शरद कटियार
उत्तर प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक प्रणाली इन दिनों एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां ‘सुशासन’ बनाम ‘सत्ता संरक्षित अपराध’ का संघर्ष खुलकर सामने आने लगा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति को प्रमुखता से लागू किया। लेकिन जब सत्ता के भीतर से ही इस नीति को चुनौती मिलने लगे, जब जनप्रतिनिधि स्वयं माफिया तंत्र के संरक्षणदाता बन जाएं, तब यह नीति खोखली प्रतीत होने लगती है। फर्रुखाबाद जिले के भोजपुर विधानसभा क्षेत्र में घटित हालिया घटनाक्रम इसी ओर संकेत कर रहे हैं।
भोजपुर से भाजपा विधायक नागेंद्र सिंह राठौर पर लगे आरोप बेहद गंभीर और चिंता जनक हैं। बताया जा रहा है कि विधायक राठौर समाजवादी पार्टी के शासनकाल में कुख्यात रहे माफिया रामेश्वर सिंह यादव और उसके बेटे सुबोध यादव के करीबी गुर्गों को संरक्षण दे रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से जिला पंचायत सदस्य आदित्य सिंह राठौर उर्फ ए.के. राठौर, जितेंद्र कटियार उर्फ रिंकू और उनका गैंग शामिल है, जो खुलेआम दबंगई और गुंडागर्दी करता नजर आ रहा है।
यह बात और भी अधिक चिंताजनक है कि इन गुर्गों पर भूमाफिया, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट जैसी गंभीर धाराओं में पहले भी कार्रवाई हो चुकी है। बावजूद इसके, जातिगत समीकरणों और राजनीतिक स्वार्थ के चलते विधायक ने इन्हें संरक्षण देना उचित समझा। सवाल यह है कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए कानून का मजाक उड़ाना अब सामान्य व्यवहार बन गया है?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अधिक चिंताजनक पहलू है पत्रकारों पर हो रहे जानलेवा हमले और लगातार मिल रही धमकियां। हम ‘यूथ इंडिया’ मे पिछले कई वर्षों से निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं, इन माफियाओं के निशाने पर आ गए हैं। हमारी टीम ने माफिया तंत्र के खिलाफ खबरें प्रकाशित करनी शुरू कीं, तभी से हमे और साथियों को धमकियां मिलने लगीं।
जहानगंज क्षेत्र में स्थित गैस एजेंसी के मालिक सौरभ कटियार पर जानलेवा हमला इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस हमले में आदित्य राठौर, जितेंद्र रिंकू , और उनके सहयोगियों के नाम सामने आए हैं। यद्यपि पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की, परंतु विधायक के कथित दबाव में इस केस की लीपापोती की जा रही है। यह न सिर्फ कानून व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि सत्ता संरक्षित अपराध किस हद तक पुलिस को प्रभावित कर सकता है।
सरकारी सुरक्षा हटवाने की साजिश
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि माफिया अनुपम दुबे के इशारे पर शरद कटियार को मिली सरकारी सुरक्षा तक हटा ली गई। बताया जाता है कि शासन स्तर से सुरक्षा की संस्तुति के बावजूद, विधायक राठौर के दबाव में जिला प्रशासन ने भ्रम फैलाकर सुरक्षा हटवाई। इतना ही नहीं, हमारी लाइसेंसी रिवॉल्वर का नवीनीकरण (रिनुअल) भी रोक दिया गया, जिससे उनकी सुरक्षा और अधिक संकट में पड़ गई।
इस घटनाक्रम से यह संदेश स्पष्ट होता है कि सत्ता में बैठे कुछ लोग न केवल अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं, बल्कि उन लोगों की आवाज भी दबाना चाहते हैं, जो इनके खिलाफ बोलने का साहस रखते हैं।
विधायक के करीबी ठाकुर कृष्ण कुमार राजावत उर्फ कल्लू द्वारा सोशल मीडिया पर डाली गई धमकी भरी वीडियो ने इस पूरे मामले को और अधिक जटिल बना दिया है। इस वीडियो में स्पष्ट रूप से शरद कटियार को धमकियां दी गई हैं। अपर पुलिस महानिदेशक ने इस वीडियो का संज्ञान लिया और कार्रवाई के निर्देश भी दिए, लेकिन स्थानीय पुलिस अब तक हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
प्रश्न यह है कि जब सोशल मीडिया जैसे खुले मंच पर धमकियां दी जा रही हैं और सबूत सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, फिर भी अगर कार्रवाई नहीं होती, तो आम जनता किससे न्याय की उम्मीद करे?
