भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप, जांच एजेंसियों की भूमिका और सड़कों पर उतरते नेताओं की तस्वीरें कोई नई बात नहीं हैं। परंतु जब यह घटनाक्रम देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा के बीच हो, तो इसका राजनीतिक और जनमत पर असर दूरगामी हो सकता है। “नेशनल हेराल्ड” मामला, जो मूलतः एक आर्थिक लेन-देन से जुड़ा है, आज एक विशाल राजनीतिक हथियार में तब्दील हो चुका है। इस मामले की जांच, उसके कानूनी पहलू, और भाजपा द्वारा जगह-जगह किए जा रहे विरोध प्रदर्शन इस सम्पूर्ण विषय को राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बना चुके हैं।
‘नेशनल हेराल्ड’ एक ऐतिहासिक अख़बार था जिसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शुरू किया था। इसका उद्देश्य अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठाना था। समय के साथ यह अखबार ‘एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड’ (AJL) के अधीन आता रहा। 2010 में कांग्रेस पार्टी ने यह दावा किया कि अखबार की गिरती आर्थिक हालत को संभालने के लिए उन्होंने पार्टी कोष से AJL को 90 करोड़ रुपये का ऋण दिया। बाद में एक गैर-लाभकारी संस्था ‘यंग इंडियन’ (Young Indian) बनाई गई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी के 76 प्रतिशत शेयर हैं। इस संस्था ने AJL की सारी संपत्तियाँ अपने नाम कर लीं।
यहीं से विवाद की शुरुआत हुई। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि गांधी परिवार ने 2,000 करोड़ रुपये की संपत्ति हथियाने के लिए साजिश रची। मामला आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय (ED) और अदालतों तक पहुंचा।
कांग्रेस के खिलाफ भाजपा की यह राजनीतिक लड़ाई केवल अदालतों तक सीमित नहीं रही। ईडी द्वारा राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाए जाने के बाद कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” बताया। इसके जवाब में भाजपा ने ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन’ के रूप में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए।
बीजेपी के विरोध प्रदर्शनों की खासियत यह रही कि उन्होंने इसे “जनजागरण अभियान” के रूप में प्रचारित किया। भाजपा ने यह सन्देश देने की कोशिश की कि कांग्रेस के शीर्ष नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और देश की जनता के पैसों से निजी लाभ लिया गया है। पार्टी नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, सोशल मीडिया पर अभियान चलाया, और जिला स्तर तक धरने-प्रदर्शन किए। भाजपा की युवा शाखा और महिला मोर्चा ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
यह प्रश्न भारतीय राजनीति में अक्सर उठता रहा है कि क्या भाजपा सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त है या फिर ये जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्ष को दबाने की रणनीति है? ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठते हैं, खासकर तब जब विपक्षी नेताओं के खिलाफ अचानक छापे पड़ते हैं और सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोग इन एजेंसियों की रडार से दूर रहते हैं।
विपक्षी दल इस पर लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि जांच एजेंसियों का राजनीतिक उपयोग किया जा रहा है। नेशनल हेराल्ड मामले में भी कांग्रेस का यही आरोप है कि भाजपा जनता के असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए गांधी परिवार को निशाना बना रही है।
जहां एक ओर भाजपा इस मुद्दे को भ्रष्टाचार से जोड़कर जनता के सामने प्रस्तुत कर रही है, वहीं दूसरी ओर आम जनमानस में इस मुद्दे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोग इसे राजनीतिक बदले की भावना मानते हैं, वहीं कुछ लोग मानते हैं कि गांधी परिवार भी किसी विशेषाधिकार के दायरे में नहीं होना चाहिए और कानून सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
शहरी वर्ग में, खासकर पढ़े-लिखे मतदाताओं के बीच इस मामले की जानकारी है और वे इसे गंभीरता से लेते हैं। परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी यह मुद्दा उतना प्रभावी नहीं हो पाया है, जहां महंगाई, बेरोजगारी, बिजली-पानी जैसे मुद्दे अधिक प्रासंगिक हैं।
मीडिया का रवैया भी इस पूरे मामले में विभाजित रहा है। कुछ प्रमुख न्यूज़ चैनलों और अखबारों ने भाजपा के आरोपों को प्रमुखता से दिखाया और कांग्रेस की स्थिति को रक्षात्मक बनाने का प्रयास किया। वहीं कुछ स्वतंत्र और वैकल्पिक मीडिया संस्थानों ने इस विषय को एक पक्षीय कार्यवाही बताया और गांधी परिवार की छवि को समर्थन देने की कोशिश की।
सोशल मीडिया पर यह मामला खूब उछला। भाजपा आईटी सेल और कांग्रेस सोशल मीडिया टीम के बीच जमकर वाकयुद्ध चला। मीम्स, हैशटैग अभियान और वीडियो क्लिप्स के माध्यम से जनता को प्रभावित करने की कोशिशें हुईं।
यह बेहद चिंताजनक बात है कि राजनीतिक दलों ने कानूनी मामलों को न्यायालय में सुलझाने के बजाय सड़कों पर लड़ने की प्रवृत्ति बढ़ा दी है। दोनों ही पक्ष जनता की सहानुभूति पाने के लिए ‘राजनीतिक उत्पीड़न’ और ‘भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा’ की भूमिका निभाते हैं।
इससे न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को ठेस पहुँचती है, बल्कि आम जनता का भरोसा भी कमजोर होता है। क्या न्यायपालिका और जांच एजेंसियों को निष्पक्ष काम करने का अवसर दिया जाएगा या उन्हें भी राजनीतिक अखाड़ा बना दिया जाएगा?
नेशनल हेराल्ड मामला अब एक कानूनी लड़ाई से अधिक राजनीतिक संघर्ष बन चुका है। भाजपा इसे 2024 के आम चुनाव के लिए एक मुद्दा बनाकर गांधी परिवार को भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है, वहीं कांग्रेस इसे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानती है।
यह तय करना न्यायपालिका का काम है कि क्या वास्तव में कोई आर्थिक अनियमितता हुई या नहीं। परंतु राजनीतिक स्तर पर यह मामला आगामी वर्षों तक बहस और संघर्ष का केंद्र बना रहेगा।
नेशनल हेराल्ड मामला आज भारत की राजनीति का ऐसा मुद्दा बन गया है, जो केवल एक आर्थिक विवाद नहीं रह गया, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच विचारधारा और नेतृत्व के संघर्ष का प्रतीक बन चुका है। भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध का स्वरूप दिया है और कांग्रेस इसे लोकतंत्र की हत्या बता रही है।
जनता के सामने अब असली चुनौती यह है कि वह राजनीतिक नारों और एजेंसियों की कार्रवाइयों के बीच सच्चाई को पहचान सके। यदि देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें, और सभी राजनीतिक दल उनका सम्मान करें, तभी देश में न्याय और लोकतंत्र की वास्तविक स्थापना हो सकती है।