पिछले कुछ वर्षों में भारतीय उद्योग जगत में अडानी और अंबानी (Adani-Ambani) जैसे बड़े उद्योगपतियों की बढ़ती ताकत ने देशभर में बहस का विषय बना दिया है। जहां एक ओर इनकी सफलता को भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति का प्रतीक माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और विवादों का केंद्र बना दिया गया है। हाल ही में अमेरिका में अडानी समूह पर लगे रिश्वतखोरी के आरोप, जिन्हें अमेरिकी न्याय विभाग ने खारिज कर दिया, इस बात का उदाहरण हैं कि भारत में कारोबार और राजनीति कितने गहरे जुड़े हुए हैं।
अडानी समूह पर आरोपों की खबरों ने भारत में मोदी सरकार के विरोधियों को एक बड़ा हथियार दे दिया था। हालांकि, जब ये आरोप झूठे साबित हुए, तो यह साफ हो गया कि विरोध केवल राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए था। शिवसेना की प्रवक्ता मनीषा कायंदे ने हाल ही में बयान दिया कि राहुल गांधी और उनकी टीम उद्योगपतियों को केवल मोदी सरकार को निशाना बनाने के लिए टारगेट कर रही है। यह विरोध केवल एक राजनीतिक चाल है, जिसका मकसद प्रगति को रोकना है।
उदाहरण के तौर पर केरल के विझिंजम में बन रहा अडानी पोर्ट देखा जा सकता है। यह पोर्ट देश का पहला डीप-वॉटर कंटेनर पोर्ट होगा, जहां बड़े-बड़े जहाज आ सकेंगे। यह परियोजना भारत के समुद्री कारोबार को विदेशी बिचौलियों से मुक्त कर सकती है, लेकिन इसका भी विरोध हो रहा है। विरोध करने वाले इसे पर्यावरण और पुनर्वास के मुद्दों से जोड़ते हैं, लेकिन इसके पीछे राजनीति और बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
विझिंजम पोर्ट की परियोजना 2015 में मंजूर हुई थी, जब केरल में कांग्रेस और यूडीएफ़ की सरकार थी। तब मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने इस पोर्ट की जरूरत को समझते हुए इसे मंजूरी दी। आज यह पोर्ट भारत के समुद्री कारोबार को सिंगापुर, दुबई, और कोलंबो जैसे विदेशी हब से मुक्त कर सकता है। वर्तमान में भारत से आने-जाने वाला सामान इन विदेशी बंदरगाहों पर निर्भर है, जिससे देश को भारी लागत चुकानी पड़ती है।
यदि यह पोर्ट बन जाता है, तो न केवल केरल बल्कि देश के अन्य राज्यों को भी सीधा फायदा होगा। बड़े जहाज भारत में सीधे आ सकेंगे, जिससे विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता कम होगी। इसके अलावा, यह पोर्ट चीन और श्रीलंका द्वारा बनाए जा रहे कोलंबो पोर्ट सिटी जैसे परियोजनाओं को कड़ी चुनौती देगा। फिर भी, स्थानीय विरोध और राजनीतिक अड़चनों के कारण यह परियोजना सुचारू रूप से आगे नहीं बढ़ पा रही है।
अडानी पोर्ट का विरोध करने वालों का दावा है कि यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है और स्थानीय लोगों का सही तरीके से पुनर्वास नहीं हुआ है। लेकिन यह विरोध उन संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा भी प्रायोजित प्रतीत होता है, जो राष्ट्रीय प्रगति के बजाय अपने राजनीतिक हित साधने में लगे हैं। केरल में विझिंजम पोर्ट को लेकर हिंसा और प्रदर्शन इस बात का प्रमाण हैं कि इस विरोध में बाहरी शक्तियों का भी हाथ हो सकता है।
यह विरोधाभास तब और बढ़ जाता है जब कांग्रेस, जिसने इस परियोजना की नींव रखी थी, अब इसके खिलाफ खड़ी दिखती है। राहुल गांधी और उनकी टीम इस पोर्ट और इसे जोड़ने वाले हाइवे का विरोध कर रही है। यह विरोध न केवल स्थानीय विकास बल्कि भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों के खिलाफ भी है।
अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपति अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए काम करते हैं, जो स्वाभाविक है। लेकिन, उनके बढ़ते कारोबार से देश को रोजगार, आर्थिक विकास, और वैश्विक स्तर पर पहचान भी मिलती है। अडानी पोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स से न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, बल्कि यह भारत को समुद्री व्यापार में आत्मनिर्भर भी बनाएगा।
हालांकि, उद्योगपतियों को आलोचना से परे नहीं रखा जाना चाहिए। जरूरी है कि उनके कामकाज की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। सवाल यह होना चाहिए कि क्या उनकी कंपनियां कर्मचारियों का शोषण कर रही हैं? क्या समय पर वेतन दिया जा रहा है? क्या पर्यावरण संरक्षण के लिए सही कदम उठाए जा रहे हैं? आलोचना का आधार ये सवाल होने चाहिए, न कि उनकी बढ़ती संपत्ति।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज की राजनीति में विकास परियोजनाएं भी विवादों का शिकार हो रही हैं। कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों को चाहिए कि वे देशहित को प्राथमिकता दें और निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए प्रगति में बाधा न डालें। राहुल गांधी द्वारा अडानी की आलोचना और राजस्थान में उन्हीं के निवेश का स्वागत करना, राजनीतिक विरोधाभास का उदाहरण है।
देश को यह समझने की जरूरत है कि अडानी, अंबानी, या अन्य बड़े उद्योगपतियों का बढ़ना केवल उनके लिए नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन के लिए भी फायदेमंद है।
केरल पोर्ट का मामला भारतीय राजनीति और विकास के बीच की खाई को स्पष्ट करता है। यह समय है कि हम अपनी प्राथमिकताओं को ठीक करें। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे विकास परियोजनाओं का समर्थन करें और व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए उन्हें बाधित न करें। अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपति केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि देश की आर्थिक शक्ति का प्रतीक हैं। उनके विकास से देश को लाभ ही होगा, बशर्ते यह पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ हो।
राजनीति के लिए विकास को कुर्बान करना, देश के लिए सबसे बड़ी त्रासदी होगी। जनता अब समझदार है और हर पहलू को देखकर अपनी राय बना सकती है। यही समय की मांग है कि हम राष्ट्रीय हित को राजनीति से ऊपर रखें।