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Tuesday, April 22, 2025

डॉ. अजीत गंगवार द्वारा वंशावली अनावरण के बहाने परिवार, परंपरा और संस्कृति को जोड़ने की पहल एक प्रेरणास्पद संदेश

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– परिवार की यशस्वी बहू का बुजुर्गों ने किया सम्मान

शरद कटियार

जिस दौर में लोग अपने इतिहास और पूर्वजों को भूलते जा रहे हैं, उस समय राजा भान सिंह गंगवार की 16वीं पीढ़ी के वंशज डॉ. अजीत सिंह गंगवार ने जो पहल की है, वह मात्र एक पारिवारिक आयोजन न होकर सांस्कृतिक चेतना और मूल्यों के पुनर्जागरण का उदाहरण है। नबावगंज के गांव भटासा स्थित सौ वर्ष पुराने राजा राम मंदिर में आयोजित यह कार्यक्रम, सिर्फ एक वंशावली के अनावरण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक संपूर्ण सामाजिक और आध्यात्मिक उत्सव में परिवर्तित हो गया।

परिवार की जड़ों से जुड़ने की पुकार

डॉ. अजीत गंगवार द्वारा सबसे छोटे सदस्य होते हुए भी 16वीं पीढ़ी की वंशावली को संजोना, यह दर्शाता है कि इतिहास को संजोने की जिम्मेदारी उम्र या पद से नहीं, बल्कि भावना और दृष्टिकोण से तय होती है। इस पहल ने परिवार के बुजुर्गों को न केवल सम्मानित किया, बल्कि उन्हें यह विश्वास भी दिलाया कि अगली पीढ़ी उनके मूल्यों को समझ रही है और उन्हें आगे ले जाने को तत्पर है।

स्त्री-सम्मान का सार्वजनिक संदेश

इस कार्यक्रम की एक और विशेष बात यह रही कि उन्होंने अपनी पत्नी विधायक डॉ. सुरभि गंगवार को सार्वजनिक रूप से सम्मानित कर रामनवमी के अवसर पर स्त्री-सम्मान और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को जीवंत कर दिया। यह दृश्य आज की सामाजिक संरचना में एक बेहद आवश्यक और सकारात्मक संकेत है—जहां घर और समाज दोनों में स्त्री की भूमिका को केंद्र में रखा जाए।

कार्यक्रम में जवाहर सिंह गंगवार और मनोज गंगवार द्वारा पूर्वजों के गुणगान ने यह सिद्ध किया कि इतिहास केवल पुस्तकों में नहीं, बल्कि पीढ़ियों के जीवन में सांस लेता है। स्वर्गीय हरिश्चंद्र गंगवार के नाम से जुड़ा यह कुल गौरव केवल स्मरणीय नहीं, बल्कि अनुकरणीय है।

रामनवमी पर आध्यात्मिक आह्वान

हवन-पूजन के माध्यम से पूरे वातावरण में जो शांति और दिव्यता फैली, वह यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि धार्मिक आयोजन केवल कर्मकांड नहीं होते, बल्कि वे परिवार और समाज को जोड़ने की शक्ति रखते हैं।

डॉ. अजीत गंगवार और डॉ. सुरभि गंगवार द्वारा किया गया यह आयोजन आज के समय में एक सांस्कृतिक पुनर्स्मरण, पारिवारिक एकजुटता और सामाजिक मर्यादा का सशक्त संदेश है। ऐसे आयोजन न केवल अतीत से जोड़ते हैं, बल्कि भविष्य की राह भी दिखाते हैं। यह आवश्यक है कि हम सब भी अपने परिवार, संस्कृति और मूल्यों की ओर लौटें और अगली पीढ़ी को यह गौरव सौंपने का उत्तरदायित्व निभाएं।

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