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Thursday, April 24, 2025

सियासी दलों का संगम स्नान: सियासत, श्रद्धा और संदेश

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शरद कटियार

प्रयागराज का संगम (Sangam) स्नान सदियों से धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा है, लेकिन जब राजनीति इस पवित्र परंपरा से जुड़ती है, तो इसके मायने बदल जाते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में पूरी कैबिनेट का संगम स्नान और इसके बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का संगम स्नान न केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन था, बल्कि इसके पीछे छिपे राजनीतिक संकेतों ने पूरे प्रदेश का ध्यान आकर्षित किया।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने संगम स्नान को न केवल धार्मिक आयोजन के रूप में देखा, बल्कि इसे अपनी नीतियों और योजनाओं के प्रचार का माध्यम भी बनाया। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में कैबिनेट मंत्रियों का संगम स्नान एक मजबूत राजनीतिक संदेश था।

कैबिनेट के सामूहिक संगम स्नान को योगी सरकार ने “आस्था के साथ विकास” का प्रतीक बताया। इस आयोजन का उद्देश्य सिर्फ आध्यात्मिकता का प्रचार नहीं था, बल्कि यह संदेश देना था कि उत्तर प्रदेश की सरकार धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा देने के साथ-साथ विकास के एजेंडे पर भी काम कर रही है।योगी आदित्यनाथ ने हमेशा से हिंदुत्व को अपनी राजनीति के केंद्र में रखा है। संगम स्नान के माध्यम से उन्होंने जनता के बीच यह संदेश दिया कि उनकी सरकार आध्यात्मिक मूल्यों के साथ खड़ी है।मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों का संगम में स्नान करना, न केवल सरकार की नीतियों का समर्थन था, बल्कि व्यक्तिगत आस्था का प्रदर्शन भी। संगम स्नान को सरकार ने राज्य की सकारात्मक छवि बनाने के लिए इस्तेमाल किया। आयोजन के दौरान पर्यटन, स्वच्छता और गंगा संरक्षण पर सरकार के प्रयासों को उजागर किया गया।योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में कैबिनेट का संगम स्नान 2024 लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर एक रणनीतिक कदम के रूप में भी देखा जा सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा राज्य में अपने हिंदुत्व आधार को और मजबूत करने के लिए सांस्कृतिक आयोजनों का उपयोग कर रही है।

योगी सरकार के संगम स्नान के कुछ दिनों बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी संगम में डुबकी लगाई। यह आयोजन अखिलेश यादव की सियासी शैली का एक अलग पहलू प्रस्तुत करता है।

सपा सुप्रीमो के संगम स्नान को कई लोग योगी सरकार के संगम स्नान का जवाब मानते हैं। जहां योगी सरकार ने इसे “धर्म और विकास” का प्रतीक बताया, वहीं अखिलेश यादव ने इसे व्यक्तिगत आस्था और गंगा-जमुनी तहजीब का सम्मान करार दिया।

अखिलेश यादव के संगम स्नान ने समाजवादी पार्टी की परंपरागत छवि से अलग एक नया संदेश दिया। उन्होंने संकेत दिया कि उनकी पार्टी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धर्म से दूरी नहीं बनाती, बल्कि हर धर्म और आस्था का सम्मान करती है।हिंदू मतदाताओं को साधने की कोशिश: यह कदम उन हिंदू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश भी हो सकता है, जो सपा को पारंपरिक रूप से मुस्लिम समर्थक पार्टी मानते आए हैं।अखिलेश यादव ने संगम स्नान के दौरान गंगा की स्वच्छता और योगी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। यह स्पष्ट था कि उनका यह कदम भाजपा की सांस्कृतिक राजनीति का मुकाबला करने का एक तरीका था।अखिलेश यादव ने इस मौके का इस्तेमाल अपनी पार्टी के नीतिगत एजेंडे को जनता तक पहुंचाने के लिए किया। गंगा की सफाई, रोजगार, किसानों की समस्याएं और महंगाई जैसे मुद्दों को उठाकर उन्होंने भाजपा पर निशाना साधा।

योगी सरकार ने संगम स्नान को धार्मिक आस्था, संस्कृति और विकास के समन्वय के रूप में प्रस्तुत किया।अखिलेश यादव ने इसे व्यक्तिगत आस्था और भाजपा की सांस्कृतिक राजनीति का जवाब देने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया।
योगी सरकार का संगम स्नान राज्य की जनता के बड़े हिस्से को प्रभावित करने में सफल रहा। सरकार ने इसे अपने शासन की सफलता और राज्य के विकास के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया। दूसरी ओर, अखिलेश यादव का संगम स्नान एक नए राजनीतिक संदेश के रूप में उभरा। यह देखना बाकी है कि सपा का यह कदम कितना असरदार होगा।
संगम स्नान जैसे धार्मिक आयोजन राजनीति में धर्म के बढ़ते प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म और आस्था की भूमिका अब सिर्फ सांकेतिक नहीं रही, बल्कि यह राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा बन गई है।

संगम स्नान के जरिए उत्तर प्रदेश की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया है। योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व जहां हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूत करता है, वहीं अखिलेश यादव का प्रयास नई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म देता है। इन दोनों नेताओं के संगम स्नान ने यह साबित कर दिया कि धार्मिक आयोजन अब न केवल आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि यह राजनीति और सत्ता की दिशा को भी प्रभावित करते हैं।

आगामी चुनावों में इन आयोजनों का प्रभाव कितना गहरा होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना निश्चित है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अब धर्म, संस्कृति और विकास के त्रिकोण पर केंद्रित होती जा रही है।

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