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Thursday, July 17, 2025
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बिजली कटौती से फसलें सूखने के कगार पर, किसान नेताओं ने 10 घंटे निर्बाध आपूर्ति की उठाई मांग

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– जिले के सैकड़ों गांवों में मक्का, मूंगफली, तरबूज और मूंग की फसलें हो रही प्रभावित

फर्रुखाबाद। ग्रामांचल में बिजली आपूर्ति की लगातार कटौती से किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं। जिले के कमालगंज, मोहम्मदाबाद, शमसाबाद और मेरापुर क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में किसानों की फसलें अब सूखने के कगार पर पहुंच गई हैं। पहले जहां ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 10 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति होती थी, अब वह घटकर महज 5 घंटे रह गई है, वह भी टुकड़ों में—सुबह 3 घंटे और शाम को केवल 2 घंटे।

गर्मी की इस तेज़ लहर में मक्का, मूंगफली, तरबूज, खरबूजा, उरद, मूंग, चारा और हरी सब्ज़ियों की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता है। मगर लगातार बिजली कटौती के कारण किसान ट्यूबवेल नहीं चला पा रहे हैं, जिससे फसलें सूखने लगी हैं। कृषि विभाग की मानें तो जिले में करीब 1.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इन फसलों की बुआई की गई है, जिसमें से करीब 65 प्रतिशत खेत सिंचाई के लिए बिजली पर निर्भर हैं।

किसान नेता अरविंद राजपूत अशोक कटियार,संतोष शुक्ला आदि ने बिजली विभाग और प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि –”जब फसल को सबसे ज्यादा पानी की जरूरत है, तब बिजली विभाग आंखें मूंदे बैठा है। एक महीने पहले तक हमें सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक लगातार बिजली मिलती थी, लेकिन अब आधे समय के लिए भी बिजली नहीं दी जा रही है। अगर यही हाल रहा तो किसानों को आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरना पड़ेगा।”
उन्होंने प्रशासन से मांग की कि ग्रामीण क्षेत्रों में पुनः कम से कम 10 घंटे की लगातार बिजली आपूर्ति बहाल की जाए, ताकि खेतों की सिंचाई हो सके और फसलें बचाई जा सकें।

कमालगंज के किसान जगदीश प्रसाद ने बताया,”मैंने इस सीजन में 4 बीघा में मूंग और तरबूज की फसल बोई है। पानी न मिलने से पौधे मुरझाने लगे हैं। हर रोज़ इंजन चलाने की कोशिश करता हूं लेकिन बिजली रहती ही नहीं।”
वहीं मोहम्मदाबाद के किसान रमेश यादव ने कहा कि”हमारा तो सारा भरोसा ट्यूबवेल पर है। अब अगर समय से पानी नहीं मिला, तो फसल बर्बाद होगी और कर्ज चुकाना भी मुश्किल हो जाएगा।”

जब बिजली विभाग के स्थानीय अधिकारियों से संपर्क किया गया तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शहरी क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि ग्रामीण आपूर्ति में तकनीकी और लोड के कारण कटौती हो रही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जल्द सुधार की कोशिश की जा रही है।

ग्रामीण किसानों के सामने यह संकट केवल सिंचाई का नहीं, बल्कि उनके पूरे जीवन-यापन और आर्थिक स्थिरता का है। यदि समय रहते प्रशासन ने बिजली आपूर्ति सामान्य नहीं की, तो यह संकट बड़ी संख्या में किसानों को भारी नुकसान की ओर ले जा सकता है। किसान संगठन भी अब सक्रिय हो चुके हैं और आंदोलन की तैयारी की बात खुलकर कह रहे हैं।

जिस घर में कल उठने वाली थी बेटी की डोली वहां से आज उठी पिता की अर्थी

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उज्जैन। मेले में झूला लगाने वाले व्यक्ति की बेटी का आज माता पूजन था और कल उसके घर में शादी की शहनाई गूंजने वाली थी, लेकिन घर की खुशियां उस समय मातम में बदल गई जब मेले से देर रात घर लौट रहे पिता की सडक़ हादसे में मृत्यु हो गई। चिमनगंज थाना पुलिस ने मर्ग कायम कर शव का पीएम कराया है।

