाई है।
वक्फ संपत्तियां वे भूमि, भवन या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिन्हें इस्लामिक धार्मिक और सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित किया जाता है। ये संपत्तियां वक्फ बोर्ड के अधीन होती हैं और मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, दरगाहों, अनाथालयों, और समाजसेवा से जुड़े कार्यों के लिए उपयोग की जाती हैं। भारत में वक्फ बोर्ड अधिनियम, 1995 के तहत इन संपत्तियों का प्रबंधन किया जाता है।
वर्तमान में, भारत में लगभग 6 लाख से अधिक वक्फ संपत्तियां पंजीकृत हैं, जिनकी कुल कीमत हजारों करोड़ रुपये बताई जाती है। इनमें से कई संपत्तियां अवैध कब्जे में हैं या ठीक से इस्तेमाल नहीं हो पा रही हैं। सरकार का कहना है कि इन संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचे में बदलाव जरूरी है।
केंद्र सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों में बड़े पैमाने पर घोटाले और भ्रष्टाचार हो रहे हैं, जिससे इन संपत्तियों का सही उपयोग नहीं हो रहा है। कानून मंत्री अरुण राम मेघवाल ने कहा, “देश में हजारों एकड़ वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग हो रहा है। कई जगहों पर इन पर अवैध कब्जे हैं और घोटाले हो रहे हैं। यह विधेयक पारदर्शिता लाने और गलत इस्तेमाल को रोकने का प्रयास है। इससे कोई भी धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होगी।”
भाजपा के अन्य नेताओं ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय के हित में बताया है। उनका कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों की रक्षा करेगा और उन्हें अनियमितताओं से बचाएगा।
विपक्षी दलों का मानना है कि यह विधेयक सरकार को वक्फ संपत्तियों पर सीधा नियंत्रण स्थापित करने की शक्ति देगा, जिससे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों का हनन होगा। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “सरकार वक्फ बोर्ड को कमजोर कर, इसकी संपत्तियों को हड़पना चाहती है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 के खिलाफ है। मुस्लिम समाज इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा।”
कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा, “यह विधेयक वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के बजाय, उन्हें निजीकरण की ओर धकेलने की कोशिश है। भाजपा सरकार हमेशा अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचलने का प्रयास करती रही है।”
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “सरकार इस विधेयक के जरिए वक्फ बोर्डों की संपत्तियों को निजी कंपनियों को सौंपने की योजना बना रही है। यह एक राजनीतिक साजिश है, जिसे हम सफल नहीं होने देंगे।”
रामपुर से समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा, “यह विधेयक मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के मामलों में सरकार की दखलंदाजी बढ़ाएगा और समुदाय को नुकसान पहुंचाएगा। इसे किसी भी हाल में पास नहीं होने दिया जाएगा।”
यदि यह विधेयक पारित होता है, तो यह वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा। इसके तहत:वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन अधिक पारदर्शी बनाया जाएगा।अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कड़े प्रावधान किए जाएंगे।सरकार को वक्फ बोर्डों के कामकाज पर अधिक नियंत्रण प्राप्त होगा।कई संपत्तियों के पुनर्निर्धारण और प्रशासनिक पुनर्गठन की संभावना बढ़ेगी।हालांकि, विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला करार दे रहा है और यह मामला अदालतों में भी चुनौती झेल सकता है।
यह विधेयक केवल कानूनी बदलाव नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। भाजपा सरकार इसे पारदर्शिता और सुशासन की दिशा में एक कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित करने के प्रयास के रूप में देख रहा है। यदि यह विधेयक पारित होता है, तो सरकार को राज्यसभा में भी इसे पारित कराने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को लेकर दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं। सरकार इसे सुधारात्मक कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देख रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विधेयक संसद में पारित होता है या नहीं और यदि होता है, तो इसका मुस्लिम समुदाय और देश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस विधेयक के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन केवल इसके क्रियान्वयन के बाद ही किया जा सकेगा।