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Friday, May 9, 2025

बंग्लादेश में हिन्दुओं के कत्लेआम की खबरें दिखाने वाले भारतीय चैनलों पर गिरेगी गाज, युनूस सरकार पहुंची हाईकोर्ट

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ढाका। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा। उपद्रवी कभी मंदिरों तो कभी उनके घरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हाल ही में हिंदुओं के जाने-माने नेता चिन्मय कृष्ण दास (Chinmay Krishna Das) को भी गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद से यहां लगातार तनाव जारी है। अल्पसंख्यकों के लिए आवाज उठाने पर अब भारतीय चैनलों पर भी गाज गिरने वाली है। यहां की हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें बांग्लादेशी संस्कृति और समाज (Bangladeshi Culture and Society) पर भारतीय मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई है। इतना ही नहीं, भारतीय टीवी चैनलों (Indian TV channels) के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की गई है।

इस एक्ट के तहत प्रतिबंध लगाने की मांग

सोमवार को याचिका दायर करने वाले वकील एकलास उद्दीन भुइयां ने केबल टेलीविजन नेटवर्क ऑपरेशन एक्ट 2006 (Cable Television Network Operation Act 2006) के तहत भारतीय टीवी चैनलों (Indian TV channels) के प्रसारण पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। साथ ही यह भी पूछा है कि बांग्लादेश में भारतीय टीवी चैनलों (Indian TV channels) पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देने वाला नियम क्यों नहीं जारी किया जाना चाहिए।

इनको बनाया गया प्रतिवादी

न्यायमूर्ति फातिमा नजीब और न्यायमूर्ति सिकदर महमूदुर रजी की पीठ याचिका पर सुनवाई कर सकती है। याचिका में सूचना मंत्रालय और गृह मंत्रालय के सचिवों, बांग्लादेश दूरसंचार नियामक आयोग (BTRC) और अन्य को प्रतिवादी बनाया गया है।

इन चैनलों के प्रसारण पर रोक की मांग

ढाका ट्रिब्यून (Dhaka Tribune) के अनुसार, स्टार जलशा (Star Jalsha), स्टार प्लस (Star Plus) , जी बांग्ला (Zee Bangla), रिपब्लिक बांग्ला (Republic Bangla) जैसे भारतीय टीवी चैनलों (Indian TV channels) पर प्रतिबंध लगाने की मांग करती है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि भारतीय चैनलों (Indian channels) पर भड़काऊ खबरें दिखाई जा रही हैं और बांग्लादेशी संस्कृति (Bangladeshi Culture) का विरोध करने वाली सामग्री से युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है। इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया है कि ये चैनल किसी भी नियमों का पालन किए बिना चलाए जा रहे हैं।

गौरतलब है कि बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ हिंसक हमलों में वृद्धि देखी गई है, जिससे अधिक सुरक्षा और समर्थन की मांग की जा रही है।

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