अशोक भाटिया , मुंबई
कुंभ मेले की सफलता को देखते हुए कुंभ मेले के विरोधियों को उनकी हरकतों से पहचाना जा सकता है .कुछ समय पूर्व समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव नै कहा था कि प्रयागराज में उतनी भीड़ नहीं है जितनी बताई जा रही है ।इसके अलावा ‘हैलो, महाकुंभ में बम ब्लास्ट होगा…’ वगेरह ऐसे कई फेक वीडियो (Fake Video) फैलाये जा रहे है जिससे कुंभ विरोधियों की हताशा स्पष्ट झलकती है .
कुंभ मेले में हाल ही में एक बड़ी चौंकाने वाली घटना घटी। आचार्य प्रशांत के नाम से एक झूठा पोस्टर वायरल हुआ, जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने कुंभ को अंधविश्वास बताया है। जाच में यह दावा पूरी तरह से फर्जी निकला। आचार्य प्रशांत ने ऐसा कोई बयान कभी नहीं दिया। लेकिन इस झूठी खबर के कारण हिंसा भड़क गई। मौके पर मौजूद पूर्व सैनिक मोहन सिंह ने बताया कि यह पूरी तरह से सुनियोजित षड्यंत्र था।कुछ लोगों ने पहले फर्जी पोस्टर वायरल किया और फिर कुंभ में वितरित की जा रही आचार्य प्रशांत द्वारा लिखित भगवद गीता, उपनिषद, महाभारत, दुर्गा सप्तशती, शिव सूत्र और रामायण जैसी पुस्तकों को जला दिया। इतना ही नहीं, पुस्तक वितरकों के साथ मारपीट भी की गई। इस फेक न्यूज़ के फैलाने में जयपुर डायलॉग्स के संजय दीक्षित, इंडिया स्पीक्स डेली के संजय देव और एबीपी न्यूज़ जैसे संस्थानों की संलिप्तता सामने आई है। डिजिटल युग में फेक न्यूज़ का ख़तरा अब धर्म के क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है।
डिजिटल युग में फर्जी खबरें (Fake News) बड़ी चुनौती बनकर उभरी हैं, जिसमें जनता को गुमराह करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित करने की क्षमता है। हालाँकि, गलत सूचना को संबोधित करने में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को संतुलित करना आवश्यक है। चुनौती नागरिकों के असहमति व्यक्त करने या राय व्यक्त करने के अधिकार का उल्लंघन किए बिना गलत सूचना का मुकाबला करने में है। यह पवित्रता ही है जो समाचार को समाज में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। लेकिन फर्जी खबरों की परिघटना समाचार के मूल मूल्यों को निशाना बनाती है, जो असामाजिक तत्वों, अफवाह फैलाने वालों या उन उच्च और शक्तिशाली लोगों के निजी हितों को पोषित करती है, जो समाचार की आड़ में अपना निजी एजेंडा आगे बढ़ाते हैं। जब फर्जी खबरों को डिजिटल पंख लग जाते हैं, तो यह वायरल पत्रकारिता में बदल जाती है। यदि इसका दुरुपयोग किया जाता है, तो यह हिंसा और घृणा फैला सकती है, तबाही मचा सकती है और नागरिक समाज के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।
फैक्ट-चेकिंग संगठन समाचारों की पुष्टि करने और लोगों को फेक न्यूज़ के बारे में शिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन संगठनों को सरकार और मीडिया द्वारा प्रोत्साहित एवं समर्थित किये जाने की आवश्यकता है। ऐसी ख़बरें रोकने के लिए आजकल कुछ चैनलों व समाचारपत्रों के आजतक फैक्ट चेक न्यूज़ में किसी भी तरह का राजनीतिक या परिस्थितिजन्य भेदभाव न करते हुए किसी ख़बर को फैक्ट चेक के लिए चुनने में पूरी तरह से निष्पक्ष रहते हैं. फैक्ट चेक प्रक्रिया शुरू करने के लिए किसी दावे के चयन में पहला कदम दर्शकों से मिले अनुरोध को देखना होता है. संभावित सूचनाओं, दुष्प्रचार, संदिग्ध वायरल पोस्ट और गलत सूचनाओं, जैसे किसी सार्वजनिक हस्ती के विवादास्पद बयान आदि के लिए लगातार मेनस्ट्रीम और सोशल मीडिया पर नजर रखा जाता है. कीस भी तरह के उकसाने वाले हैशटैग या वायरल वीडियो, मीम्स, फेसबुक पेज और वॉट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप के द्वारा पहुंच सकते हैं.एक बार जब फैक्ट चेक के लिए सामग्री तय हो जाती है, तो रिसर्च और जांच के लिए मौके पर जाकर क्रॉस वेरिफिकेशन किया जाता है. फिर ख़बर तैयार करना और उसकी समीक्षा के लिए हम सत्यापित तथ्यों को देखते हैं और प्रासंगिक दृष्टिकोण के साथ ही सरल, सटीक और पारदर्शी तरीके से पेश करते हैं. फैक्ट चेक की ख़बर के प्रकाशन के बाद पाठकों और दर्शकों द्वारा स्टोरी पर या सोशल मीडिया के द्वारा की गई टिप्पणियों के रूप में मिले फीडबैक पर गहरी नजर रखी जाती है.
पत्र सूचना कार्यालय की माने तो उसकी तथ्य-परीक्षण इकाई ने नवंबर 2019 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक गलत सूचना के 1,160 मामलों का भंडाफोड़ किया है। फेक न्यूज़ रोकने के लिए व्यक्तियों को अपने सोशल मीडिया उपयोग के लिये ज़िम्मेदारी लेने की आवश्यकता है। उन्हें असत्यापित समाचारों को साझा करने से बचने और ऑनलाइन कंटेंट पर विवेकपूर्ण दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है।स्कूलों में और आम समाज में आलोचनात्मक सोच कौशल को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।लोगों को पढ़ी-सुनी गई बातों पर सवाल पूछ सकने और सूचना के विश्वसनीय स्रोतों की तलाश के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 505 के तहत ‘फर्ज़ी/झूठी ख़बर/अफवाह का प्रसार’ करने वाले लोगों के विरुद्ध दर्ज मामलों की संख्या में 214% की वृद्धि हुई।भारत में फेक न्यूज़ के विरुद्ध सुदृढ़ कानूनों की ज़रूरत है, जबकि मीडिया संगठनों द्वारा तथ्य-परीक्षण (fact-checking) को एक नियमित अभ्यास के रूप में अपनाने और अधिक से अधिक जन जागरूकता का सृजन करने की आवश्यकता है।
भारत में फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने की राह में कई चुनौतियाँ है जैसे भारत की डिजिटल साक्षरता दर अभी भी कम है, जिससे फेक न्यूज़ का प्रसार आसान हो जाता है, क्योंकि लोगों के पास प्रायः समाचार स्रोतों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने का कौशल नहीं होता है। Oxfam की ‘इंडिया इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2022: डिजिटल डिवाइड’ के अनुसार, देश की लगभग 70% आबादी डिजिटल सेवाओं के लिये कनेक्टिविटी के अभाव या ख़राब कनेक्टिविटी की स्थिति रखती है।निर्धनतम 20% परिवारों में से केवल 2.7% के पास कंप्यूटर और 8.9% के पास इंटरनेट की सुविधा है।भारत में राजनीतिक उद्देश्यों के लिये, विशेषकर चुनावों के दौरान, फेक न्यूज़ का प्रायः उपयोग किया जाता है। राजनीतिक दल जनमत में हेरफेर के लिये फेक न्यूज़ का उपयोग करते हैं, जिससे उनके प्रसार को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
भारत में तथ्य-परीक्षण अवसंरचना सीमित है और कई मौजूदा तथ्य-परीक्षण संगठन तथ्य-परीक्षण इकाइयाँ) आकार में छोटे हैं तथा वित्तपोषण की कमी का सामना कर रहे हैं।वर्तमान में भारत में फेक न्यूज़ के प्रसार के लिये कठोर दंड का भी अभाव है, जिससे लोगों को फेक न्यूज़ सृजन और प्रसार से भय दिखाकर रोकना कठिन हो जाता है।
भ्रामक सूचनाओं पर अंकुश लगाने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है सोशल मीडिया मंचों द्वारा पारदर्शिता की कमी।ये मंच कुछ प्रकार की सूचना का खुलासा करते भी हैं तो डेटा को प्रायः इस तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाता है जो आसान विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता हो।
पहचान की गुप्तता का सर्वप्रमुख कारण है प्रतिशोधी सरकारों के विरुद्ध सच बोलने में सक्षम होना या ऑनलाइन व्यक्त विचारों को ऑफ़लाइन दुनिया में वास्तविक व्यक्ति से संबद्ध किये जाने से बचना। बिना किसी असुरक्षा के लोगों को अपने विचार साझा कर सकने में मदद करने के बावजूद, यह इस अर्थ में अधिक हानि करता है कि लोग बिना कोई परिणाम भुगते भ्रामक सूचनाओं का प्रसार कर सकते हैं।
फेक न्यूज को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पूर्व एक सख्त संदेश जारी किया था । उन्होंने लोगों से आग्रह करते हुए कहा कि ‘कुछ भी फॉरवर्ड करने से पहले 10 बार सोचें।’ पीएम ने कहा था कि फेक न्यूज बेहद खतरनाक है और इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई एक फर्जी खबर भी बढ़कर राष्ट्रीय चिंता का विषय बनने की क्षमता रखती है, लिहाजा उन पर लगाम कसने के लिए देश को उन्नत तकनीक पर जोर देना होगा।प्रधानमंत्री ने ऐसी किसी भी जानकारी को दूसरों के पास आगे भेजने से पहले विश्लेषण और सत्यापित करने के बारे में लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी जानकारी को आगे भेजने से पहले 10 बार सोचना चाहिए और इस पर विश्वास करने से पहले इसे सत्यापित करना अत्यंत आवश्यक है। हर मंच पर ऐसी सूचनाओं को सत्यापित करने के तरीके हैं। यदि आप विभिन्न स्रोतों के माध्यम से इसकी जांच परख करेंगे तो आपको इसका एक नया संस्करण मिलेगा।’’प्रधानमंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया को सिर्फ जानकारी के स्रोत के रूप ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक फर्जी खबर भी बढ़कर राष्ट्रीय चिंता का विषय बनने की क्षमता रखती है। उन्होंने कहा कि नौकरियों में आरक्षण के बारे में पूर्व में चली फर्जी खबरों के कारण भारत को नुकसान भी हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘इनके प्रवाह को रोकने के लिए हमें उन्नत प्रौद्योगिकी पर जोर देना होगा।’’