वक्फ बोर्ड (Waqf Board) का नाम सुनते ही एक धार्मिक और संवैधानिक संस्था की छवि बनती है, जिसका मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों की संपत्तियों का प्रबंधन और संरक्षण है। लेकिन समय-समय पर इस संस्था के कामकाज पर सवाल उठते रहे हैं। लातूर जिले में 100 से अधिक किसानों द्वारा लगाए गए आरोप, कि वक्फ बोर्ड उनकी 300 एकड़ जमीन पर दावा कर रहा है, ने एक बार फिर इस संस्था की प्रामाणिकता और उसके कामकाज की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लातूर के किसानों का कहना है कि यह जमीन उनकी पुश्तैनी संपत्ति है, जिसे वे कई पीढ़ियों से जोतते आ रहे हैं। वक्फ बोर्ड ने इस जमीन को अपनी संपत्ति बताते हुए महाराष्ट्र राज्य वक्फ अधिकरण में मामला दर्ज कराया है और 103 किसानों को नोटिस जारी किए गए हैं। किसानों के मुताबिक, यह न केवल उनकी आजीविका पर हमला है, बल्कि उनके अधिकारों का सीधा हनन भी है।
किसानों में से एक, तुकाराम कनवटे ने मीडिया से बातचीत में कहा, “यह जमीन हमारी विरासत है। इसे वक्फ संपत्ति घोषित करना गलत है। हम सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं।” इस मामले में 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होनी है, लेकिन यह मामला केवल लातूर के किसानों तक सीमित नहीं है। यह उस व्यापक समस्या का हिस्सा है, जो पूरे देश में वक्फ बोर्ड के विवादित दावों और कामकाज को उजागर करती है।
वक्फ बोर्डों पर पहले भी विवादित भूमि पर दावे करने के आरोप लगते रहे हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के तिरुचेंथुरई गांव में वक्फ बोर्ड ने 1500 साल पुराने मंदिर और उसकी 369 एकड़ जमीन को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था। यह मामला संसद में भी उठाया गया, जहां तत्कालीन अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि यह गांव हिंदू आबादी वाला है और वहां मुस्लिम आबादी का कोई इतिहास नहीं है।
इस तरह के मामले न केवल वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि किस तरह से यह संस्था अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती है। लातूर के मामले में भी यही देखा जा रहा है, जहां किसानों की पुश्तैनी जमीन को हड़पने की कोशिश की जा रही है।
8 अगस्त 2024 को केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुव्यवस्थित करने और उसकी संपत्तियों के कुशल प्रबंधन के लिए वक्फ (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पेश किया। यह विधेयक फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास विचाराधीन है। विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्ड की पारदर्शिता बढ़ाना, उनके दायित्वों को स्पष्ट करना, और संपत्ति प्रबंधन में सुधार करना है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विधेयक लातूर जैसे मामलों में कोई ठोस समाधान दे पाएगा? क्या इससे वक्फ बोर्ड की विवादित कार्यप्रणाली पर लगाम लगाई जा सके।
भारत में कुल 32 वक्फ बोर्ड हैं, जिनमें से कुछ राज्य, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार, में शिया और सुन्नी समुदायों के लिए अलग-अलग बोर्ड हैं। इन बोर्डों का समन्वय केंद्रीय वक्फ काउंसिल करती है, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन काम करती है।
इन वक्फ बोर्डों का मुख्य उद्देश्य धार्मिक स्थलों, मस्जिदों, कब्रिस्तानों, और अन्य वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करना है। लेकिन समय के साथ इन बोर्डों पर भ्रष्टाचार, गलत प्रबंधन, और विवादित संपत्तियों पर दावे करने के आरोप लगते रहे हैं।
वक्फ बोर्ड की प्रामाणिकता पर सवाल
लातूर के किसानों का मामला वक्फ बोर्ड की प्रामाणिकता पर एक और सवालिया निशान है। यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि यह उन हजारों लोगों के अधिकारों की लड़ाई है, जिनकी संपत्ति पर इस संस्था ने दावा किया है।
किसानों का कहना है कि उनकी जमीन पर खेती उनकी आजीविका का आधार है। वक्फ बोर्ड के इस दावे से उनकी जीविका पर खतरा मंडरा रहा है।
वक्फ बोर्ड के विवादों को समाप्त करने और इसकी कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है। विधेयक में पारदर्शिता के प्रावधान: केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए वक्फ संशोधन विधेयक में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कड़े प्रावधान होने चाहिए। वक्फ बोर्ड के विवादित दावों की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना की जानी चाहिए। संपत्ति का दस्तावेजीकरण: वक्फ संपत्तियों और निजी संपत्तियों का स्पष्ट दस्तावेजीकरण होना चाहिए, ताकि विवादों को रोका जा सके। कानूनी प्रक्रिया को तेज करना: ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया को तेज और निष्पक्ष बनाने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की जानी चाहिए।
किसानों के अधिकार बनाम वक्फ बोर्ड का प्रभाव
लातूर का मामला वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करने का अवसर है। यह केवल 300 एकड़ जमीन का सवाल नहीं है, बल्कि यह उन लाखों लोगों के अधिकारों और आजीविका की लड़ाई है, जो इन विवादों का सामना कर रहे हैं।
केंद्र सरकार को वक्फ बोर्ड के दायरे और उनकी शक्तियों की समीक्षा करनी होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस संस्था का उपयोग केवल धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए हो, न कि व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए। वक्फ संशोधन विधेयक को सही मायनों में लागू करना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना ही इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।
लातूर के किसानों के इस संघर्ष ने देशभर में एक बहस को जन्म दिया है। अब यह सरकार और न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वे इस मुद्दे का समाधान करें और किसानों को उनका अधिकार दिलाएं।