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Monday, December 2, 2024

कैसा सबका साथ सबका विकास : लखनऊ कमिश्ररेट के पुलिस थानों में जाति व्यवस्था हावी

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यूथ इण्डिया संवाददाता
लखनऊ। पुलिस कमिश्नरेट के थानों में अधिकारियों की नियुक्तियों को लेकर जातिगत असंतुलन का मामला सामने आया है। अधिवक्ता वरखा वर्मा द्वारा जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी से स्पष्ट हुआ कि थानों में नियुक्तियों में सवर्ण जातियों का प्रभुत्व है, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति/जनजाति की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है।
सवर्ण वर्ग का दबदबा
सूचना के अनुसार, लखनऊ के कुल 54 थानों में 45 प्रभारी निरीक्षक और 9 थानाध्यक्ष/ उपनिरीक्षक तैनात हैं। इनमें से सवर्ण जाति के 31 अधिकारी हैं, जिनकी हिस्सेदारी 80.65फीसद है। अन्य पिछड़ा वर्ग के 11 अधिकारी हैं, जिनकी हिस्सेदारी केवल 20.37फीसद है। अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के मात्र 5 अधिकारी तैनात हैं, जो 9.26फीसद है।
सामाजिक संतुलन पर सवाल
इस रिपोर्ट ने प्रशासनिक नियुक्तियों में जातिगत संतुलन की गंभीर कमी को उजागर किया है। सवर्ण जातियों का लगभग 81फीसद प्रभुत्व न केवल पिछड़े वर्गों और दलितों को हाशिए पर रखता है, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसर के सिद्धांतों पर भी सवाल खड़े करता है।
नियुक्ति प्रक्रिया पर उठे सवाल
आवेदिका वर्मा द्वारा मांगी गई जानकारी में यह भी स्पष्ट किया गया कि नियुक्तियों में अधिकारियों की मंजूरी के बावजूद, जातिगत असंतुलन को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
इस मामले के सामने आने के बाद, कई सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने प्रशासन पर जातिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि नियुक्तियों में सवर्ण वर्ग को प्राथमिकता देकर अन्य वर्गों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के असंतुलन से समाज में असमानता बढ़ती है। संविधान में दिए गए सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। पुलिस प्रशासन ने इस मुद्दे पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया है, लेकिन जानकारी में स्पष्ट किया गया है कि सभी नियुक्तियां उच्चाधिकारियों की मंजूरी से की गई हैं।
इस मामले को उजागर करने वाली आवेदिका ने मांग की है कि नियुक्तियों में सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी जाए और पिछड़े वर्गों तथा दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए। अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस मुद्दे पर क्या कदम उठाता है। क्या यह सिर्फ एक और मामला बनकर रह जाएगा या फिर सामाजिक न्याय के लिए कोई ठोस पहल होगी?

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