– गंदे नाले अब भी सीधे गंगा में गिर रहे, श्रद्धालु बोले – नमामि गंगे केवल दिखावा, नहीं दिख रहा जमीन पर असर
फर्रुखाबाद। केंद्र सरकार की बहुचर्चित ‘नमामि गंगे’ योजना को लेकर फर्रुखाबाद में बड़े-बड़े दावे किए गए। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। 261 करोड़ रुपये की लागत से बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) और इंटरसेप्शन-डाइवर्जन नेटवर्क के बावजूद गंगा नदी में गंदा पानी गिरना बंद नहीं हुआ। घाटों की हालत खस्ताहाल है, जिससे श्रद्धालुओं की आस्था के साथ-साथ जान को भी खतरा है।
फर्रुखाबाद के पंचालघाट और भैरोघाट जैसे प्रमुख स्थानों पर नमामि गंगे योजना के अंतर्गत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) बनाया गया था, जिसकी क्षमता 47.70 एमएलडी है। अप्रैल 2025 में इसका उद्घाटन बड़े जोर-शोर से हुआ था। लेकिन कुछ ही महीनों में यह योजना सवालों के घेरे में आ गई है। गंगा में गंदे नाले अब भी गिर रहे हैं और झागदार पानी की स्थिति वैसी ही बनी हुई है।
अक्टूबर 2024 में भैरोघाट पर हजारों मछलियों की एक साथ मौत हो गई थी। स्थानीय निवासियों के मुताबिक, यह सब जल प्रदूषण के कारण हुआ। नमामि गंगे योजना के तहत बनाई गई संरचनाएं पूरी तरह से फेल होती नजर आ रही हैं। गंगा के किनारे बहता पानी बदबूदार और केमिकल युक्त दिखाई देता है।
स्थानीय घाटों की मरम्मत पिछले कई वर्षों से नहीं हुई। पांचालघाट और अन्य घाटों पर सीढ़ियां टूट चुकी हैं, रेलिंग जंग खा चुकी है और सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है। बारिश के दिनों में घाटों पर फिसलन और कीचड़ की वजह से कई श्रद्धालु चोटिल भी हो चुके हैं।
STP लागत ₹261 करोड़
ट्रीटमेंट क्षमता 47.70 MLD
राष्ट्रीय बजट ₹20,000 करोड़ से अधिक,उपयोग हुआ बजट 69%
ट्रीटमेंट लक्ष्य 7000 MLD
अब तक तैयार 3644 MLD (52%) ही है।
गंगा की सफाई की गुणवत्ता फर्रुखाबाद अब भी फेल। इस मामले मे अनिल शर्मा (स्थानीय निवासी):”गंगा को साफ करने के नाम पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं, लेकिन आज भी वही गंदगी, वही बदबू है। नमामि गंगे सिर्फ पोस्टर पर अच्छा लगता है।”
विमला देवी (श्रद्धालु):
“हम रोज स्नान करने आते हैं, पर घाट की हालत देखकर डर लगता है। कहीं फिसल न जाएं, या बीमार न पड़ जाएं।”
पंकज मिश्रा (समाजसेवी):
“हमने कई बार नगर निगम से शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। नमामि गंगे केवल खर्चों का खेल बनकर रह गया है।”
नमामि गंगे परियोजना का उद्देश्य गंगा को निर्मल बनाना था, लेकिन फर्रुखाबाद में इसके उलट परिणाम देखने को मिल रहे हैं। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद न तो गंगा साफ हुई और न ही घाटों की मरम्मत हो सकी। जिम्मेदार विभागों की चुप्पी और निगरानी की कमी से यह योजना विफल होती नजर आ रही है।