लखनऊ। देश की सबसे बड़ी सरकारी उर्वरक कंपनियों में शामिल हिन्दुस्तान उर्वरक रसायन लिमिटेड, आज गलत वजहों से सुर्खियों में है। जिस संस्थान से देश के किसानों को खाद मुहैया कराने की उम्मीद थी, उसी में अब अरबों की बंदरबांट और घोटालों की बू आ रही है। अफ़सरों ने मानो इस संस्थान को अपनी जागीर बना लिया है, और जब जवाबदेही की बात आती है, तो बलि का बकरा बनाया जाता है सिर्फ निचले दर्जे के कर्मचारियों को।
एचयूआरएल से जुड़े सूत्रों के अनुसार, टॉप मैनेजमेंट स्तर पर टेंडर सेटिंग, सप्लायर अप्रूवल और फंड रिलीज़ जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं पहले से ही तय होती हैं। इसमें नियमों की अनदेखी कर कुछ खास कंपनियों को ठेके दिए जाते हैं और बदले में मोटी रकम की वसूली की जाती है। लेकिन जैसे ही जांच शुरू होती है, पहला वार उन कर्मचारियों पर होता है जिनकी भूमिका महज़ दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने की होती है।
कई कर्मचारियों को निलंबन, अनुशासनात्मक कार्रवाई या जबरन इस्तीफे का सामना करना पड़ा, जबकि वे सिर्फ ऊपरी आदेशों का पालन कर रहे थे।
जिन अफसरों के इशारे पर ये तमाम प्रक्रियाएं चलती हैं, वे एयर-कंडीशन्ड कमरों में बैठकर मुस्कुराते रहते हैं और उनका नाम तक जांच के दायरे में नहीं आता।
कई कर्मचारियों का कहना है कि संस्थान के अंदर डर और निराशा का माहौल है। कर्मचारियों को यह आशंका सताने लगी है कि ईमानदारी और निष्ठा अब इस सिस्टम में सबसे बड़ा अपराध बन चुकी है। आज किसी भी निर्दोष को बिना गलती के ही बलि चढ़ाया जा सकता है, और वह भी सिर्फ इसीलिए कि वह सबसे आसान निशाना है।
इस स्थिति में सवाल उठता है कि जब पूरे सिस्टम की जड़ें ही सड़ चुकी हों, तो किसी एक जांच या कार्रवाई से क्या सुधार हो सकता है? क्या वाकई इस देश में ‘गुड गवर्नेंस’ का सपना इन घोटालों की आँच से बचा रह सकता है?
सरकारी तंत्र में बैठे बड़े लोगों की मिलीभगत की वजह से असली गुनहगार हर बार बच निकलते हैं। निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी, जो सच्चाई के सबसे करीब होते हैं, उन्हें ही हर बार कुर्बानी देनी पड़ती है।
(अगले अंक में: HURL के टॉप मैनेजमेंट में बैठे उन चेहरों की परतें खोलेंगे जिन पर करोड़ों की हेराफेरी, पद के दुरुपयोग और नेटवर्किंग के ज़रिए जांच से बच निकलने के गंभीर आरोप हैं।)