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Friday, June 27, 2025

2027 के चुनाव में भाजपा की संगठनात्मक कमजोरी से सपा की राह और भी आसान

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यूथ इंडिया संवाददाता
लखनऊ। बीते लोकसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को संगठनात्मक कमजोरियों और जातीय वोट बैंक की नाराजगी के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्षों के चयन में कार्यकर्ताओं की अनदेखी और जनप्रतिनिधियों की मनमानी ने पार्टी के भीतर असंतोष की लहर पैदा कर दी है। इसके चलते समाजवादी पार्टी (सपा) की स्थिति मजबूत होती नजर आ रही है।
भाजपा के संगठनात्मक चुनावों में जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्षों के चयन में कार्यकर्ताओं की भूमिका को नजरअंदाज किया गया, जिससे असंतोष का माहौल पैदा हुआ। कार्यकर्ताओं का मानना है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनकी मेहनत को अनदेखा कर रहा है।
जनप्रतिनिधियों की मनमानी और दबाव में लिए गए फैसले संगठन को कमजोर कर रहे हैं। सपा का पीडीए मॉडल (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) भाजपा के लिए चुनौती बन गया है, और पार्टी इसका कोई प्रभावी समाधान नहीं निकाल पाई है। 2024 के चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के कन्नौज, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, एटा, हरदोई, कासगंज, और औरैया जैसे जिलों में कमजोर प्रदर्शन किया। लोधी समुदाय, जो भाजपा का पारंपरिक वोटर माना जाता था, अब सपा की तरफ झुक गया है। पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह के परिवार की अनदेखी ने लोधी समुदाय को नाराज कर दिया है।
कन्नौज और फर्रुखाबाद जैसे क्षेत्रों में लोधी वोटरों ने सपा को समर्थन दिया। 2024 में सपा ने शाक्य और कुर्मी समुदाय का भारी समर्थन हासिल किया।कन्नौज, मैनपुरी, और इटावा में शाक्य समुदाय ने सपा को प्राथमिकता दी। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की गिरावट साफ देखी गई। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीडीए मॉडल को मजबूत करते हुए पिछड़े, दलित, और अल्पसंख्यक समुदायों को साधने में सफलता पाई। सपा ने लोधी, शाक्य, यादव, और कुर्मी जैसे समुदायों का समर्थन जुटाया।सपा की रणनीति भाजपा की जातीय राजनीति को चुनौती देने में कारगर रही। सपा ने कन्नौज, मैनपुरी, और फर्रुखाबाद को अपने गढ़ के रूप में बरकरार रखा। एटा, कासगंज, और हरदोई में सपा का प्रदर्शन भाजपा के लिए चेतावनी साबित हुआ।
लोधी और शाक्य समुदाय को वापस भाजपा के पक्ष में लाने के लिए ठोस मशक्कत भी फीकी पड़ रही। सपा के पीडीए मॉडल का मुकाबला भी नहीं हो पा रहा है। 2027 का चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। सपा के जातीय समीकरण और भाजपा की संगठनात्मक कमजोरी ने सपा को बढ़त दे दी है।

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