उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल की प्राकृतिक गोद में बसा भीमताल — न केवल अपने मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित नौकुचियाताल और गंगा मंदिर अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और रहस्यमयी महत्ता के कारण श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों दोनों के आकर्षण का केंद्र हैं।
नैनीताल जिले का यह क्षेत्र आज भी प्रकृति और आस्था के अनूठे संगम का प्रतीक माना जाता है।
‘नौकुचिया ताल’ शब्द का अर्थ ही है — “नौ कोनों वाली झील”।
समुद्र तल से लगभग 1,220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह झील उत्तराखंड की सबसे रहस्यमयी झीलों में गिनी जाती है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति एक साथ इसके सभी नौ कोनों को देख ले, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है — किंतु यह देखने में संभव नहीं माना गया, इसलिए यह लोककथा आज भी लोगों के मन में रहस्य की तरह बसी हुई है।
स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडवों को वनवास मिला था, तब भीम ने इस क्षेत्र में कुछ समय व्यतीत किया था।
भीम की गदा से जब धरती पर प्रहार हुआ, तब इस झील का निर्माण हुआ — इसलिए इसे भीमताल क्षेत्र का भाग माना जाता है।
झील के किनारे बसे गांवों में आज भी पांडवों से जुड़ी अनेक कथाएँ लोकगीतों के रूप में सुनाई जाती हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, कुमाऊँ के चंद वंश के शासनकाल में नौकुचियाताल क्षेत्र व्यापारिक मार्ग का हिस्सा था। यहां से नेपाल और काठमांडू की ओर जाने वाले व्यापारी विश्राम के लिए रुकते थे, जिससे यह क्षेत्र धीरे-धीरे आबाद हुआ।
नौकुचियाताल के तट पर स्थित गंगा मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी स्थापत्य शैली भी अत्यंत अद्भुत है।
मंदिर में गंगा मैया की प्रतिमा शुद्ध शिलाखंड से निर्मित है, जिसके चारों ओर शिव-पार्वती, गणेश और नंदी की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
मंदिर के गर्भगृह में हर वर्ष गंगा दशहरा के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना होती है, जिसमें स्थानीय निवासियों के साथ सैकड़ों पर्यटक भी भाग लेते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 20वीं सदी के प्रारंभ में एक साधु “गंगादास महाराज” ने की थी, जिन्होंने यहाँ कठोर तपस्या की और झील के जल को गंगाजल के समान पवित्र बताया।
इस मान्यता के कारण लोग आज भी झील का जल अपने घरों में पूजन हेतु ले जाते हैं।
नौकुचियाताल अपनी सात झीलों वाले नैनीताल क्षेत्र की श्रृंखला का हिस्सा है, और अपनी शांतता व प्राकृतिक संतुलन के लिए प्रसिद्ध है।
यहां की झील का जल अत्यंत स्वच्छ और गहरा है — वैज्ञानिकों के अनुसार, इसकी अधिकतम गहराई लगभग 40 मीटर है।
यह उत्तराखंड की सबसे गहरी झीलों में से एक है।
पक्षी प्रेमियों के लिए यह स्थान स्वर्ग समान है, क्योंकि यहां हर मौसम में प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है।
स्थानीय प्रशासन और पर्यावरण संगठन झील की स्वच्छता और जैव विविधता की रक्षा के लिए लगातार अभियान चलाते रहते हैं।
हर वर्ष गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्रांति के अवसर पर झील के किनारे भव्य मेले और स्नान पर्व का आयोजन होता है।
गंगा मंदिर में विशेष गंगा आरती होती है, जो नैनीताल क्षेत्र की प्रसिद्ध आरतियों में से एक मानी जाती है।
पर्यटक झील में नौकायन करते हुए आरती का दृश्य देखते हैं — यह अनुभव किसी तीर्थ से कम नहीं।
नौकुचियाताल केवल एक झील नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और प्रकृति का जीवंत प्रतीक है।
इसके तट पर स्थित गंगा मंदिर उस पवित्रता की भावना को जीवित रखता है, जो मनुष्य को प्रकृति के साथ आध्यात्मिक रूप से जोड़ती है।
> यहाँ की हवा में गंगाजल की शुद्धता है,
और झील की लहरों में इतिहास की गहराई।
नौकुचियाताल और गंगा मंदिर केवल एक यात्रा स्थल नहीं — यह एक अनुभव हैं, जो आत्मा को शांति और हृदय को श्रद्धा से भर देते हैं।
यदि आपको उत्तराखंड की गोद में बसे “भीमताल” की इस झील की लहरों की कहानी सुननी है, तो नौकुचियाताल के तट पर कुछ पल मौन रहिए — हवा और जल खुद बता देंगे कि प्रकृति ही सबसे बड़ी तीर्थ है।






