विधि व्यवस्था : न्याय और लोकतंत्र की रीढ़

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प्रशांत कटियार
किसी भी समाज की प्रगति और स्थिरता उसकी विधि व्यवस्था पर निर्भर करती है। विधि वह तंत्र है, जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, व्यवस्था बनाए रखता है और न्याय सुनिश्चित करता है। यदि समाज में कानून का सम्मान न हो तो वहां अराजकता और अन्याय फैलना तय है। इसलिए विधि को समाज की आत्मा और लोकतंत्र की रीढ़ कहा जाता है।
भारत का लोकतांत्रिक ढांचा पूरी तरह संविधान पर आधारित है। संविधान न केवल नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है, बल्कि उनके कर्तव्यों की भी याद दिलाता है। यही देश की सर्वोच्च विधि है, जिसके अनुरूप संसद कानून बनाती है, कार्यपालिका उन्हें लागू करती है और न्यायपालिका उनकी व्याख्या कर न्याय प्रदान करती है। इस व्यवस्था में नागरिकों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। जब तक आमजन कानून का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक सबसे अच्छा कानून भी बेअसर साबित हो सकता है।
इतिहास गवाह है कि विधि व्यवस्था के बिना समाज टिक नहीं पाता। प्राचीन काल में भी राजाओं और जनपदों ने नियम बनाए ताकि नागरिक अनुशासित रहें और समाज में संतुलन कायम रहे। आधुनिक लोकतंत्र में यह जिम्मेदारी संसद और न्यायपालिका पर है। इन संस्थाओं का दायित्व केवल कानून बनाना और लागू करना ही नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि वह कानून न्यायपूर्ण और समयानुकूल हो।
आज के समय में विधि के सामने नई चुनौतियां हैं। बीते दशकों में जहां चोरी, हत्या और धोखाधड़ी जैसे अपराध सबसे बड़े मुद्दे थे, वहीं अब साइबर अपराध, डेटा सुरक्षा, पर्यावरण संकट और लैंगिक असमानता जैसी जटिल समस्याएं सामने आ रही हैं। इंटरनेट और तकनीक ने जीवन को आसान बनाया है, लेकिन इसके साथ ही नए अपराध भी जन्मे हैं। यदि कानून समय के साथ न बदले तो वह अप्रासंगिक हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि विधि व्यवस्था हमेशा समाज और तकनीकी विकास के साथ तालमेल बैठाए।
विधि का अंतिम उद्देश्य केवल अपराधियों को दंडित करना नहीं है। इसका सबसे बड़ा मकसद न्याय की स्थापना है। यदि कानून न्याय दिलाने में विफल हो जाए तो उसकी प्रासंगिकता खत्म हो जाती है। कई बार प्रक्रियात्मक जटिलताओं के कारण आम नागरिक को वर्षों तक न्याय के लिए इंतजार करना पड़ता है। न्याय में देरी भी एक प्रकार का अन्याय है। यही कारण है कि न्यायविद हमेशा कहते हैं कि कानून तभी तक उपयोगी है, जब तक वह न्याय सुनिश्चित कर रहा हो।
नागरिकों और सरकार, दोनों की यह जिम्मेदारी है कि विधि को जीवंत और प्रभावी बनाए रखें। नागरिकों को चाहिए कि वे कानून का पालन करें और शासन तंत्र पर भरोसा रखें। वहीं, सरकार और न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून सभी पर समान रूप से लागू हो और किसी के साथ भेदभाव न हो।
अंततः यही कहा जा सकता है कि विधि किसी भी सभ्य समाज की रीढ़ है। यह लोकतंत्र को मजबूत बनाती है, नागरिकों को सुरक्षा देती है और समाज में शांति कायम रखती है। यदि विधि व्यवस्था मजबूत, न्यायपूर्ण और समयानुकूल होगी तो नागरिकों का भरोसा भी उसी अनुपात में बढ़ेगा। एक मजबूत और प्रभावी विधि ही वह नींव है, जिस पर न्यायपूर्ण और प्रगतिशील भारत का निर्माण संभव है।

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