– अमृतपुर, कमालगंज, कायमगंज और कम्पिल क्षेत्र के ग्रामीण बेहाल, मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंची आवाज
फर्रुखाबाद। जनपद में गंगा नदी के तटवर्ती इलाकों में हर साल बाढ़ तबाही मचाती है, लेकिन वर्षों से प्रशासनिक लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता ने इसे एक स्थायी संकट बना दिया है। गंगापार क्षेत्र के अमृतपुर, कमालगंज, कायमगंज और कम्पिल ब्लॉकों के दर्जनों गांव इस समय फिर से बाढ़ के पानी से घिरे हैं, लेकिन न तो राहत सामग्री पहुंची है और न ही मुख्यमंत्री तक इन गांवों की स्थिति की कोई आधिकारिक जानकारी पहुंच पाई है।
बाढ़ का पानी तेजी से गंगापार के निचले गांवों में फैल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थिति हर साल बनती है, लेकिन सरकार की ओर से आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं किया गया।
इस वर्ष अब तक गंगापार के कई गांव प्रभावित होने कि कगार पर हैं। खेतों में खड़ी फसलें जलमग्न होने का खतरा हो चुका है , पशुओं के लिए चारे का संकट है और कच्चे मकानों में रहने वाले लोग ऊंची जगहों पर शरण लेने को मजबूर होते हैं।
अमृतपुर के करीव करीब 24 गांवों में गंगा का पानी भर जाता है
कमालगंज के कई गांवों में जलभराव से आवाजाही ठप हो जाती है।
कायमगंज के कई गांवों में बाढ़ का पानी घरों तक पहुंच जाता है।
कम्पिल के कई गांव प्रभावित होते हैं , लोग मवेशियों सहित स्कूलों व ऊंचे बांधों की ओर पलायन करने मक मजबूर होते हैं।
करीब 20,000 ग्रामीण सीधे बाढ़ से प्रभावित होते हैं।
1000 हेक्टेयर से अधिक फसल डूब जाती है।
15+ गांवों की सड़कें क्षतिग्रस्त या बह चुकीं होतीं हैं।
50 से अधिक स्कूल बंद होने की स्थिति में हो जाते हैं।
सैकड़ों पशु पानी व चारे के संकट से बेहाल होते हैं।
स्थानीय प्रशासन की ओर से हर बार की तरह इस साल भी सिर्फ नाव और बाढ़ राहत केंद्रों की व्यवस्था की खानापूर्ति की गई है। 2018 में सिंचाई विभाग ने 42 करोड़ रुपये की लागत से एक पक्का तटबंध प्रस्तावित किया था, जो आज भी स्वीकृति के लिए फाइलों में दबा पड़ा है।
ग्रामीणों का कहना है कि हर साल चुनावों में वोट मांगने आने वाले नेता, संकट के समय पूरी तरह गायब हो जाते हैं।
गंगापार के ईमादपुर गांव के बुजुर्ग रामनिवास का कहना है,
“जब गंगा का पानी चढ़ता है, तब हम प्रशासन को फोन करते हैं। अधिकारी आश्वासन देते हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिलती। पिछले तीन साल से हमारा घर हर बार डूब जाता है।
चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक किसी विधायक, सांसद या जिला स्तर के अधिकारी ने मुख्यमंत्री को इन इलाकों की गंभीर स्थिति से अवगत नहीं कराया है।
न तो कोई स्थलीय निरीक्षण हुआ है, न ही मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से कोई संज्ञान लिया गया है।
गंगापार क्षेत्र की यह स्थिति सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सरकारी और राजनीतिक असंवेदनशीलता का नतीजा है।
हर साल हजारों गरीब परिवार अपने घर, फसल और मवेशी गंवाते हैं, लेकिन नीतियों और राहत योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिलता।
“गंगा की धार में डूबती जिंदगी और नेताओं की चुप्पी—क्या इस बार कुछ बदलेगा?”