अशोक मधुप
(वरिष्ठ पत्रकार)
अमेरिका के दूसरी बार बने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने को दुनिया का शांति का अग्रदूत साबित करने में लगे हैं।वे कहते रहे हैं कि भारत− पाकिस्तान युद्ध उनके कहने पर रूका।रूस− यूक्रेन युद्ध रूकवाने के लिए वे प्रयासरत है। वे चाहते हैं कि उन्हें नोवेल शांति पुरस्कार मिले,उधर वह ईरान पर हमला करते हैं । कहते हैं कि उन्होंने बड़ा काम किया है ।इससे इस्राइल− ईरान युद्ध रूक जाएगा। उनकी करनी और कथनी में जमीन आसमान का फर्क दीख रहा है और लग रहा है कि इस हालात में तो उन्हें शांति के लिए नोविल पुरस्कार नही मिलने वाला। रूस के पूर्व राष्ट्रपति और रूसी सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमला करके एक नया युद्ध शुरू कर दिया है। ऐसे में तो उन्हें इस तरह की सफलता के साथ ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा।
डोनाल्ड ट्रम्प दूसरी बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए हैं । पूरे चार वर्ष हैं उनके पास । वे अपने दुश्मनों से दोस्तों को लड़ाकर रास्ते पर रहें या हठ जाएं , उनकी राष्ट्रपति वाली कुर्सी पर कोई फर्क नहीं पड़ता । रूस और ईरान अमेरिका के परंपरागत शत्रु हैं । उन्होंने नाटो देशों के साथ मिलकर यूक्रेन को ताकतवर रूस से भिड़ा दिया , इससे यूक्रेन तो बर्बाद हो ही गया। रूस की भी बड़ी शक्ति इस लड़ाई में व्यय हो रही है । हाल ही में अमेरिका ने ईरान के तथाकथित तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया। ट्रंप कह रहे हैं कि ईरान के पास परमाणु बम है।परमाणु बम बनाने वाले तीनों केंद्रों पर उन्होंने हमला किया है, जबकि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तुलसी गैबार्ड कह रही हैं कि ईरान के पास परमाणु बम नहीं है । पुतिन बता रहे हैं कि ईरान के पास परमाणु बम नहीं है । । अमेरिका ने ही इसराइल से कहा कि यहूदियों का खत्मा करने के लिए ईरान ने परमाणु बम बना लिया है , यह कह कर उसने इजरायल को ईरान से भिड़ा दिया ।
अमेरिका के इस हमले के बाद रूस और चीन का क्या रवैया रहेगा,यह अभी स्पष्ट नही हुआ, हो सकता है कि यह खुल कर ईरान के साथ न आएं किंतु युद्ध सामग्री और तेजी से ईरान को उपलब्ध कराएंगे।ईरान की जरूरत के घातक हथियार उसे बेचेंगे।किंतु अगर ये खुलकर सामने आ गए तो तै है कि यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में बदल सकता है। लगता है कि ट्रंप ने ईरान में हमला करके पूरे विश्व की शांति को खतरे में डाल दिया। इससे सारे मुस्लिम देश एक मोर्चे पर आ जाएंगे।उम्मीद है कि इस हमले के बाद यमन के मुस्लिम आंतकी संगठन अमेरिका के विरूद्ध एकजुट हो जाएंगे।
अमेरिका ने रूस को तोड़ने के लिए ओसामा बिन लादेन जैसे आंतकी को इस्तमाल किया। उन्हें प्रश्य दिया ।अमेरिका के इराक पर हमले से लादेन नाराज हो गया।उसने अमेरिका के ट्रेड सैंटर पर हमला कर इसका बदला लिया। अब फिर मुस्लिम आंतकी संगठन एक हो अमेरिका के विरूद्ध खड़े हो जाएंगे। इस क्षेत्र में ईरान के सहयोगी मिलीशिया, जिनमें यमन में हूती, लेबनान में हिज़बुल्ला और इराक के सशस्त्र समूह, लड़ाई में शामिल नहीं हुए हैं. पिछले दो साल में उनमें से कई गंभीर रूप से कमज़ोर हो गए हैं, फिर भी वे ईरानी सहयोगी लड़ाई में शामिल हो सकते हैं। इस्लामिक आंतकी संगठन हूति और लेबनान में हिज़बुल्ला ने दक्षिण में एक महत्वपूर्ण तेल शिपिंग चैनल, रेड सी और बाब एल मंडेब जलडमरूमध्य पहले भी इस्राइल समर्थक कटेनर ले जाने वाले जहाज पर पहले भी हमला कर चुके हैं। अब ये जलडमरूमध्य को बंद करके या उसमें यातायात को बाधित करके वैश्विक तेल की कीमतों में तेजी जरूर पैदा कर सकते हैं, जो अब अमेरिकी हमले के बाद और ऊँची जाएगी। यहां से गुजरने वाले अमरिकी समर्थक देशों के शिपिंग कंटेनर पर ही नही और भी अमेरिकी समर्थक देशों पर हमले और बढ़ेंगे।
