यूथ इंडिया संवाददाता
महाकुम्भ नगर। महाकुंभ में तीन दिनों तक आध्यात्मिक प्रवास के बाद एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल अचानक प्रयागराज से भूटान के लिए रवाना हो गईं। उनके लिए प्रयागराज से 92 साल बाद पहली इंटरनेशनल फ्लाइट का संचालन हुआ। यह यात्रा पूरी तरह गोपनीय रखी गई थी और केवल कुछ अधिकारियों को ही इसकी जानकारी थी। बुधवार सुबह रॉयल भूटान एयरलाइंस की फ्लाइट प्रयागराज एयरपोर्ट पर लैंड हुई, जिसके बाद लॉरेन ने इमिग्रेशन की औपचारिकताएं पूरी कर भूटान के लिए प्रस्थान किया।
लॉरेन पॉवेल ने महाकुंभ में अपने प्रवास के दौरान निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि के शिविर में हवन और पूजन किया। उन्होंने भगवती मां काली के बीज मंत्र ? क्रीं महाकालिका नम: की दीक्षा ली। स्वामी कैलाशानंद ने उन्हें आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हुए कमला नाम दिया। लॉरेन ने कहा कि सनातन परंपरा की गहराई और शांति ने उन्हें भीतर से छुआ है। मां काली की आराधना से उन्हें आत्मिक शांति और एक नई दिशा मिली है।
महाकुंभ में लॉरेन का प्रवास 10 दिन का तय था, लेकिन वह तीन दिनों के बाद ही लौट गईं। इससे पहले, अमृत स्नान के दिन वह भीड़भाड़ के कारण एलर्जी से बीमार पड़ गई थीं। स्वामी कैलाशानंद ने बताया कि लॉरेन ने उनके शिविर में आराम किया और पूजा के दौरान साधुओं के साथ समय बिताया। दीक्षा समारोह के दौरान वैदिक मंत्रोच्चारण और पूजा-अर्चना के साथ वातावरण पूरी तरह दिव्य हो गया था।
लॉरेन ने महाकुंभ में आने से पहले वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन किए। गुलाबी सूट और सिर पर दुपट्टा ओढ़े हुए उन्होंने गंगा में नौकायन किया और बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंचकर गर्भगृह के बाहर से ही आशीर्वाद लिया। गैर-हिंदुओं द्वारा शिवलिंग का स्पर्श न करने की परंपरा का पालन करते हुए उन्होंने दर्शन किए। महाकुंभ के दौरान लॉरेन ने साधुओं के साथ सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति को करीब से समझने का प्रयास किया। उन्होंने निरंजनी अखाड़े में कल्पवास का संकल्प लिया था, जिसे आत्मशुद्धि और तपस्या का प्रतीक माना जाता है। महाकुंभ में उनके अनुभव ने उन्हें भारतीय आध्यात्म और परंपराओं की ओर आकर्षित किया।
महाकुंभ के बीच, स्टीव जॉब्स के 1974 के एक पत्र की नीलामी भी चर्चा में रही, जिसमें उन्होंने महाकुंभ में शामिल होने की इच्छा जताई थी। यह संयोग है कि उनकी पत्नी लॉरेन ने इस बार कुंभ का हिस्सा बनकर जॉब्स के अधूरे सपने को पूरा किया।
महाकुंभ में लॉरेन ने सनातन धर्म की जिस गहराई और शांति को महसूस किया, उसे उन्होंने अपनी आत्मा के लिए एक नई शुरुआत बताया। स्वामी कैलाशानंद ने कहा कि मां काली की साधना से आत्मिक शक्ति और शांति प्राप्त होती है, जिसे लॉरेन ने पूरी तरह महसूस किया।
प्रयागराज से भूटान के लिए इंटरनेशनल फ्लाइट का संचालन 1932 के बाद पहली बार हुआ। उस समय यहां से लंदन के लिए फ्लाइट शुरू हुई थी। इस ऐतिहासिक उड़ान ने प्रयागराज के महाकुंभ को एक नई पहचान दी है। महाकुंभ के इस अनुभव ने न केवल लॉरेन के जीवन में नई ऊर्जा भरी, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्म की महिमा को भी विश्व मंच पर स्थापित किया। लॉरेन अब कुछ दिन भूटान में प्रवास करेंगी, जहां वह हिमालय की गोद में ध्यान और शांति का अनुभव लेंगी।