राजीव नगर निवासी 55 वर्षीय खेमचंद जैन पिता दयाराम जैन मेलों में झूले लगाने का काम करते थे। इस समय उन्होंने शाजापुर मेले में झूले लगा रखे थे। उनकी बेटी सलोनी की शादी चिरगांव झांसी में तय हुई है। उसका आज माता पूजन है और कल शादी होने वाली थी।

खेमचंद जैन के बेटे अभिषेक जैन ने बताया कि देर रात करीब 12 बजे मेला खत्म होने के बाद पिता खेमचंद अपनी टीवीएस एक्सेल मोपेड से उज्जैन आ रहे थे। मेले से उनके दोस्त सल्लू भाई और अफजल भी अलग-अलग बाइक पर पीछे चल रहे थे। रात करीब 2 से 3 बजे के बीच कानीपुरा से आगे खेमचंद जैन की मोपेड सडक़ पर खड़े डम्पर में पीछे से जाकर टकरा गई। दुर्घटना में उन्हें गंभीर चोंटे आई। राहगिरों ने उन्हें घायल हालत में देखा और एम्बुलेंस को कॉल किया। इस दौरान पीछे चल रहे सल्लूभाई और अफजल भी वहां आ गए। उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे जहां डॉक्टर ने परीक्षण के बाद खेमचंद को मृत घोषित कर दिया। दोस्तों ने ही पुलिस व परिजन को घटना की सूचना दी।

घर में पसरा सन्नाटा

खेमचंद जैन की बेटी सलोनी की शादी को लेकर घर में खुशी का माहौल था। आज के माता पूजन के लिए बैंड, ढोल पहले से बुक थे। मेहमान भी घर आ गए थे और देर रात उक्त हादसा हो गया। इसके बाद शादी वाले घर में सन्नाटा पसर गया। अभिषेक ने बताया कि पिता वर्षों से मेलों में झूले लगाने का काम करते थे। लोग उन्हें झूले वाले जैन साब के नाम से जानते थे। पुलिस ने कहा कि शव का पीएम कराने के बाद सडक़ पर खड़े डम्पर चालक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

लोकतंत्र को खत्म कर सामाजिक असमानता बढ़ा रही है मोदी सरकार: खरगे

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अहमदाबाद। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि देश में तानाशाही चल रही है तथा कुछ उद्योगपतियों को देश की संपत्ति सौंपी जा रही है जिससे अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ रही है।

श्री खरगे ने यहां कांग्रेस अधिवेशन के आखिरी दिन बुधवार को देश के विभिन्न हिस्सों से आये प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में आम लोगों के साथ अत्याचार हो रहा है, विपक्षियों को सताया जा रहा है, दलितों के प्रवेश से मंदिरों को गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया जा रहा है और आम लोगों को जिस तरह से परेशान किया जा रहा है, उसे माफ नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि समाज में सबसे बड़ी दिक्कत शिक्षा व्यवस्था की है। इसे बदलने की सख्त जरूरत है ताकि गरीब और दलित का बच्चा शिक्षा से वंचित ना रहे और उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने का हक मिले। आदिवासियों को देश का मूल निवासी बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लोग इन्हें वनवासी कह रहे हैं और नया शब्द देकर उन्हें किनारे करने का प्रयास कर रहे हैं। दलितों के साथ लगातार अत्याचार की घटनाएं हो रही है, लेकिन उन पर किसी का ध्यान नहीं है। मीडिया इस पर ध्यान नहीं देता है क्योंकि यदि इस तरह की घटना दिखाएंगे तो मालिकों को जेल की सजा हो सकती है।

