शरद कटियार
औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा गया पत्र, प्रदेश की नौकरशाही की बेलगाम और निरंकुश मानसिकता की पोल खोलता है। यह कोई मामूली विवाद नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल ढांचे पर करारा तमाचा है जहाँ अफसर चुने हुए मंत्री की भी नहीं सुनते, और अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी मशीनरी का खुलेआम दुरुपयोग करते हैं।
सोचिए, जब प्रदेश का एक ताकतवर कैबिनेट मंत्री खुद को “असहाय” महसूस करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखे, तो यह एक संकेत नहीं, चेतावनी है। दो-दो साल तक फाइलें दबाना, आदेशों की अनदेखी करना, अपने लोगों को अनुचित लाभ पहुंचाना ये सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि सत्ता का घोर अपमान है।
क्या नौकरशाही अब इतनी ताकतवर हो गई है कि मंत्री भी उसे “पुकारते” रह जाएं और वो आंख उठाकर देखे भी नहीं? आज जो अफसर मंत्री की बात नहीं मानते, वे कल मुख्यमंत्री की भी नहीं सुनेंगे। जब निर्णय फाइलों में दबकर सड़ जाएं और अफसर अपनी मर्जी से शासन चलाएं, तो यह लोकतंत्र नहीं, अफसरतंत्र कहलाता है।
और यही हो रहा है योजनाओं का दम घुट रहा है, विकास ठप है, और शासन की साख रसातल में जा रही है।मंत्री के इतने गंभीर आरोपों के बावजूद यदि मुख्यमंत्री स्तर से अब तक सिर्फ ‘जवाब तलब’ की खानापूर्ति हो रही है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है क्या सरकार वाकई मंत्री के साथ है या बेलगाम अफसरशाही के आगे समर्पण कर चुकी है?अब सिर्फ जांच नहीं, कड़ी कार्रवाई चाहिए वरना “डबल इंजन सरकार” का एक पहिया यहीं जाम हो जाएगा।
जो मंत्री फाइल नहीं चला पा रहे, वे जनता के हक क्या दिलवाएंगे? अगर सत्ता के अंदर ही अफसर ‘राज’ चलाने लगें, तो जनता का लोकतंत्र में विश्वास किस बात पर रहेगा?साफ शब्दों में कहें तो अगर अब भी सरकार ने अफसरशाही की लगाम नहीं खींची, तो वो दिन दूर नहीं जब मंत्री भी खुद को विभागीय कठपुतली ही समझें। और जनता? वो तो हमेशा की तरह ठगी ही जाएगी।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के प्रधान संपादक है।