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Friday, September 5, 2025

कब से शुरू होंगे पितृपक्ष 2025? जानें तिथि

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पितृ पक्ष (Pitru Paksha) 2025 के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्म किए जाते हैं, इस समय पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखते हैं, इस अवधि में पवित्र नदियों में स्नान करना और जरूरतमंदों को दान देना विशेष फलदायी माना जाता है, पितृ पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की कृपा जीवन में सुख-शांति लाती है।

इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025, रविवार को हो रही है, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर को देर रात 01:41 बजे प्रारंभ होगी और इसी दिन रात 11:38 बजे समाप्त हो जाएगी, ऐसे में 7 सितंबर से ही पितृ पक्ष की विधिवत शुरुआत मानी जाएगी, पितृ पक्ष का समापन 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा, पितृ पक्ष 2025 की तारीखें निम्नलिखित हैं।

रविवार, 7 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
सोमवार, 8 सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
मंगलवार, 9 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध
बुधवार, 10 सितंबर- तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध
गुरुवार, 11 सितंबर- पंचमी श्राद्ध, महा भरणी
शुक्रवार, 12 सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
शनिवार, 13 सितंबर- सप्तमी श्राद्ध
रविवार, 14 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध
सोमवार, 15 सितंबर- नवमी श्राद्ध
मंगलवार, 16 सितंबर- दशमी श्राद्ध
बुधवार, 17 सितंबर- एकादशी श्राद्ध
गुरुवार, 18 सितंबर- द्वादशी श्राद्ध
शुक्रवार, 19 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
शनिवार, 20 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
रविवार, 21 सितंबर- सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध
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पितृ पक्ष का महत्व – पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, एक 16 दिनों की अवधि है जो हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित है, यह भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है, इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कर्म किए जाते हैं, इन दिनों पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा लेकर आते हैं, जो संतान श्रद्धा भाव से उनका स्मरण और तर्पण करती है, उन्हें पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

इससे पितृ दोष दूर होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है, इस काल में गंगा स्नान, ब्राह्मण भोज और दान करना पुण्यदायी होता है, पितरों की संतुष्टि से वंश में समृद्धि, संतान सुख और कुल की उन्नति संभव होती है, इसलिए पितृ पक्ष को श्रद्धा और आस्था से मनाना अत्यंत आवश्यक है।

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