श्री खरगे ने कहा कि कांग्रेस को ऊर्जावान लोगों की जरूरत है और उन्हीं के बल पर कांग्रेस को आगे बढ़ाया जा सकता है।
कांग्रेस में सबको सक्रिय होकर पार्टी को मजबूत करना है। उन्होंने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश दिया कि कांग्रेस में जो लोग जिम्मेदारी नहीं निभा सकते, उन्हें रिटायर होना चाहिए और जो योगदान नहीं करते उन्हें आराम करना चाहिए।
कांग्रेस अध्यक्ष ने मोदी सरकार को दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी तथा पिछड़ा वर्ग विरोधी बताया और कहा कि वह इन वर्गों की जनगणना नहीं करना चाहते, सरकारी दफ्तरों में इन वर्गों के लिए नौकरियां है लेकिन उनके लिए आरक्षित पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को पूंजीपत्तियों को बेचा जा रहा है और गरीबों के लिए नौकरी के रास्ते बंद करने की सोची समझी रणनीति चल रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार सांप्रदायिकता को बढ़ावा देती है और पुराने मुद्दों को सामने लाकर समाज को विभाजित करने का काम करती है। देश में अभिव्यक्ति की आजादी खत्म की जा रही है लोगों की पहनने तथा बोलने की आजादी खत्म की जा रही है। कमजोर वर्ग के लोगों को उनके हक से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने सांप्रदायिकता को जहर बताया और कहा कि इससे समाज दूषित हो रहा है तथा इसे खत्म किया जाना बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साबरमती के तट पर हो रहे इस अधिवेशन से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को न्याय पथ में संकल्प समर्पण और संघर्ष के साथ देश में खुशहाली के लिए काम करना है। उनका कहना था कि कांग्रेस संगठन को अब जिला स्तर पर मजबूत बनाया जाएगा और इसके लिए सभी जिला अध्यक्षों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा रही है।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को संसद में भी खत्म किया जा रहा है। वहां विपक्ष के नेता जनता की बात रखना चाहते हैं लेकिन उन्हें बोलने का अवसर नहीं दिया जाता है। सुबह चार बजे तक संसद चलती है लेकिन मणिपुर जैसे मुद्दे पर चर्चा नाम मात्र की होती है। संविधान को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।

श्री खरगे में फर्जी चुनाव का मुद्दा उठाया और कहा कि वोटिंग मशीनों में जो भी वोट डाले जाते हैं अन्य खाते में जाते है इसलिए पूरी व्यवस्था को बदला जाना चाहिए। महाराष्ट्र और हरियाणा में फर्जी वोटिंग के जरिए भाजपा ने सरकार बनाई है। ईवीएम वोटिंग तकनीकी में बदलाव लाया जाना जरूरी है।

1 मई से इन राज्यों में होंगे सिर्फ एक RRB बैंक, जानें क्यों लिया गया ये फैसला ?

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नई दिल्ली। 1 मई से देश की बैंकिंग सेवाओं में बहुत कुछ बदलने वाला है। बैंकों की संख्या कम होने वाली है। 15 बैंकों का विलय होने वाला है। 11 राज्यों के 15 बैंकों का मर्जर होगा। दरअसल सरकार ने 1 मई से ‘एक राज्य-एक आरआरबी’पॉलिसी लागू करने का फैसला किया है, जिसके तहत एक राज्य में एक ही ग्रामीण बैंक होंगे। यानी बड़ी संख्या में ग्रामीण बैंकों का विलय होने वाला है।

एक राज्य, एक बैंक

एक मई से देश के हर राज्य में सिर्फ एक ही क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) रहेंगे। इस आदेश को अमल में लाने के लिए वित्त मंत्रालय ने 11 राज्यों में 15 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के विलय से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी है। वित्‍त मंत्रालय के आदेश पर इन बैंकों का विलय किया जाएगा। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के विलय का यह चौथा चरण होगा, जिसके पूरा होते ही देश में आरआरबी की मौजूदा संख्या 43 से घटकर 28 रह जाएगी।

जानें क्या है ‘एक राज्य-एक आरआरबी’ पॉलिसी?

सरकार ने एक मई से एक राज्य में एक ग्रामीण बैंक पॉलिसी लागू की है। इसके तहत देश के 11 राज्यों- आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा एवं राजस्थान में मौजूद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का एक इकाई में विलय किया जाएगा. इस तरह ‘एक राज्य-एक आरआरबी’ के लक्ष्य को साकार किया जा सकेगा।

जानें किसका-किसमें होगा विलय?