जहां तक भारत का सवाल है , इसराइल और ईरान दोनों भारत के घनिष्ट मित्र हैं । भारत का प्रयास होगा कि युद्ध रूके । भारत रूस− यूक्रेन युद्ध के समय से ही कहता आ रहा है कि यह समय युद्ध का नही है।
ट्रंप भी अब तक भारत के सबसे बड़े मित्रों में से एक थे । लेकिन ट्रंप ने अपने स्वार्थों की खातिर भारत के दुश्मन पाकिस्तान से हाथ मिला लिया। पाकिस्तान से हाथ मिलाने का उसका मंतव्य भी स्पष्ट हो गया। सूचनाएं आ रही है कि ईरान पर हमले के लिए उसने पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तमाल किया। ट्रंप ने हजारों करोड़ डॉलरों का लालच देकर पाकिस्तान को इस्लामिक जगत में नंगा कर दिया और पाकिस्तान को पता भी न चला ? यह तै है कि इसमें बाद अमेरिका पाकिस्तान को और ज्यादा मदद देगा, विमान और शस्त्रों की आपूर्ति करेगा।
भारत जो अब तक अमेरिका से आधुनिकतम लड़ाकू विमान और शस्त्र प्रणाली खरीदने की बात कर रहा था। उसे इस घटनाक्रम से चौकस होना होगा।यही वजह है कि भारत अब रूस से 5.5 जनरेशन के फाइटर प्लेन खरीदने की तैयारी में है । यही विमान अमेरिका हमें बेचना चाहता था । भारत पहले ही अपने शस्त्र और युद्धक विमान विकसित कर रहा था, उसे अब और चौकस होकर देश की सुरक्षा की रणनीति बनानी होगी।
ईरान ने अभी तक इसराइली हमलों का जवाब मिसाइल-प्रहारों से दिया है, लेकिन उसने पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैनिकों या ठिकानों पर हमला करने से परहेज़ किया है। उसने सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगी अरब देशों पर भी हमला नहीं किया है।शुक्रवार को ईरानी विदेशमंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा कि अगर अमेरिका ईरान पर हमला करेगा, तो देश को जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार है। ऐसे में यदि ईरान अमेरिका और मित्र देशों पर हमला करता है तो युद्ध भड़क सकता है।
एक बात और पूरी दुनिया के देशों को सोचना होगा कि क्या किसी एक देश को ये ठेकेदारी दी जा सकती है कि वह तै करे कि कौन देश कौन सा हथियार रखेगा,कौन सा नही। प्रत्येक देश को अधिकार है कि यह अपनी देश की जरूरत के हिसाब से हथियार खरीदे और विकसित करे। अमेरिका और मित्र देश नही चाहते थे कि भारत परमाणु बम बनाए। वह उसे आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए धमका रहे थे। उसके बाद भी भारत ने परमाणु बम का विस्फोट किया था। इसके बाद अमेरिका और मित्र देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे।ऐसा ही भारत के रूस से एस−400 मिसाइल सिस्टम खरीदते हुआ था।
अमेरिका ने भारत को बार− बार आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी। उधर भारत ने अमेरिका से लडाकू विमान के इंजिन लेने का सौदा किया, किंतु निर्धारित अवधि के काफी बाद भी भारत को इंजिन नही मिले।इससे साफ हो जाता है कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी तो अमेरिका के दुश्मन देश की हो। यह भी कि उसे अपनी सुरक्षा प्रणाली विकसित करने पर युद्ध स्तर पर काम करना होगा।
चीन भारत का दुश्मन देश है। फिर भी वह कभी भारत का सगा नही हो सकता। ऐसे में बस रूस ही बचा है।वह भारत का अजमाया और विश्वसनीय दोस्त है। वर्तमान हालात में उस पर भी पूरी तरह से यकीन नही किया जा सकता, क्योंकि वह यूक्रेन युद्ध में चीन पर निर्भर होता जा रहा है।ऐसे में हमें होगी।स्वनिर्मित प्रणाली के बूते पर अपनी युद्ध नीति स्वयं बनानी ।