उत्तर प्रदेश में कफ सिरप निर्माण से जुड़ी अनियमितताओं का खुलासा देश की दवा सुरक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। लखनऊ, हापुड़, सहारनपुर, अलीगढ़ और मथुरा सहित कई जिलों में चल रही जांचों ने यह साफ कर दिया है कि कुछ फार्मास्यूटिकल कंपनियां लाभ के लोभ में न केवल मानकों की अनदेखी कर रही हैं, बल्कि लोगों की जान से खिलवाड़ करने से भी नहीं हिचक रहीं।
केंद्र और राज्य स्तर पर औषधि विभाग की जांच टीमें सक्रिय हैं, लेकिन यह सक्रियता अब क्यों? राजस्थान और मध्य प्रदेश में कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद हरकत में आया प्रशासन बताता है कि हमारी नियामक प्रणाली अभी भी ‘घटना के बाद की कार्रवाई’ तक सीमित है। जब तक त्रासदी न घटे, तब तक निरीक्षण, जांच और मानक पालन की बात कहीं दब सी जाती है।
जांच में सामने आया कि कई कंपनियां बिना स्वच्छता मानकों, उपकरणों और आवश्यक दस्तावेजों के ही उत्पादन कर रही थीं। यह न केवल दवा उद्योग की साख पर धब्बा है, बल्कि आम नागरिक के स्वास्थ्य अधिकार का भी खुला उल्लंघन है। कुछ जगहों पर तो ‘जुगाड़ तकनीक’ से उत्पादन चलाया जा रहा था — यह शब्द ही हमारी व्यवस्था पर कटाक्ष करता है।
चिंता की एक और बड़ी वजह कोडिन युक्त सिरप का अवैध कारोबार है, जो नशे के रूप में युवाओं तक पहुंच रहा है। लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, बहराइच और सुल्तानपुर से जब्त हजारों शीशियां दिखाती हैं कि यह नेटवर्क गहराई तक फैला है। दवा, जो इलाज का प्रतीक होनी चाहिए, अब नशे और मुनाफे का जरिया बन चुकी है।
अब वक्त है कि एफएसडीए और केंद्र सरकार सिर्फ नोटिस या नमूना जांच तक सीमित न रहें। दोषी कंपनियों पर न केवल लाइसेंस निलंबन बल्कि आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाएं। फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना लोगों का भरोसा लौटना मुश्किल है।
आखिरकार, दवा केवल एक उत्पाद नहीं होती — यह जीवन का भरोसा होती है। और जब यही भरोसा टूटने लगे, तो शासन और समाज दोनों को आत्ममंथन करना चाहिए कि कहीं हम ‘इलाज’ के नाम पर ‘जहर’ तो नहीं परोस रहे हैं।
“दवा में लापरवाही नहीं, जिम्मेदारी चाहिए”


