देश जब संकट की घड़ी में होता है, तब उसका असली चेहरा नेतृत्व की दृढ़ता, सुरक्षा बलों की तत्परता और राष्ट्रीय नीति की स्पष्टता से उजागर होता है। भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan) के बीच एक बार फिर उभरते तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा बुलाई गई उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक इसी दृढ़ता और रणनीतिक पारदर्शिता की मिसाल है। तीनों सेनाओं के प्रमुखों की एक साथ उपस्थिति, रक्षा मंत्री की भागीदारी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की रणनीतिक समीक्षा इस बात का प्रमाण हैं कि भारत अब प्रतिक्रियावादी नहीं, बल्कि सक्रिय रणनीतिक राष्ट्र बन चुका है।
प्रधानमंत्री निवास पर आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जैसे शीर्ष रणनीतिकारों की उपस्थिति केवल एक बैठक नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता और सामरिक दृढ़ता का सशक्त प्रतीक है।
ऐसे समय में जब पाकिस्तान ने जम्मू, पठानकोट और उधमपुर जैसे सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए मिसाइल और ड्रोन हमले किए, भारत का शांत, परंतु रणनीतिक रूप से सक्रिय रुख न केवल अंदरूनी स्थायित्व का संकेत है, बल्कि वैश्विक समुदाय को यह संदेश भी देता है कि भारत अब युद्ध या आतंक का मोहरा नहीं बनेगा, बल्कि निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार है।
इस बैठक की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि भारत की थल, वायु और नौसेना एक साथ रणनीति तैयार करने के लिए एक मंच पर आईं। यह समन्वय नई भारतीय युद्ध नीति का हिस्सा है, जो अब एक आयामी नहीं, बल्कि बहुआयामी है। चाहे वह समुद्र की सीमाएं हों, हवाई सुरक्षा या स्थलीय टुकड़ियों की तैनाती-भारत ने एक संयुक्त कमांड और इंटीग्रेटेड ऑपरेशन की दिशा में मजबूत कदम बढ़ा दिए हैं।
भारत की ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप’ (IBG) प्रणाली और ‘थिएटर कमांड’ की अवधारणा अब सैद्धांतिक न रहकर व्यवहारिक रूप में सामने आ रही है। इस बैठक में ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाइयों की समीक्षा इस बात की पुष्टि करती है कि भारतीय सेना अब सीमित जवाब की नीति नहीं अपना रही, बल्कि किसी भी आक्रामकता का बहुआयामी और गहन उत्तर देने में सक्षम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व शैली ने एक बार फिर यह दर्शाया कि संकट की घड़ी में निर्णय लेने की गति और स्पष्टता, दोनों आवश्यक होती हैं। उनका यह रुख कि सैन्य और सुरक्षा मामलों में राजनीतिक नेतृत्व केवल पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि भागीदार होना चाहिए, अब भारतीय नीति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
यह वही मोदी हैं जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे साहसिक निर्णयों को न केवल मंजूरी दी, बल्कि वैश्विक मंच पर उसका नैतिक औचित्य भी प्रस्तुत किया। वर्तमान संकट में भी उनका रुख स्पष्ट है—”भारत युद्ध नहीं चाहता, पर यदि युद्ध थोपा गया, तो जवाब दुगुना होगा।”
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की उपस्थिति किसी भी बैठक में रणनीतिक संतुलन और गहराई का प्रतीक मानी जाती है। खुफिया सूचना से लेकर ऑपरेशनल प्लानिंग तक, डोभाल की भूमिका अब केवल सलाहकार नहीं, बल्कि निष्पादक की होती जा रही है। यह उनकी ही रणनीतिक समझ थी जिसने डोकलाम से लेकर गलवान तक के संकटों में भारत को पीछे नहीं हटने दिया।