सत्ता और माफिया का गठजोड़
विधायक राठौर की निकटता कुख्यात माफिया अनुपम दुबे और उसके गुर्गों — अनुराग डब्बन, अमित बब्बन आदि से भी है। इन माफियाओं के खिलाफ ‘यूथ इंडिया’ ने जब भी खबरें प्रकाशित कीं, तब-तब शरद कटियार और उनकी टीम पर दबाव बनाने की कोशिशें की गईं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुनियोजित साजिश के तहत पत्रकारिता की स्वतंत्रता को कुचला जा रहा है।
इतना ही नहीं, विधायक और उनका गैंग अब कुछ कम उम्र युवाओं जैसे अमन राजावत, हर्ष सोमवंशी, सर्वेंद्र सिंह आदि को भड़काकर किसी बड़ी हिंसक घटना को अंजाम देने की योजना बना रहा है। यह भविष्य के लिए अत्यंत खतरनाक संकेत हैं।
हमने इस पूरे मामले के सबूतों के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है और हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे इन धमकियों से डरकर न तो पत्रकारिता बंद करेंगे और न ही माफिया तंत्र के सामने झुकेंगे। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर कोई आंच नहीं आने दी जाएगी।
अब प्रश्न यह है कि क्या मुख्यमंत्री कार्यालय इस चुनौती को स्वीकार करेगा? क्या विधायक राठौर के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर योगी सरकार यह साबित करेगी कि उसकी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति केवल नारों तक सीमित नहीं, बल्कि वह वास्तव में कानून के शासन को सर्वोपरि मानती है?
इस पूरे घटनाक्रम से यह भी सिद्ध होता है कि पत्रकारिता का चौथा स्तंभ आज किस कदर संकट में है। जब एक पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर माफियाओं के खिलाफ रिपोर्टिंग करता है, तो उसे सुरक्षा देने के बजाय उसकी सुरक्षा हटवा दी जाती है। जब वह न्याय की मांग करता है, तो उसे चुप कराने की साजिशें रची जाती हैं।
यह लोकतंत्र के लिए अत्यंत गंभीर और चिंताजनक संकेत हैं। यदि आज पत्रकारों को इस तरह खामोश किया गया, तो कल आम जनता की आवाज को भी दबा दिया जाएगा।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब यह जरूरी हो गया है कि योगी सरकार स्थिति का संज्ञान लेकर तत्काल और कठोर कार्रवाई करे। विधायक नागेंद्र सिंह राठौर के खिलाफ निष्पक्ष जांच हो, पीड़ित पत्रकारों को सुरक्षा दी जाए और जो माफिया तत्व सत्ता के संरक्षण में पल-बढ़ रहे हैं, उन पर प्रभावी कार्रवाई की जाए।
अन्यथा, ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति केवल एक राजनीतिक जुमला बनकर रह जाएगी और प्रदेश में माफिया तंत्र एक बार फिर से सिर उठाएगा। फर्रुखाबाद की जनता की निगाहें अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर हैं। यह वक्त है जब सरकार को यह सिद्ध करना होगा कि कानून सबके लिए समान है — चाहे वह आम नागरिक हो या सत्ताधारी विधायक।
पत्रकारों की आवाज को दबाने की हर कोशिश लोकतंत्र के गले पर छुरी चलाने जैसा होगा। यदि सत्ता का प्रयोग सच को कुचलने के लिए किया जाने लगे, तो फिर ‘रामराज्य’ की कल्पना ही व्यर्थ हो जाएगी। अब निर्णय मुख्यमंत्री को लेना है — न्याय का या सत्ता के दुरुपयोग का।