प्रशांत कटियार ✍🏿
राम…
मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की 93वीं जयंती आज है। वे दो बार यूपी के मुख्यमंत्री बने और हिंदुत्व के नायक के रूप में जाने जाते हैं। कल्याण सिंह ने कभी भी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। एक इंटर कॉलेज के शिक्षक से मुख्यमंत्री और राज्यपाल बनने तक का उनका सफर कांटों भरा रहा।
भाजपा के गठन के बाद, उन्होंने पार्टी को यूपी में मजबूती प्रदान की और राम मंदिर आंदोलन में सक्रियता दिखाई। 1991 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता हासिल की, और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। इस दौरान, युवाओं ने ‘कल्याण सिंह कल्याण करो, मंदिर का निर्माण करो’ का नारा दिया, जो पूरे यूपी में लोकप्रिय हुआ। इससे भाजपा को राम भक्तों की पार्टी के रूप में पहचान मिली और कल्याण सिंह की छवि एक युवा आइकन के रूप में स्थापित हुई।बाबूजी कल्याण सिंह का जीवन एक अद्भुत यात्रा का प्रतीक है, जिसमें संघर्ष और समर्पण की अनगिनत कहानियाँ समाहित हैं। यह अवसर हमें उनके अद्वितीय योगदान को याद करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। मढ़ौली गांव में जन्मे कल्याण सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत एक इंटर कॉलेज के शिक्षक के रूप में की, लेकिन वे जल्दी ही अतरौली के विधायक बने और प्रदेश की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
राजनीति में सिद्धांतों का महत्व
कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर कांटों भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने भाजपा के गठन के बाद संगठन महामंत्री और प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका निभाई, और पार्टी को मजबूत करने के लिए गांव-गांव जाकर काम किया। 1991 में जब भाजपा ने प्रदेश में सरकार बनाई, तब वे मुख्यमंत्री बने। उनके सहयोगियों का कहना है कि उन्होंने दिन-रात मेहनत की, जिससे भाजपा की जड़ें मजबूत हुईं।
रामभक्ति का अनूठा उदाहरण
कल्याण सिंह को हिंदुत्व के नायक का खिताब यूं ही नहीं मिला। अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने से इंकार करना और विवादित ढांचे के विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना उनके रामभक्त होने का प्रमाण है। उन्होंने कहा था, “राम मंदिर के लिए एक नहीं, सैकड़ों सत्ता कुर्बान हैं।” यह उनके समर्पण को दर्शाता है कि उन्होंने व्यक्तिगत लाभ को त्यागकर अपने सिद्धांतों के लिए खड़ा होना चुना।
राजनीतिक उतार-चढ़ाव
कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर कभी आसान नहीं रहा। 1962 में पहले चुनाव में हारने के बावजूद, उन्होंने अपनी राजनीतिक समझ से अगले चुनाव में जीत हासिल की। 1996 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने भाजपा छोड़कर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। लेकिन 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा में वापसी की और उसी वर्ष संसद में पहुँचकर अपनी स्थिति को मजबूत किया।
समाज और पार्टी के प्रति समर्पण
कल्याण सिंह ने हमेशा अपने सिद्धांतों को प्राथमिकता दी। 1980 में जब भाजपा की स्थिति कमजोर हुई, तब उन्होंने गांव-गांव जाकर पार्टी को खड़ा करने का काम किया। “गांव खुशहाल तो देश खुशहाल” और “एक बूथ, दस यूथ” जैसे नारों के माध्यम से उन्होंने पार्टी को ऊंचे स्तर पर मजबूत किया।
अंतिम यात्रा और विरासत
21 अगस्त 2021 को, 89 वर्ष की उम्र में बीमारी के कारण उनका निधन हुआ। उनकी अंतिम इच्छा अयोध्या में रामलला के दर्शन करना थी, जो अधूरी रह गई। लेकिन उनका योगदान और संघर्ष सदैव याद रखा जाएगा।
बाबूजी कल्याण सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेता वही है, जो अपने सिद्धांतों के लिए खड़ा हो। उन्होंने भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति और सेवा का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और नैतिकता का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा। उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड हैं।