लखनऊ: योगी सरकार (Yogi government) ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों (caste-based rallies) पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हालिया निर्देश के बाद लिया गया है। कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने कल देर रात सभी जिलाधिकारियों, सचिवों और पुलिस प्रमुखों को 10-सूत्रीय निर्देश जारी किए। इस आदेश में पुलिस रिकॉर्ड, जिसमें एफआईआर, गिरफ्तारी ज्ञापन और अन्य आधिकारिक प्रपत्र शामिल हैं, से जाति संबंधी संदर्भ हटाने का आदेश दिया गया है।
निर्देश में नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड पर जाति-आधारित चिन्हों और नारों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। जातिसूचक नाम, नारे या स्टिकर वाले वाहनों का केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत चालान किया जाएगा। आदेश के अनुसार, राजनीति से प्रेरित, जाति-आधारित रैलियाँ सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा हैं, इसलिए इन पर सख्त प्रतिबंध है। सरकार अनुपालन के लिए सोशल मीडिया पर भी नज़र रखेगी।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम से संबंधित मामलों में छूट दी जाएगी। नए आदेशों का पालन करने के लिए पुलिस नियमों में संशोधन किया जाएगा।
समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस कदम का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि यह विपक्ष को निशाना बनाने की कोशिश है। कई ट्वीट्स में, पार्टी ने दावा किया कि भाजपा सरकार की यह कार्रवाई पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के एजेंडे का जवाब है, जिसने, सपा के अनुसार, नियुक्तियों और व्यवस्था में सत्तारूढ़ पार्टी के जातिवाद को उजागर कर दिया है। सपा ने कहा कि नए नियम का उद्देश्य भाजपा को “जातिवाद का खेल और खुलकर खेलने” की अनुमति देना है। उसने संकल्प लिया कि पीडीए भाजपा से सवाल पूछता रहेगा और उसके “जातिवाद” को चुनौती देता रहेगा।