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 की धारा 23ए(1) के तहत प्रदत्त शक्तियों के अनुरूप ये आरआरबी एक एकल इकाई में एकीकृत हो जाएंगे। इसी क्रम में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, इंडियन बैंक और भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्रायोजित चैतन्य गोदावरी ग्रामीण बैंक, आंध्र प्रगति ग्रामीण बैंक, सप्तगिरि ग्रामीण बैंक और आंध्र प्रदेश ग्रामीण विकास बैंक को आंध्र प्रदेश ग्रामीण बैंक के रूप में मिला दिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में मौजूद बड़ौदा यू.पी. बैंक, आर्यावर्त बैंक और प्रथमा यू.पी. ग्रामीण बैंक को उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक नाम की इकाई में मिला दिया गया है, जिसका मुख्यालय बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रायोजन के तहत लखनऊ में होगा।

पश्चिम बंगाल में संचालित बंगीय ग्रामीण विकास, पश्चिम बंग ग्रामीण बैंक और उत्तरबंग क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को पश्चिम बंगाल ग्रामीण बैंक में मिला दिया जाएगा।

दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक और उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक को मिलाकर बिहार ग्रामीण बैंक बनेगा जिसका मुख्यालय पटना में होगा।

गुजरात में बड़ौदा गुजरात ग्रामीण बैंक और सौराष्ट्र ग्रामीण बैंक को मिलाकर गुजरात ग्रामीण बैंक बनाया जाएगा।

अधिसूचना के मुताबिक, सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पास 2,000 करोड़ रुपये की अधिकृत पूंजी होगी। एकीकरण के पहले इन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में सरकार ने पूंजी भी डाली है.वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र ने दो साल की अवधि में अपने हिस्से के रूप में 5,445 करोड़ रुपये आरआरबी में डालने का फैसला किया था। वित्त वर्ष 2023-24 में आरआरबी का प्रदर्शन कई मापदंडों पर ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया. आरआरबी ने उस साल 7,571 करोड़ रुपये का अबतक का सबसे अधिक एकीकृत शुद्ध लाभ दर्ज किया और उनका एकीकृत पूंजी पर्याप्तता अनुपात 14.2 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्चस्तर पर था।

भाजपा सांसद प्रतिनिधि रमेश राजपूत पर हमला: सत्ता पक्ष के भी अब सुरक्षित नहीं?

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फर्रुखाबाद जिले के अमृतपुर क्षेत्र में हाल ही में घटित एक घटना ने न केवल कानून व्यवस्था की विफलता को उजागर किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक शक्तियां भी अब खतरे में हैं। भाजपा सांसद प्रतिनिधि और पूर्व जिला पंचायत सदस्य रमेश राजपूत पर दबंग भू-माफियाओं द्वारा अचानक और बेरहमी से किए गए हमले ने प्रशासनिक लापरवाही और सुरक्षा तंत्र में गंभीर कमी को सामने ला दिया है। यह संपादकीय इस घटना के विभिन्न पहलुओं, उसके संभावित कारणों, और इससे उत्पन्न होने वाले प्रभावों पर विस्तृत चर्चा करता है।

घटना उस वक्त घटित हुई जब अमृतपुर तहसील के राजस्व गांव चाचूपुर-जटपुरा और कटरी नीवलपुर की सीमा पर राजस्व तथा चकबंदी विभाग की टीम जमीन की पैमाइश में जुटी थी। इस महत्वपूर्ण कार्यवाही के दौरान पुलिस बल की अनुपस्थिति एक बड़ी चूक साबित हुई। दबंगों ने इस कमजोर पड़ती सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाते हुए, कटरी नीवलपुर टाटिया के निवासियों में से गुड्डू उर्फ अशोक, रामकिशोर, मुन्ना, पवन, धर्मसिंह, रवि समेत लगभग 15 से 20 अन्य अज्ञात दबंगों द्वारा रमेश राजपूत पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। पास खड़े ग्रामीणों ने इसे तमाशा समझकर देखा, जबकि पुलिस बल की अनुपस्थिति ने हमलावरों को खुली छूट दे दी।

यह सवाल उठता है कि इतने संवेदनशील समय में प्रशासन और पुलिस विभाग की यह उदासीनता किस कदर की लापरवाही का परिचायक है। जब राजस्व और चकबंदी विभाग जैसी महत्वपूर्ण कार्यवाहियों के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में कोई भी कमी छूट जाती है, तो इसका नतीजा न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक व्यवस्था पर भी भारी पड़ता है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि कानून व्यवस्था के प्रति पूर्ण सजगता बरती जाए।
इस घटना में प्रशासनिक समन्वय की अत्यंत कमी देखने को मिली। वास्तव में, जब जमीन की पैमाइश जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया चल रही थी, तब पुलिस बल की अनुपस्थिति ने इस हमले को संभव बना दिया। यह मुद्दा दो संभावनाओं में विभाजित होता है—या तो राजस्व तथा चकबंदी विभाग ने पुलिस को सही समय पर सूचना नहीं दी या फिर पुलिस विभाग ने प्राप्त सूचना के बावजूद मौके पर अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं कराई। दोनों ही परिस्थितियाँ एक व्यापक प्रशासनिक असफलता का चित्र प्रस्तुत करती हैं।

इस समस्या का मुख्य कारण प्रशासन में आंतरिक समन्वय की कमी और सुरक्षा तंत्र के प्रति उदासीनता हो सकती है। जहां एक ओर माफिया समूह अपने दबंग हौसलों के चलते कानून की उपेक्षा कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी एजेंसियाँ ऐसे मामलों में समय रहते हस्तक्षेप नहीं कर पाती। यह स्थिति न केवल आम जनता के लिए खतरनाक है, बल्कि यह उस विश्वास को भी ध्वस्त करती है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल में निहित है।

इस हमले की एक और महत्वपूर्ण वजह गंगा के किनारे स्थित सैकड़ों बीघा सरकारी जमीन पर भू-माफियाओं द्वारा किए जा रहे अवैध कब्जों से जुड़ी हुई है। ये भू-माफिया केवल जमीन पर कब्जा जमाने से संतुष्ट नहीं रहते, बल्कि जबरदस्ती गेहूं की फसल भी बो देते हैं। जब प्रशासन इस अवैध कब्जे को रोकने में असमर्थ रहता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कानून व्यवस्था और सरकारी निगरानी में किस तरह की गंभीर कमी आई है।

सरकारी जमीन पर जबरन कब्जा जमाना, एक ओर जहां आम जनता के हक पर वार है, वहीं इससे अपराधियों का आतंक बढ़ता है। यदि दबंग माफियाओं को बिना किसी रोक-टोक के काम करने दिया जाए, तो यह न केवल कृषि क्षेत्र की सुव्यवस्था को प्रभावित करेगा बल्कि नागरिकों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। ऐसे माहौल में सत्ता पक्ष के नेताओं का भी निशाना बनना स्वाभाविक हो जाता है, क्योंकि उनका होना एक तरह से प्रशासनिक नाकामी और सुरक्षा तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है।

यह घटना केवल एक व्यक्तिगत हमले तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़े राजनीतिक प्रभाव भी गंभीर चिंताओं का विषय बनते जा रहे हैं। जब सत्ता में बैठे नेता भी इस तरह की हिंसा का सामना करते हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में उन्हें सुरक्षा प्रदान की जा रही है? सत्ता पक्ष के नेताओं को सामान्यतः सुरक्षा कवच समझा जाता है, लेकिन आज के समय में ऐसा प्रतीत होता है कि दबंग समूहों के मुकाबले उनका सुरक्षा तंत्र भी असमर्थ हो गया है।
इस घटना ने न केवल राजनीतिक दलों के आंतरिक मतभेद और प्रशासनिक जटिलताओं को उजागर किया है, बल्कि आम जनता के विश्वास पर भी आघात किया है। यदि आज सत्ता पक्ष के नेता भी इस तरह से असुरक्षित महसूस करने लगें, तो यह स्थिति किसी भी लोकतंत्र के भविष्य पर गहरा असर डाल सकती है। जनता का विश्वास कायम रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन प्रशासनिक लापरवाहियां और सुरक्षा तंत्र की कमजोरी इस विश्वास को निरंतर हिला रही है।

इस प्रकार की घटनाएँ प्रशासनिक सुधार की अनिवार्यता को उजागर करती हैं। समस्या की जड़ में प्रशासनिक समन्वय की कमी, विभागीय निष्क्रियता और सुरक्षा व्यवस्था में मौजूद खामियाँ निहित हैं। इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए:

राजस्व, चकबंदी और पुलिस विभाग के बीच स्थायी समन्वय सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि संवेदनशील कार्यवाहियों के दौरान कोई भी खामियां न रह सकें। सूचना प्रसारण की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए नवीनतम तकनीकी उपायों का सहारा लिया जाना चाहिए

