ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा शिकार: हिमालय के ग्लेशियर
शरद कटियार
दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव साफ नजर आने लगे हैं, लेकिन सबसे बड़ा असर हिमालयी ग्लेशियरों (Glaciers) पर पड़ रहा है। भारत, नेपाल और भूटान के हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियर, जो करोड़ों लोगों को पानी उपलब्ध कराते हैं, अब तेजी से पिघल रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1901 से अब तक वैश्विक औसत तापमान में 1.1°C की वृद्धि हुई है, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में यह वृद्धि 1.8°C तक पहुंच चुकी है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. माइकल पीटर्स के अनुसार,
“अगर अगले 50 वर्षों में वैश्विक तापमान को नियंत्रित नहीं किया गया, तो हिमालयी क्षेत्र के 75% ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे, जिससे एशिया की बड़ी नदियों में जल संकट पैदा होगा।”
📉 हिमालयी ग्लेशियर कितनी तेजी से पिघल रहे हैं?
📌 ICIMOD (International Centre for Integrated Mountain Development) की 2023 रिपोर्ट के अनुसार:
पिछले 50 वर्षों में हिमालयी ग्लेशियरों की बर्फ 40% तक घट चुकी है।
2100 तक अगर ग्लोबल वॉर्मिंग को नियंत्रित नहीं किया गया, तो हिमालय के 75% ग्लेशियर पूरी तरह खत्म हो सकते हैं।
2011-2020 के दशक में हिमालयी बर्फ 1950-2000 के मुकाबले दोगुनी तेजी से पिघल रही है।
650 से अधिक ग्लेशियर झीलें बन चुकी हैं, जो कभी भी बाढ़ और भूस्खलन का कारण बन सकती हैं।
जिनेवा स्थित वर्ल्ड क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम (WCRP) के वैज्ञानिक डॉ. जूलियन स्टोर्स का कहना है:
“हिमालयी ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना सिर्फ एक क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक आपदा का संकेत है। इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया की जल आपूर्ति, कृषि, मौसम और पारिस्थितिकी पर पड़ेगा।”
बढ़ता प्रदूषण: ग्लेशियरों के विनाश का मुख्य कारण
ग्लेशियरों के पिघलने का एक बड़ा कारण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर है। औद्योगिक क्रांति के बाद से मानव गतिविधियों के कारण कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और अन्य प्रदूषकों की मात्रा तेजी से बढ़ी है।
📌 NASA के मुताबिक,
1850 के बाद से CO₂ स्तर 280 ppm से बढ़कर 420 ppm हो चुका है।
भारत में हर साल 150 करोड़ टन से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है, जो दुनिया के कुल उत्सर्जन का 7% है।
2023 में वायु प्रदूषण से भारत में 23 लाख से ज्यादा मौतें हुईं।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. अर्नेस्ट होल्ट के अनुसार, “हिमालय पर काला कार्बन (Black Carbon) जमा होने के कारण बर्फ तेजी से पिघल रही है। यह कार्बन डीजल वाहनों, कोयला संयंत्रों और जंगल की आग से निकलता है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले 50 वर्षों में एशिया के कई बड़े शहर पानी की भारी किल्लत झेलेंगे।”
🚨 पिघलते ग्लेशियरों के संभावित दुष्प्रभाव
❗ बाढ़ और जल संकट: ग्लेशियरों के तेज पिघलने से गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों का प्रवाह असंतुलित हो सकता है, जिससे बाढ़ और सूखे की समस्या बढ़ सकती है।
❗ भू-स्खलन और आपदाएं: ग्लेशियरों के कमजोर होने से हिमस्खलन और भूस्खलन जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं।
❗ फसलों पर असर: अनियमित जल प्रवाह से खेती पर असर पड़ेगा, जिससे खाद्यान्न संकट पैदा होगा।
❗ पेयजल संकट: भारत, पाकिस्तान और नेपाल के 70 करोड़ से अधिक लोग हिमालयी नदियों पर निर्भर हैं। यदि ग्लेशियर खत्म हो गए, तो इन क्षेत्रों में गंभीर जल संकट खड़ा हो जाएगा।
💡 समाधान: हम क्या कर सकते हैं?
✅ नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: कोयला और पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम करके सौर और पवन ऊर्जा को अपनाना।
✅ वनों की कटाई रोकना: अधिक वृक्षारोपण करके कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करना।
✅ सख्त प्रदूषण नियंत्रण कानून लागू करना: उद्योगों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करना।
✅ प्लास्टिक का उपयोग कम करना: सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना।
✅ स्वच्छ ऊर्जा नीति लागू करना: सरकार और उद्योगों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए सख्त उपाय अपनाने चाहिए।
🌿 निष्कर्ष: समय रहते चेतना होगा!
अगर हम अभी भी नहीं जागे, तो हिमालयी ग्लेशियरों का विनाश केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया को तबाह कर सकता है। आने वाली पीढ़ियों के लिए पीने का पानी और सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा भी दुर्लभ हो जाएगी।
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