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Wednesday, February 5, 2025

क्या मकर संक्रांति पर बिहार में होगा फिर कोई सियासी खेला

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अशोक भाटिया

बिहार (Bihar) में नीतीश कुमार कुछ भी करने वाले होते हैं तो उसके संकेत पहले से ही मिलने लगते हैं। कई बार लगता है कि ये तो सामान्य बात है लेकिन कुछ महीने बाद ही असामान्य हो जाती है।नीतीश कुमार की एक तस्वीर पर ख़ूब बात हो रही है। इस तस्वीर में नीतीश कुमार ने हँसते हुए तेजस्वी यादव के कंधे पर हाथ रखा है और तेजस्वी हाथ जोड़कर थोड़ा झुक कर हँस रहे हैं। हालांकि यह एक सरकारी कार्यक्रम की तस्वीर है। जहां पक्ष और विपक्ष का आना एक औपचारिक रस्म होता है। लेकिन कई बार औपचारिक रस्म में ही अनौपचारिक चीज़ें हो जाती हैं। दरअसल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान राज्यपाल की शपथ ले रहे थे और इसी कार्यक्रम में नीतीश कुमार भी मौजूद थे और बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी। दोनों नेताओं की यह तस्वीर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने एक चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाज़े खुले हुए हैं।बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और राज्य के सियासी गलियारों में पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार को लेकर लगातर अटकलें लगाई जा रही हैं। इन अटकलों को नीतीश की चुप्पी ने भी हवा दी है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के एक बयान ने बिहार की सियासत में अटकलों को तेज़ कर दिया है।

गौरतलब है कि पिछली मकर संक्राति 14 जनवरी 2024 को नीतीश कुमार एकदम से आरजेडी और INDIA ब्लॉक से रिश्ता तोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। नीतीश वैसे तो आरजेडी के सपोर्ट से ही बिहार के सीएम बने हुए थे, लेकिन नाता तोड़ने पर भी इसपर फर्क नहीं पड़ा। वे एनडीए की मदद से सीएम बने रहे। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सहयोगियों से दूरी के पीछे कारण गिनाते हुए उन्होंने कहा था कि वे बिहार के फायदे के लिए ऐसा कर रहे हैं। हालांकि राजनीति के जानकारों ने इसे उनकी आदत बताते हुए कहा कि वे हवा का रुख भांपकर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए में आए क्योंकि उन्हें यकीन था कि लोकसभा चुनावों में ये पार्टी कमाल करेगी।

इन अटकलों के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी ‘प्रगति यात्रा’ के दूसरे चरण की शुरुआत आज 4 जनवरी से गोपालगंज से कर रहे हैं। इस यात्रा में वे कई जिलों का दौरा करेंगे, विकास कार्यों का जायजा लेंगे, योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे और जनता से संवाद करेंगे। यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब प्रदेश में सियासी हलचल तेज है और नीतीश कुमार के राजनीतिक रुख को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें तेज हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में एक बयान दिया था जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। लालू यादव ने कहा था कि अगर सीएम नीतीश वापस आते हैं तो उनका स्वागत होगा। उन्होंने आगे कहा था कि माफ करना उनका फर्ज है और वो सब भूल कर सीएम नीतीश को अपने साथ रख लेंगे। उनके लिए दरवाजा खुला है।

लालू यादव के इस बयान के बाद विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने अलग रुख अपनाया है। उन्होंने कहा है कि अब सीएम नीतीश के साथ जाना यानी अपनी पैर पर कुल्हाड़ी मारना होगा। सीएम नीतीश के लिए दरवाजे अब बंद है। दो नेताओं के अलग-अलग बयान इस सियासी उठापटक को और दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में नीतीश कुमार की यह ‘प्रगति यात्रा’ और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस यात्रा के दौरान नीतीश कुमार जनता के सामने क्या संदेश देते हैं और उनकी राजनीतिक रणनीति क्या रहती है।

दूसरी तरफ बीजेपी को नीतीश की जरूरत मालूम है, इसलिए बिहार बीजेपी की तरफ से उनको अगले चुनाव के लिए नेता मान लिया गया है। पर कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार भाजपा से नाराज हैं। उनकी नाराजगी के कई कारण बताए जाते हैं। पहला यह कि अमित शाह ने अगली बार उन्हें सीएम बनाए जाने के सवाल पर ऐसा बयान दे दिया कि उनका नाराज होना स्वाभाविक है। शाह ने कहा कि संसदीय बोर्ड सीएम का फैसला करेगा। शाह का बयान इसलिए भी नीतीश कुमार को नागवार लग सकता है कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ जो हुआ, उसकी पुनरावृत्ति के आसार बिहार में भी दिख रहे हैं। वैसे नीतीश कुमार की नाराजगी का उनकी चुप्पी के कारण सिर्फ अनुमान भर है।

