यूथ इंडिया संवाददाता
फर्रुखाबाद। जिले में स्वास्थ्य महकमे की भ्रष्टाचार की गहराई और निजी अस्पतालों की अनियमितताओं के मामले ने क्षेत्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था को संकट में डाल दिया है। इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य विभाग के वित्तीय घोटालों और निजी अस्पतालों द्वारा की जा रही अनियमितताओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
जिले के स्वास्थ्य विभाग को 2023-24 वित्तीय वर्ष में कुल 100 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था। जांच में पता चला है कि इस बजट का लगभग 20त्न (20 करोड़ रुपये) भ्रष्टाचार के कारण दुरुपयोग हुआ है। इसमें ठेकेदारों को अधिक भुगतान, कागजों पर दवाइयों की खरीद और उपकरणों के लिए अतिरिक्त बिल शामिल हैं।
कई सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों की कमी की रिपोर्ट है, जबकि इनकी खरीद के लिए पूरी राशि आवंटित की गई थी। उदाहरण के लिए, बढ़पुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर दवाइयों की कमी के चलते 30त्न मरीजों को आवश्यक चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाई।
अनियमित वेतन और भत्ते
स्वास्थ्य विभाग के संविदा कर्मियों को पिछले 6 महीनों से वेतन में 3 महीने की देरी का सामना करना पड़ा है। इनमें 150 संविदा कर्मचारियों को वेतन समय पर न मिलने की शिकायतें आई हैं। इसके अतिरिक्त, कई कर्मचारियों को उनके भत्ते और अन्य वित्तीय लाभ भी नियमित रूप से नहीं मिल रहे हैं।
स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति
सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर आवंटित बजट के बावजूद आवश्यक दवाइयाँ और उपकरण उपलब्ध नहीं हैं। कई केंद्रों पर बुनियादी चिकित्सा सेवाएँ भी ठप पड़ी हैं। उदाहरण के लिए, फर्रुखाबाद के विकास नगर स्वास्थ्य केंद्र पर तीन महीनों से टेस्टिंग उपकरण काम नहीं कर रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों को निजी अस्पतालों में महंगे टेस्ट करवाने पर मजबूर होना पड़ा है।
निजी अस्पतालों की खुली डकैती
जनपद में कई निजी अस्पतालों ने इलाज और सर्जरी के लिए अत्यधिक शुल्क वसूला है। एक सामान्य सर्जरी का खर्च 50,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक लिया जा रहा है, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह खर्च 20,000 से 30,000 रुपये के बीच होता है।
निजी अस्पतालों में मरीजों से गैर-जरूरी जांच और टेस्ट के नाम पर अतिरिक्त शुल्क भी लिया जा रहा है। उदाहरण के लिए, एक निजी अस्पताल ने सामान्य रक्त परीक्षण के लिए 2,000 रुपये और एक्स-रे के लिए 5,000 रुपये वसूले हैं, जबकि सरकारी सुविधाओं में ये शुल्क बहुत कम हैं।
निजी अस्पतालों ने बीमा क्लेम के लिए धोखाधड़ी की है। मरीजों के इलाज के लिए प्रस्तुत किए गए बिलों में अनावश्यक खर्च जोड़े गए हैं। बीमाकृत मरीजों को इन अतिरिक्त खर्चों के कारण बीमा क्लेम की मंजूरी में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
कई मामलों में, निजी अस्पतालों ने बीमा कंपनियों के साथ सांठगांठ कर क्लेम के दावों को बढ़ाया है, जिससे मरीजों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
जिले के नागरिकों ने स्वास्थ्य विभाग और निजी अस्पतालों की अनियमितताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर कई धरने और जनसभाएँ आयोजित की हैं। नागरिकों का कहना है कि उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अत्यधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं और विभागीय भ्रष्टाचार के कारण उन्हें उचित सेवाएँ नहीं मिल रही हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस स्थिति को चिंताजनक बताया है और सरकारी अधिकारियों से शीघ्र और प्रभावी कार्रवाई की अपील की है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग में पारदर्शिता और निगरानी में सुधार की आवश्यकता है। इसके साथ ही, निजी अस्पतालों की सेवाओं और शुल्कों पर सख्त नियामक नियंत्रण लगाने की भी सिफारिश की गई है।
जिले में स्वास्थ्य महकमे के भ्रष्टाचार और निजी अस्पतालों की अनियमितताओं के गंभीर मामलों की जांच और सुधार की तत्काल आवश्यकता है। सरकारी अधिकारियों को चाहिए कि वे इस मुद्दे की गंभीरता को समझें और प्रभावी कार्रवाई करें ताकि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो सके और जनता को बेहतर और सुलभ चिकित्सा सुविधाएँ प्राप्त हो सकें। निजी अस्पतालों पर कड़ी निगरानी और नियमों का पालन सुनिश्चित करना भी आवश्यक है, ताकि मरीजों को अनावश्यक वित्तीय बोझ से बचाया जा सके।