महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA ) भारत सरकार की वह महत्वाकांक्षी योजना है, जिसे ग्रामीण भारत में गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन के लिए एक क्रांतिकारी कदम माना गया था। इस योजना ने लाखों परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान कर उनके जीवन में बदलाव लाने का काम किया है। लेकिन, जब ऐसी योजनाओं का उपयोग भ्रष्टाचार के माध्यम से किया जाता है, तो यह न केवल सरकारी धन की लूट है, बल्कि उन गरीब मजदूरों की उम्मीदों और अधिकारों पर भी एक बड़ा हमला है, जिनके लिए यह योजना बनाई गई थी।
उन्नाव जिले के हसनगंज ब्लॉक की ग्राम पंचायत बरा बुजुर्ग में सामने आए ‘हाजिरी घोटाले’ ने यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हो सकती हैं। प्रधान जसवंत की सरपरस्ती में फर्जी हाजिरी और कमीशनखोरी के इस खेल ने सरकारी तंत्र की विफलता को भी उजागर किया है।
मनरेगा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना है, ताकि मजदूरों को उनके MGNREGA गांव में ही काम मिल सके और उन्हें पलायन करने की मजबूरी न हो। यह योजना रोजगार के साथ-साथ ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास में भी सहायक है।
लेकिन, जब इस योजना को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया जाता है, तो यह न केवल सरकार की नीतियों की विफलता का प्रतीक बनती है, बल्कि गरीब मजदूरों के अधिकारों पर सीधा हमला करती है। उन्नाव का यह घोटाला इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अपनी ताकत का दुरुपयोग कर सकते हैं।
इस घोटाले का उजागर होना मीडिया टीम की साहसिक पत्रकारिता का परिणाम है। उनकी जांच ने दिखाया कि किस तरह से ग्राम पंचायत के प्रधान ने फर्जी हाजिरी लगाकर मजदूरों के नाम पर सरकारी धन का गबन किया।
टीम ने जब ग्राउंड जीरो पर जाकर मजदूरों और स्थानीय निवासियों से बातचीत की, तो मजदूरों ने खुलासा किया कि उनके नाम पर फर्जी हाजिरी लगाई जा रही है। उनके खातों में मजदूरी के पैसे भेजे जा रहे हैं, लेकिन प्रधान और उनके करीबी कमीशन के नाम पर वह धन हड़प रहे हैं।
नीतू, संतोष और अन्य मजदूरों के बयान इस घोटाले की गंभीरता को दर्शाते हैं। मजदूरों ने बताया कि वे लंबे समय से काम पर गए ही नहीं हैं, लेकिन उनके नाम से हाजिरी लगाई जा रही है।
प्रधान जसवंत की भूमिका इस पूरे मामले में सबसे संदिग्ध है। ग्रामीणों का आरोप है कि न केवल मनरेगा, बल्कि अन्य विकास योजनाओं में भी प्रधान ने बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार किया है।
जब मीडिया ने मामले की जांच शुरू की, तो प्रधान ने उन्हें धमकाने की कोशिश की। यह उनके तानाशाही रवैये और भ्रष्टाचारी मानसिकता को उजागर करता है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रधान ने विकास कार्य केवल कागजों पर दिखाए हैं, जबकि वास्तविकता में कोई काम नहीं हुआ है।
मीडिया की रिपोर्ट के बाद डीसी मनरेगा मुनीश चंद्र ने जांच समिति का गठन कर 72 घंटे के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। हालांकि, प्रशासन की यह त्वरित प्रतिक्रिया सराहनीय है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है?
इससे पहले भी कई घोटालों के मामले सामने आए हैं, जिनमें जांच तो शुरू हुई, लेकिन अंततः वे ठंडे बस्ते में डाल दिए गए। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस मामले में कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता से काम करता है।
इस तरह के घोटाले न केवल सरकार की योजनाओं की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं, बल्कि समाज में असमानता और भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देते हैं। जब मजदूरों को उनका हक नहीं मिलता और योजनाओं का लाभ केवल भ्रष्टाचारियों तक सीमित रह जाता है, तो यह समाज में असंतोष और अविश्वास को बढ़ाता है।
इसके अलावा, यह मामला गरीब मजदूरों के मनोबल पर भी असर डालता है। जब उन्हें पता चलता है कि उनके नाम का उपयोग केवल कागजों पर हुआ है, तो यह उनकी मेहनत और अधिकारों का अपमान है। सरकार की “जीरो टॉलरेंस नीति” केवल शब्दों में ही नहीं, बल्कि कार्यों में भी लागू होनी चाहिए। ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए, ताकि यह एक मिसाल बन सके।
प्रशासन को चाहिए कि वह जांच प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए और इस मामले को जल्द से जल्द निपटाए। इसके अलावा, मनरेगा जैसी योजनाओं में तकनीकी निगरानी और पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता है।
मनरेगा जैसी योजनाओं में डिजिटल उपस्थिति (बायोमेट्रिक सिस्टम) लागू की जाए, ताकि फर्जी हाजिरी की गुंजाइश न रहे। योजनाओं की निगरानी में जनता को शामिल किया जाए। इससे स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा। दोषियों को कड़ी सजा दी जाए, ताकि भविष्य में कोई भी ऐसा करने की हिम्मत न करे। इस तरह की घटनाओं को उजागर करने में मीडिया की भूमिका को बढ़ावा दिया जाए। जांच प्रक्रिया को समय सीमा में पूरा किया जाए, ताकि मामले को दबाया न जा सके।
उन्नाव जिले का यह ‘हाजिरी घोटाला’ केवल एक मामला नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रवृत्ति है, जो गरीबों के हक को छीन रही है। यह प्रशासन और समाज दोनों के लिए एक चेतावनी है कि अगर समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो ऐसे घोटाले योजनाओं की मूल भावना को खत्म कर देंगे।
मीडिया टीम की साहसिक पत्रकारिता ने इस घोटाले को उजागर कर प्रशासन को कार्रवाई के लिए मजबूर किया। अब यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह इस घोटाले के दोषियों को सजा देकर एक मिसाल कायम करे और मनरेगा जैसी योजनाओं की विश्वसनीयता बहाल करे।
यदि प्रशासन इस मामले में प्रभावी कार्रवाई करता है, तो यह न केवल भ्रष्टाचारियों के लिए एक कड़ा संदेश होगा, बल्कि यह भी साबित करेगा कि सरकार गरीबों और जरूरतमंदों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।