फर्रुखाबाद के नेकपुर कला क्षेत्र में शनिवार को जो हुआ, वह सिर्फ एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि माफियाओं के खिलाफ जनआक्रोश की परिणति थी। मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर हुई इस कार्रवाई ने न केवल वर्षों से चल रहे तेल के काले कारोबार की परतें उधेड़ीं, बल्कि उन सत्ताशाली अपराधी नेटवर्कों का भी पर्दाफाश किया, जो जनता की जमीन पर अवैध साम्राज्य खड़ा कर रहे थे। यह केवल बुलडोज़र की गरज नहीं थी, बल्कि शासन-प्रशासन की गंभीर चेतावनी थी कि अब माफिया राज को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पवन कटियार और पंकज कटियार जैसे अपराधी वर्षों से तेल कारोबार की आड़ में न केवल टैक्स चोरी और तेल की मिलावट जैसे अपराधों में लिप्त रहे हैं, बल्कि उन्होंने अवैध रूप से अर्जित धन से सरकारी ज़मीनों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था। नकपुर कला की विकास कॉलोनी और आसपास के इलाके उनके लिए नया टारगेट बन गए थे। वहां तालाब पाटकर कॉलोनियां बसाई जा रही थीं, प्लॉटिंग करके खुलेआम बेची जा रही थी। सबसे खतरनाक बात यह थी कि यह सब एक संगठित गिरोह के जरिये किया जा रहा था, जिसमें हिस्ट्रीशीटर अनूप सिंह राठौर, विमलेश दुबे, अमित भदौरिया, चीनू ठाकुर जैसे कुख्यात नाम भी शामिल थे।
ऐसा नहीं है कि इस नेटवर्क की जानकारी प्रशासन को पहले नहीं थी। वर्षों से ये गतिविधियां चल रही थीं और जनता इनके खिलाफ आवाज उठाती रही। लेकिन या तो प्रशासन की आँखें बंद थीं या फिर कहीं कोई मिलीभगत भी हो सकती है। जब तक मुख्यमंत्री कार्यालय से निर्देश नहीं आया, स्थानीय प्रशासन की सक्रियता दिखाई नहीं दी। यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि क्या हमारे राजस्व व पुलिस विभाग इतने कमजोर हो चुके हैं कि उन्हें सख्त आदेशों के बिना एक ईंट भी नहीं हटती?
शनिवार को सुबह-सुबह जब प्रशासन की टीम जेई अंकित सिंह के नेतृत्व में पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंची और बुलडोज़र चला, तब स्थानीय जनता ने राहत की सांस ली। यह कार्रवाई एक प्रतीक बन गई कि अब माफिया चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। कई स्थानीय नागरिकों ने खुलकर कहा कि कॉलोनी में डर का माहौल था, लोगों को मजबूरी में जमीन खरीदनी पड़ रही थी, लेकिन अब उन्हें विश्वास है कि न्याय की जीत होगी।
पवन कटियार के रिश्तेदार चंदू कटियार उर्फ अनिल ने भी गांव धँसुआ और एमआर स्टोरेज के सामने सरकारी जमीन को घेरकर निर्माण कर लिया है। अब प्रशासन का अगला कदम वहां कार्रवाई करने का है। अगर यह कार्रवाई भी उतनी ही गंभीर और सख्त हुई, तो निश्चित ही यह पूरे गिरोह की कमर तोड़ सकती है।
यह घटना एक बड़े सामाजिक और प्रशासनिक प्रश्न को जन्म देती है— ऐसे गिरोह फलते-फूलते कैसे हैं? क्या केवल पैसे की ताकत ही उन्हें संरक्षण देती है, या फिर राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक संरचना की कुछ कमजोरियां भी जिम्मेदार हैं? भ्रष्टाचार, भय और बेबसी की त्रिकोणीय राजनीति के कारण आम नागरिक माफिया का शिकार बनता है। जब तक समाज और शासन एकजुट होकर ऐसे अपराधियों के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे, तब तक यह समस्या खत्म नहीं हो सकती।
अब जरूरी है: एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसमें अवैध प्लॉटिंग, जमीन कब्जा और माफिया गतिविधियों पर सतत निगरानी रखी जा सके। ड्रोन सर्वेक्षण, सैटेलाइट इमेज और डिजिटल नक्शे इसके प्रमुख साधन हो सकते हैं। क्यों नहीं समय रहते विभागों ने हस्तक्षेप किया? जो अधिकारी मूकदर्शक बने रहे, उनकी जांच जरूरी है। आम नागरिकों को भी अधिकार और मंच दिया जाए कि वे सीधे शिकायत दर्ज कर सकें और उनकी रिपोर्टिंग पर त्वरित कार्रवाई हो। किसी भी राजनीतिक व्यक्ति या दल द्वारा ऐसे माफिया नेटवर्क को संरक्षण देने पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही होनी चाहिए। कानून सभी के लिए समान होना चाहिए।
इस पूरे मामले में मीडिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। Youth India जैसे प्लेटफॉर्म ने जिस तरह यह मुद्दा सामने लाया और जनता की आवाज को शासन तक पहुँचाया, वह अनुकरणीय है। स्थानीय अखबारों, चैनलों और रिपोर्टर्स को चाहिए कि वे केवल सनसनी नहीं फैलाएं, बल्कि साक्ष्य-आधारित और तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग करें, जिससे समाज को सही दिशा मिले।
शातिर पवन-पंकज कटियार और उनके गिरोह पर चली बुलडोज़र कार्रवाई फर्रुखाबाद के लिए एक नई शुरुआत है। यह संकेत है कि अगर शासन चाहे और जनता साथ दे, तो कोई भी माफिया टिक नहीं सकता। लेकिन यह तभी संभव होगा जब यह जंग सिर्फ एक दिन की कार्रवाई न होकर, एक दीर्घकालिक संघर्ष बने। यह बुलडोज़र सिर्फ एक अवैध निर्माण को नहीं, बल्कि माफिया मानसिकता, भ्रष्टाचार और अपराध की जड़ को तोड़ने का औजार बने। तभी वाकई यह कार्रवाई सार्थक मानी जाएगी।
आइए, हम सब इस जंग में सहभागी बनें। अपनी जमीन, अपने जलस्रोत, और अपने समाज को माफियाओं के कब्जे से मुक्त कराएं। यही सच्ची राष्ट्रसेवा है।