प्रशासनिक लापरवाही का सटीक कारण जानने के लिए स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। चाहे वह विभागीय असमंजस हो या सूचना की कमी, हर पहलू की गहन समीक्षा आवश्यक है।
संवेदनशील कार्यों के दौरान पुलिस बल की पूरी टुकड़ी मौजूद रहनी चाहिए। सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि किसी भी प्रशासनिक कार्यवाही के दौरान सुरक्षा एजेंसियाँ सक्रिय रूप से भाग लें ताकि अपराधियों को कोई भी अवसर न मिल सके।
सरकारी जमीन पर हो रहे अवैध कब्जों और जबरन फसल बोने के खिलाफ एक व्यापक अभियान की शुरुआत करनी होगी। इस दिशा में तेज कार्रवाई न केवल कानून व्यवस्था को मजबूत करेगी, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में भी कारगर सिद्ध होगी।

ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप आम जनता में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। जब संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त नेताओं पर भी हिंसा होती है, तो यह सवाल उठता है कि कानून व्यवस्था की वास्तविक स्थिति क्या है। आम नागरिकों का विश्वास सरकार एवं प्रशासन में तब ही कायम रह सकता है जब उन्हें यह महसूस हो कि अपराधियों के खिलाफ त्वरित और निर्णायक कार्रवाई हो रही है।

साथ ही, ऐसे मामलों में मीडिया की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के माध्यम से जनता तक पूरी जानकारी पहुंचाई जानी चाहिए ताकि सत्ता के हर स्तर पर पारदर्शिता बनी रहे। जनता का विश्वास तभी कायम रहेगा जब अपराधियों की गिरफ्तारी के साथ-साथ प्रशासनिक सुधारों की दिशा में भी ठोस कदम उठाए जाएँ।
भाजपा सांसद प्रतिनिधि रमेश राजपूत पर हुए हमले ने प्रशासनिक लापरवाही और सुरक्षा तंत्र की कमजोरी को दर्शाते हुए एक चिंताजनक परिदृश्य पेश किया है। यह घटना केवल एक राजनीतिक नेता पर हुए हमले से कहीं अधिक है—यह उस व्यवस्था के व्यापक गिरने का संकेत है जहाँ अब न तो कानून का डर बचा है और न ही सुरक्षा के सुनिश्चित हथियार। अगर प्रशासन और सरकार समय रहते अपनी कमजोरियों को दूर नहीं करतीं, तो भविष्य में ऐसा होने का डर हमेशा बना रहेगा।

संसदीय प्रतिनिधि, जो जनता के हितों की आवाज होनी चाहिए, जब इस तरह के हमलों का सामना करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सत्ता पक्ष के पास मौजूद सुरक्षा व्यवस्थाएं भी अब अपर्याप्त हैं। प्रशासन को चाहिए कि तुरंत दोषियों की गिरफ्तारी के साथ-साथ अपने सुरक्षा तंत्र में आवश्यक सुधार करें। ऐसे कदम तभी समाज में विश्वास और स्थिरता ला सकते हैं, जिससे लोकतंत्र की नींव मजबूत हो सके।

यह मामला प्रशासन में सुधार की अनिवार्यता को उजागर करता है। यदि प्रशासनिक लापरवाही और अनदेखी बरकरार रही, तो आगे चलकर यह न केवल राजनीतिक दलों के बीच मतभेद का कारण बनेगा, बल्कि आम जनता में भी निराशा और असुरक्षा की भावना को जन्म देगा। पुलिस बल की गैरमौजूदगी, सूचना में कमी, और विभागीय निष्क्रियता – इन सभी पहलुओं पर तत्काल ध्यान देना आवश्यक है।

आज का यह संघर्ष केवल कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी चेतावनी है कि यदि समाज के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय नहीं होगा, तो सुरक्षा का ताना-बाना पूरी तरह से टूट सकता है। राजनीतिक नेताओं की सुरक्षा, सामान्य नागरिकों का अधिकार, और प्रशासनिक जवाबदेही – इन सभी सिद्धांतों का सम्मान ही उस स्वस्थ लोकतंत्र की नींव है जिस पर देश का भविष्य निर्भर करता है।