इस बैठक में उनकी भूमिका संभवतः संभावित पाकिस्तानी रणनीति को पढ़ने, आतंकवादी ढांचे की पहचान करने और सीमा पार गतिविधियों पर खुफिया पकड़ को मजबूत करने की दिशा में रही होगी। बैठक के दौरान उपस्थित अधिकारियों के चेहरे पर स्पष्ट आत्मविश्वास और संतुलन दिखाई देना केवल मनोवैज्ञानिक संकेत नहीं, बल्कि यह बताता है कि भारत की सेनाएं अब हर स्तर पर प्रशिक्षित, तैयार और प्रेरित हैं। सैन्य बलों ने पाकिस्तान के मिसाइल और ड्रोन हमलों का न केवल मुंहतोड़ जवाब दिया, बल्कि कई सैन्य पोस्टों को ध्वस्त करके यह संकेत दे दिया कि जवाब अब रक्षात्मक नहीं, निर्णायक होगा। यह आत्मविश्वास केवल हथियारों से नहीं आता, यह आता है राष्ट्रीय नीति, सैन्य प्रशिक्षण, आधुनिक तकनीक और उच्च मनोबल से। यह सब भारत की सेना में अब पूरी तरह विद्यमान है।
पाकिस्तान एक बार फिर भारत के खिलाफ ‘हाइब्रिड वारफेयर’ की नीति अपना रहा है—जिसमें आतंकवाद, साइबर हमले, ड्रोन तकनीक और कूटनीतिक भ्रम फैलाना शामिल हैं। परंतु भारत अब 1999 का भारत नहीं है। पाकिस्तान की यह रणनीति अब नाकाम होने लगी है क्योंकि भारत ने सीमा सुरक्षा, तकनीकी निगरानी और आतंकवाद विरोधी रणनीति को अभूतपूर्व रूप से मजबूत किया है। वर्तमान में ऑपरेशन सिंदूर जैसी जवाबी कार्रवाई यह दर्शाती है कि भारत अब केवल रक्षात्मक मुद्रा में नहीं है, बल्कि हमलावर रणनीति के लिए तैयार है—और यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता है।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश होते हुए भी अपनी सुरक्षा नीति में पूर्ण स्पष्टता और गति बनाए रखता है। न केवल सुरक्षा बलों को खुला समर्थन मिला है, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व और सार्वजनिक विश्वास भी उनकी पीठ पर मजबूती से खड़ा है। भारत ने हमेशा वैश्विक मंच पर शांति की बात की है, पर उसकी रक्षा नीति अब आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास पर आधारित है।
इस संकट के आलोक में भारत को निम्नलिखित क्षेत्रों में अपनी रणनीति और मज़बूत करनी होगी: ड्रोन, सैटेलाइट निगरानी और एआई आधारित खुफिया तंत्र को और विकसित करना होगा।तीनों सेनाओं के बीच इंटीग्रेटेड कमांड को पूरी तरह लागू करने की दिशा में अब समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। राज्यों और नागरिक रक्षा इकाइयों को ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित और सशक्त किया जाना चाहिए।वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की आतंक-प्रेरित नीतियों को उजागर करना और भारत की शांतिप्रिय परंतु सामर्थ्यवान छवि को स्थापित करना अनिवार्य है। पाकिस्तान और अन्य विरोधी ताकतों की साइबर आक्रमण क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए भारत को एक साइबर डिफेंस कमांड स्थापित करना चाहिए।
प्रधानमंत्री आवास पर हुई इस ऐतिहासिक बैठक ने देश को यह भरोसा दिया है कि भारत की सीमाएं सुरक्षित हैं, नेतृत्व सजग है, और सेना पूरी तरह तैयार। यह केवल सामरिक बैठक नहीं थी, यह भारत की सुरक्षा संप्रभुता का एक सशक्त घोषणापत्र थी। दुनिया को अब यह समझना होगा कि भारत शांति चाहता है, पर कमजोर नहीं है। वह वार्ता में विश्वास रखता है, पर हमले की स्थिति में संकोच नहीं करता। यह नई भारतीय नीति है—जो निर्णायक, सशक्त और आत्मनिर्भर है।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप