शरद कटियार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने गंभीर बीमार और असहाय बंदियों की समयपूर्व रिहाई को लेकर जिस मानवीय (humane) पहल की ओर कदम बढ़ाया है, वह स्वागतयोग्य है। जेल केवल दंड का स्थान नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास की प्रयोगशाला होनी चाहिए। यदि कोई बंदी वृद्धावस्था, असाध्य रोग या अशक्तता के कारण समाज के लिए खतरा नहीं रह गया है, तो उसे अमानवीय परिस्थितियों में जेल में कैद रखकर हम केवल न्याय की आत्मा को ही आहत करते हैं।
मुख्यमंत्री का यह निर्देश कि पात्र बंदियों की रिहाई स्वतः विचाराधीन हो और इसके लिए उन्हें अलग से आवेदन न करना पड़े, व्यवस्था में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप बनाई जाने वाली नई नीति से यह उम्मीद की जा सकती है कि प्रदेश में जेल सुधारों का नया अध्याय शुरू होगा।
इस बात पर भी जोर देना होगा कि हत्या, आतंकवाद, देशद्रोह और महिलाओं व बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों में दोषी पाए गए बंदियों को किसी भी तरह की रियायत न मिले। समाज की सुरक्षा सर्वोपरि है और नीति बनाते समय इस मूल सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री ने हर वर्ष तीन बार स्वतः समीक्षा का जो प्रावधान सुझाया है, वह यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी पात्र बंदी उपेक्षा का शिकार न हो। साथ ही, कैदियों को कृषि, गोसेवा और रचनात्मक कार्यों से जोड़ने का विचार उनके पुनर्वास और आत्मनिर्भरता की दिशा में सकारात्मक कदम है।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) की प्रणाली को अपनाने पर हो रहा विचार इस पहल को और अधिक कानूनी मजबूती देगा। यह सुनिश्चित करेगा कि जेलों में बंद प्रत्येक व्यक्ति अपने न्यायिक अधिकारों से वंचित न रह जाए। जेल सुधार, असल में, समाज के सुधार का ही हिस्सा हैं। यदि सरकार मानवीय संवेदनाओं और पारदर्शिता के साथ यह नीति लागू करती है, तो यह न केवल बंदियों के जीवन में रोशनी लाएगी बल्कि समाज में न्याय और दया के संतुलन को भी कायम रखेगी।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप