प्रशांत कटियार
देश की सबसे बड़ी और महत्त्वाकांक्षी योजना मनरेगा अब महाघोटाला योजना बन चुकी है। गरीबों को रोजगार देने के नाम पर इस योजना में ऐसा भ्रष्ट तंत्र विकसित हो गया है, जहां फोटोशूट, फर्जी हाजिरी और बैंक खातों की लूट ही असली काम बन गया है। असली मजदूरों की जगह अब कैमरे के सामने दिखावे के चेहरे हाजिरी दे रहे हैं, और सरकारी धन पर चोरों का गिरोह बेशर्मी से बंदरबांट कर रहा है।
आज हालत ये है कि मनरेगा साइट पर अपलोड हो रही तस्वीरें देखकर कोई भी पूछ सकता है क्या ये मजाक चल रहा है? कहीं कड़क गर्मी में ऊनी स्वेटर पहने लोग काम कर रहे हैं, तो कहीं बारिश में सूखी ज़मीन पर गड्ढा खोदने की एक्टिंग चल रही है। कही ताश खेलते हुए लोग मजदूर बताये जाते है। एक ही फोटो को कई दिन तक अपलोड कर दिया जाता है, और अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। जो सिस्टम पारदर्शिता के लिए बनाया गया था, वही अब भ्रष्टाचार को ढकने का साधन बन चुका है।
कई गांवों में प्रधानों ने मजदूरों के नाम पर बैंक खाते खुलवाकर उनके एटीएम खुद रख लिए हैं। मजदूरों को तो ये तक नहीं पता कि पैसा आया भी या नहीं। उनके अंगूठे प्रधानों के घरों पर लगवाए जाते हैं और हजारों की निकासी कर दी जाती है। कई जगह बिना काम के ही बिल फीड कर पैसा निकाल लिया जाता है, और शोशल ऑडिट के भी रेट फिक्स है यह सीधा लूट बल्कि नंगा लूट है।
डीसी मनरेगा, बीडीओ, एपीओ, लेखा सहायक, कंप्यूटर ऑपरेटर, प्रधान, सचिव रोजगार सेवक सबका हिस्सा तय है। अगर कोई जांच होती भी है, तो एक दूसरे को बचाने का फॉर्मूला तुरंत निकाल लिया जाता है। अखबारों में घोटाले की खबर छपती है, लेकिन जिनके कान पर जूं रेंगनी चाहिए, वो कमीशन की गूंज में बहरे बने बैठे हैं।
गुजरात में मनरेगा में 1500 करोड़ की लूट का पर्दाफाश हुआ है। राज्य के मंत्री के दो बेटे SIT के हत्थे चढ़े हैं। क्या अब भी सरकार को ये समझने में देर लगनी चाहिए कि यह कोई साधारण प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि सुनियोजित राष्ट्रीय लूट है? सरकार दावा करती है कि वह पारदर्शिता ला रही है। लेकिन जरा बताइए, जब ज़िम्मेदार ही चोर बन जाएं, तो तकनीक क्या कर लेगी?
जियो-टैगिंग, ऑनलाइन भुगतान सब फेल हैं, फर्रुखाबाद मे तो कब्रिस्तान का भी समतलीकरण कर योजना का खुला मजाक बना दिया जाता खैर जब सिस्टम ही सड़ा हुआ है। मनरेगा को बचाना है तो चोरों को जेल भेजिए, योजनाओं में नहीं ज़मीन पर पारदर्शिता लाइए।
मनरेगा आज गरीबों के लिए नहीं, सरकारी तंत्र के भ्रष्ट गिरोहों के लिए कमाई का जरिया बन गया है। अब समय आ गया है कि सरकार सिर्फ भाषण न दे, बल्कि इन भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे भेजे। नहीं तो ये योजना भी उसी कब्र में चली जाएगी, जहां सैकड़ों सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार नाम के राक्षस ने निगल ली हैं।