आख़िरकार, जब राजनीतिक नेता भी इस तरह के हमलों का सामना करते हैं, तो यह सवाल करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि क्या हम वास्तव में एक सुरक्षित और न्यायपूर्ण समाज में रह रहे हैं। प्रशासनिक सुधार, पुलिस बल का सशक्तिकरण, और भू-माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई – ये सभी वह कदम हैं जिनके बिना किसी भी लोकतंत्र की कल्पना करना व्यर्थ है।

इस संपादकीय के माध्यम से यही अपील की जा रही है कि प्रशासन और सरकारी एजेंसियाँ जल्द से जल्द अपनी कमजोरियों को दूर करें और ऐसी घटनाओं को दोहराने से रोकने के लिए ठोस कदम उठाएँ। केवल तभी हम एक ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं, जहाँ न केवल कानून व्यवस्था कायम रहे बल्कि हर नागरिक को सुरक्षा और न्याय का अनुभव हो।

भाजपा सांसद प्रतिनिधि रमेश राजपूत पर हुए हमले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक लापरवाही और सुरक्षा तंत्र की कमजोरियाँ कहां तक जा सकती हैं। यह घटना हमें उस दिशा में सोचने पर मजबूर करती है जहाँ सुधार की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रशासन के हर विभाग को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए तत्परता से काम करना चाहिए ताकि लोकतंत्र की नींव और जनता का भरोसा संरक्षित रहे। इसी दिशा में, प्रशासनिक सुधार और पुलिस व्यवस्था के पुनर्गठन की मांग समय की घड़ी में एक अत्यावश्यक आवश्यकता बनकर उभरती है।

भाजपा सांसद प्रतिनिधि रमेश राजपूत को दबंगों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा

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– राजस्व विभाग की मौजूदगी में हुआ हमला, पुलिस नदारद!

फर्रुखाबाद | अमृतपुर। अब न तो कानून का डर बचा है और न ही सत्ता पक्ष के लोगों का रौब। ये साबित कर दिया है फर्रुखाबाद के अमृतपुर क्षेत्र में दबंग भू-माफियाओं ने, जिन्होंने बुधवार को भाजपा सांसद प्रतिनिधि व पूर्व जिला पंचायत सदस्य रमेश राजपूत पर खुलेआम हमला कर दिया।

घटना उस समय हुई जब राजस्व और चकबंदी विभाग की टीम अमृतपुर तहसील के राजस्व गांव चाचूपुर-जटपुरा व कटरी नीवलपुर की सीमा की पैमाइश कर रही थी।

जिस समय यह पैमाइश चल रही थी, मौके पर कोई भी पुलिस बल मौजूद नहीं था, और इसी का फायदा उठाकर कटरी नीवलपुर टाटिया निवासी गुड्डू उर्फ अशोक, रामकिशोर, मुन्ना, पवन, धर्मसिंह, रवि समेत 15-20 अन्य दबंगों ने रमेश राजपूत पर हमला कर दिया।

लाठी-डंडों से लैस भीड़ ने उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। पास खड़े ग्रामीण तमाशबीन बनकर सब कुछ देख रहे थे।
माना जा रहा है कि यह हमला गंगा के किनारे की सैकड़ों बीघा सरकारी ज़मीन पर हो रहे अवैध कब्जे को लेकर हुआ, जहाँ दबंगों ने जबरन गेहूं की फसल बो रखी है। इस जमीन की पैमाइश करने पहुंची टीम को देख भू-माफियाओं के गुर्गे बौखला गए और हिंसा पर उतर आए।

सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब यह विवादित पैमाइश हो रही थी, तब पुलिस को मौके पर क्यों नहीं बुलाया गया? क्या यह राजस्व व चकबंदी विभाग की लापरवाही थी या फिर माफियाओं को पहले से जानकारी थी कि पुलिस नहीं होगी?
राजेपुर थाने में पीड़ित रमेश राजपूत की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। थाना अध्यक्ष योगेंद्र सोलंकी ने कहा है कि जल्द ही आरोपियों की गिरफ्तारी की जाएगी।अब सवाल यह है – क्या भाजपाई भी अब सुरक्षित नहीं?