सदियों से सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके वट सावित्री व्रत की परंपरा निभाती और अपने पति की लंबी उम्र की कामना यम देव से करती आ रही हैं। सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत की महिमा का बखान शास्त्रों में मिलता है। हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन आने वाला ये व्रत इस साल 26 मई को रखा जाएगा। ये व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विधान है। इस वर्ष सोमवती अमावस्या, वट सावित्री के साथ शनि जयंती भी इसी दिन पड़ रहे हैं जो इस दिन को और भी खास बना देता है।
हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा का खासा महत्व है। सनातन में वैसे भी बरगद के पेड़ को पूज्यनीय बताया गया है ऐसे में इस खास दिन इसकी पूजा का इतना महात्मय क्यों हैं, इन सारे सवालों के जवाब हमें हिंदू पौराणिक कथाओं के माध्यम से जरूर मिल जाते हैं। कहा जाता है बड़ के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास है। बरगद के पेड़ की जड़ें ब्रह्मा, तना विष्णु, और शाखाएं शिव का प्रतिनिधित्व करती हैं।बरगद के पेड़ को चिरंजीवी माना जाता है क्योंकि बरगद का पेड़ चिर आयु है। माना जाता है कि बरगद के वृक्ष की पूजा करने से पति की लंबी उम्र का वरदान मिलता है और दाम्पत्य जीवन में सुख प्राप्त होता है।
कब रखा जाएगा वट सावित्री व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि की 26 मई को दोपहर 12 बजकर 12 मिनट पर शुरु होकर 27 मई को सुबह समाप्त हो जायेगी। वैसे तो उदया तिथि के हिसाब से ये 27 तारीख की होती है लेकिन शास्त्र ज्ञाताओं की मानें तो दोपहर में अमावस्या का होना अनिवार्य है ऐसे में ये व्रत 26 तारीख को ही रखा जाना है लेकिन इस दिन पूजा के लिए आपको दोपहर 12 बजकर 12 मिनट के बाद का समय ही चुनना होगा।
कई दुर्लभ संयोग एक साथ
इस साल वट सावित्री व्रत पर कई दुर्लभ संयोग बन रहे हैं जैसे इसी दिन सोमवती अमावस्या है और 26 मई को ही शनि जयंती भी मनाई जाएगी इन सब तिथियों के मेल से बेहद शुभ योग का निर्माण हो रहा है। सोमवती अमावस्या को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। इस दिन तुलसी की फेरी लगाने का भी विधान है।
महिलाएं इस दिन तुलसी की 108 परिक्रमा लगाकर कुछ ना कुछ दान करती है। वहीं शनि अमावस्या पर पूजा से शनि देव का आशीर्वाद मिलता है। यही कारण है कि इस साल वट सावित्री का व्रत बहुत शुभ माना जा रहा है।
इस दिन का पौराणिक महत्व
इस दिन के महत्व को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं उसी में एक है कि इस दिन सावित्री ने अपने तप से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिये थे। तभी से इस व्रत की शरुआत हुई।
महिलाएं सावित्री की तरह अपनी पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। मान्यता है सावित्री की तरह इस व्रत को करने से उन्हें सुखी दाम्पत्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।