इन सबके बीच नीतीश कुमार खामोश हैं। उनकी खामोशी से ही अटकलों को आधार मिल रहा है। बिहार की राजनीति में नीतीश की चुप्पी और नए साल की शुरुआत का संयोग ही अटकलों का आधार है। जानकार मान रहे हैं कि जब-जब नीतीश खामोश होते हैं, बिहार में सियासी उलट-फेर होता है। चाहे एनडीए छोड़ कर इंडिया ब्लॉक में जाना हो या इंडिया ब्लॉक से एनडीए में लौटना, यह उनकी कुछ दिनों की चुप्पी के बाद ही होता है। दूसरा कि बिहार में मकर संक्रांति के बाद ही पिछली बार बिहार में सत्ता का खेमा बदला था। नीतीश कुमार अपने ही तैयार किए इंडिया ब्लॉक को छोड़ कर एनडीए में शामिल हो गए थे। इस बार भी वे चुप हैं। महीना भर से अधिक हो गया, वे मीडिया के सामने नहीं आए। सामान्य स्थिति में वे मीडिया के लोगों से खूब बातें करते हैं।

नीतीश कुमार की नाराजगी को लोग इसलिए भी महसूस कर रहे हैं कि उन्होंने दिल्ली की यात्रा की और भूतपूर्व पीएम मनमोहन सिंह के परिजनों से मिल कर उन्हें सांत्वना दी, लेकिन भाजपा नेताओं से बिना मिले वे एक दिन पहले ही दिल्ली से लौट आए। अमित शाह द्वारा बुलाई एनडीए की बैठक से भी नीतीश ने दूरी बना ली थी। लोग इन्हीं तारों को जोड़ कर उनके भाजपा से नाराज होने का अनुमान लगा रहे हैं।

नीतीश कुमार की नाराजगी का एक और कारण माना जा रहा है। जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह भाजपा के अधिक करीब इन दिनों दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार की मर्जी के खिलाफ दोनों भाजपा के इशारे पर चल रहे हैं। अगर ऐसा है तो नीतीश कुमार का नाराज होना स्वाभाविक है। उनका मुंह एक बार जल चुका है। आरसीपी सिंह भी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते राज्यसभा गए थे। नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में वे मंत्री बने तो भाजपा की भाषा बोलने लगे थे। बाद में नीतीश ने उन्हें जेडीयू से निकाल कर दम लिया था। उसी तरह का खतरा नीतीश के सामने फिर पैदा हो गया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि नीतीश ने नाराजगी में अगर एनडीए से अलग होने का फैसला किया तो जेडीयू ही टूट जाएगा।

इन्हीं वजहों से इंडिया ब्लॉक में आरजेडी को छींका टूटने के आसार नजर आ रहे हैं। आरजेडी को उम्मीद है कि नीतीश ने नाराजगी में एनडीए छोड़ा तो इंडिया ब्लॉक में आने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचेगा। नीतीश के एनडीए छोड़ कर आरजेडी के साथ आने की बातें उसके विधायक भाई वीरेंद्र कह चुके हैं। वीरेंद्र की बातों पर लोगों को भरोसा इसलिए है कि वे लालू यादव के परिवार के करीबी बताए जाते हैं। तेजस्वी यादव तो तब से खेला होने की बात कह रहे हैं, जब नीतीश महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में शामिल हो गए थे।

जानकार लोगों का कहना है कि एनडीए में नीतीश की नाराजगी और नए साल में दही-चूड़ा भोज की तारीख करीब देख कर यह अनुमान लगाना स्वाभाविक है कि वे फिर पाला बदल करेंगे। ऐसा हुआ तो तीन संभावनाएं दिखती हैं। पहली यह कि नीतीश विधानसभा भंग कर चुनाव में जाएं। वे पहले से ही समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने की मांग करते रहे हैं। दूसरा कि एनडीए से अलग हों और इंडिया ब्लाक उनकी मर्जी के मुताबिक बाहर या भीतर से उन्हें सरकार बनाने में सहयोग करे। बिहार की सियासी हलचल खरमास खत्म होने तक बरकरार रहेगी। अगर नया कुछ होना होगा तो मकर संक्रांति से दिखाई देने लगेगा।नीतीश कुमार के पाला बदल लेने से भी एनडीए की सरकार गिर जाएगी, ये तो नीतीश कुमार या लालू यादव किसी को भी अंदाजा नहीं होगा। ये संभव भी तभी हो पाएगा जब नीतीश कुमार के साथ साथ चंद्रबाबू नायडू भी सपोर्ट वापस लेने का फैसला करें। लेकिन उसके बदले उनको क्या मिलेगा, ये भी सवाल है। नायडू भी इतने दिनों से राजनीति में हैं, प्रधानमंत्री बनने की तो उनकी भी ख्वाहिश होगी ही।

नीतीश कुमार को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि जेडीयू के हटने पर ममता बनर्जी एनडीए का सपोर्ट कर सकती हैं। जिस तरीके से बीजेपी ने ममता बनर्जी के प्रति नरम रुख अपना रखा है, तृणमूल कांग्रेस नेता ने भी अपना प्लान-बी तो तैयार ही रखा होगा। वैसे भी कहने भर को ही ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक में हैं। अगर ममता बनर्जी सरकार में शामिल न भी होना चाहें, तो बाहर से तो सपोर्ट कर ही सकती हैं।

देखा जाये तो नीतीश कुमार एनडीए के साथ ही सर्वोत्तम स्थिति में हैं। बेहतर ये होगा कि अब वो पुरानी ‘गलती’ दोहराने से परहेज करें। क्योंकि, आगे से ये बोलने का भी मौका नहीं मिलेगा कि ‘अब कहीं नहीं जाएंगे। गलती हो गई थी, चले गये थे।’

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