फर्जी मुकदमों का कारखाना : फर्रुखाबाद में माफिया अनुपम दुबे का नया हथियार, वकील अवधेश मिश्रा बना मास्टरमाइंड

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– पुलिस प्रशासन ने जब तौबा की तो न्यायलय का सहारा लेकर मुक़दमे दर्ज करवा कर शुरू हुआ खेल
– माफिया अनुपम दुबे के खिलाफ माहौल की हवा निकलने की शाजिश
– अनुपम के गैंग के बढ़ाये जा रहे खुलेआम हौसले,
फर्रुखाबाद।   फर्रुखाबाद में माफिया राज को बचाने और विरोधियों को तोड़ने के लिए फर्जी मुकदमों का कारखाना खुलकर चल रहा है। पुलिस की जांच में जब भोले भाले लोगों को फ़साने के लिए गैंगरेप, 307 और दलित उत्पीड़न जैसे संगीन आरोप झूठे साबित होने लगे तो अब माफियाराज ने नया हथकंडा अपनाया है— न्यायालय को ढाल बनाकर विरोधियों को फंसाना। इस पूरे खेल का संचालन कर रहा है कुख्यात और नॉन-प्रैक्टिशनर वकील अवधेश मिश्रा, जो माफिया अनुपम दुबे और उसके गिरोह का सबसे बड़ा सलाहकार बताया जा रहा है।
सिर्फ पंद्रह दिन में ही आरएलडी नेता राजीव रंजन को न्यायालय के आदेश पर दो मुकदमों में फंसाया गया। इससे पहले भी उन्हें 307 और एससी/एसटी एक्ट में झूठा फंसाने का प्रयास हुआ था, मगर पुलिस जांच ने साजिश का पर्दाफाश कर दिया। बावजूद इसके अब अदालत की आड़ में नया जाल बुना जा रहा है।
जहांनगंज के व्यापारी प्रदीप सिंह पर अवधेश मिश्रा ने गिरोह की मदद से मुकदमा लिखवाने का आदेश करा लिया।
आवास विकास के कौशलेंद्र सिंह को भी दो मुकदमों में फंसाया गया।
सूत्र बताते हैं कि गिरोह हर उस शख्स को टारगेट बना रहा है जो माफिया अनुपम दुबे और उसके नेटवर्क का विरोध करता है।
अवधेश मिश्रा ने माफिया के खिलाफ खुलकर वकालत करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव बाजपेई को भी निशाना बनाया।
पहले उन्हें बार काउंसिल अनुशासन समिति में झूठी शिकायत देकर डिबार कराने की चाल चली।
उसके बाद लगातार फर्जी प्रार्थना पत्र दाखिल कर उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश की जा रही है।
यह वही अवधेश मिश्रा है जिसने माफिया के इशारे पर वरिष्ठ पत्रकार शरद कटियार पर 307, गैंगरेप और छेड़छाड़ जैसे झूठे गंभीर मुकदमे लिखवा दिए।
इसी तरह पत्रकार पूर्व मे अजय चौहान, दिनेश चौहान, अंकुश, गौरव सक्सेना और अधिवक्ताओं को भी तब झूठे मामलों में घसीटा गया जब उन्होंने धनवसूली या अनुपम दुबे के समर्थन से इनकार किया।
जब पुलिस प्रशासन ने अवधेश के लिखे पत्रों पर कार्रवाई से तौबा कर ली तो अब उसने न्यायालय का सहारा लेकर फर्जी मुकदमों का धंधा शुरू कर दिया है। इसका सीधा मकसद है,माफिया अनुपम दुबे को फायदा पहुंचाना, निडर लोगों को कोर्ट-कचहरी में उलझाकर चुप कराना, साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस नीति को ठेंगा दिखाना है।
सवाल बड़ा है—क्या पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका इस “फर्जी मुकदमा उद्योग” पर नकेल कस पाएंगे या फिर फर्रुखाबाद में माफिया राज खुलेआम लोगों को कुचलता रहेगा?

माफिया राज के खिलाफ पुलिसकर्मी भी किये प्रताड़ित

माफिया अनुपम दुबे संजीव परिया, चंन्नू, जग्गू यादव आदि के खिलाफ कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों और कर्मियों को भी निशाना बनाया गया।
पूर्व सीओ सिटी प्रदीप कुमार सिंह सहित आठ–नौ सिपाही,
बाद के सीओ सिटी मन्नी लाल गौड़,
एसओजी इंचार्ज रहे कुलदीप दीक्षित,
थाना अध्यक्ष नवाबगंज रहे आर.के. शर्मा,
स्थानीय अधिसूचना इकाई की प्रभारी श्रीमती प्रीति यादव,
उपनिरीक्षक जेपी शर्मा—इन सभी के खिलाफ झूठी शिकायतें कराई गईं।
इतना ही नहीं, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी, जिन्होंने अनुपम दुबे की आपराधिक जड़ें काटी थीं, उन्हें भी उच्च न्यायालय तक घसीटने का प्रयास किया गया।
तत्कालीन जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह को भी फर्जी शिकायतों में उलझाने की साजिश रची गई।
इंस्पेक्टर अमोद कुमार सिंह, अमित गंगवार और अन्य पुलिसकर्मियों को अवधेश मिश्रा ने सुनियोजित ढंग से झूठी शिकायतों के जाल में फंसाने की कोशिश की।
सूत्रों के मुताबिक यह पूरा कुचक्र सिर्फ माफिया अनुपम दुबे को बचाने और प्रशासनिक अफसरों पर डर का माहौल बनाने के लिए रचा गया, ताकि आगे कोई अधिकारी उसके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत न जुटा सके।

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