ट्रंप सरकार का बड़ा फैसला: एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर शुल्क, भारतीय आईटी सेक्टर पर संकट गहराया

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वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा को लेकर बड़ा और कड़ा कदम उठाया है। उन्होंने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए घोषणा की कि अब अमेरिका जाने वाले हर पेशेवर को एच-1बी वीजा के तहत एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) का अतिरिक्त शुल्क देना होगा। यह आदेश एक साल के लिए लागू रहेगा, लेकिन प्रशासन ने संकेत दिया है कि जरूरत पड़ने पर इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा क्योंकि वे एच-1बी वीजा पर काफी हद तक निर्भर हैं। उदाहरण के तौर पर साल 2025 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को 5,505, इन्फोसिस को 2,004, विप्रो को 1,523 और टेक महिंद्रा अमेरिका को 951 वीजा मिले। वहीं अमेरिकी कंपनियों में अमेजन को सबसे ज्यादा 10,044, माइक्रोसॉफ्ट को 5,189, मेटा को 5,123, एप्पल को 4,202 और गूगल को 4,181 वीजा जारी किए गए।

ट्रंप प्रशासन का कहना है कि एच-1बी वीजा सिस्टम का लगातार दुरुपयोग हो रहा है। कई कंपनियां सस्ते विदेशी कर्मचारियों को लाकर अमेरिकी वर्कफोर्स की नौकरियां छीन रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2000 से 2019 के बीच अमेरिका में विदेशी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) वर्कर्स की संख्या 1.2 मिलियन से बढ़कर 2.5 मिलियन हो गई। कंप्यूटर और मैथ से जुड़ी नौकरियों में विदेशी वर्कर्स की हिस्सेदारी भी 17.7% से बढ़कर 26.1% हो गई है। यही नहीं, कुछ कंपनियों के उदाहरण भी दिए गए हैं जिनमें यह स्पष्ट हुआ कि वीजा मिलने के बावजूद अमेरिकी कर्मचारियों को बड़े पैमाने पर निकाला गया। एक कंपनी को 5,000 से अधिक एच-1बी वीजा मिले लेकिन उसने 15,000 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी कर दी। दूसरी कंपनी को 1,700 वीजा मिलने के बावजूद 2,400 कर्मचारियों की नौकरियां खत्म कर दी गईं। यहां तक कि एक तीसरी कंपनी ने 2022 से अब तक 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों को निकाला लेकिन उसे 25,000 से ज्यादा एच-1बी वीजा मिले।

इस नए आदेश के बाद भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका जाना और वहां नौकरी पाना और कठिन हो जाएगा। अब किसी भी आईटी कर्मचारी को अमेरिका भेजने के लिए कंपनी या कर्मचारी को एक लाख डॉलर का शुल्क देना होगा। इससे कई कंपनियां अपने भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका भेजने के बजाय घरेलू प्रोजेक्ट्स पर तैनात करने को मजबूर हो सकती हैं। दिल्ली की आईटी प्रोफेशनल स्मृति सिंह, जो अमेरिका में नौकरी का सपना देख रही थीं, कहती हैं— “पहले ही अमेरिका जाने के लिए वीजा प्रक्रिया कठिन थी। अब इतना भारी शुल्क लगने के बाद यह आम पेशेवरों के लिए लगभग असंभव जैसा हो जाएगा।”

भारतीय आईटी कंपनियों में भी चिंता का माहौल है। इन्फोसिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह कदम सीधे तौर पर भारत जैसे देशों के आईटी टैलेंट को प्रभावित करेगा। वहीं विप्रो ने बयान जारी कर कहा कि यह आदेश वैश्विक आईटी सेक्टर में अनिश्चितता को और बढ़ाएगा। टीसीएस ने आधिकारिक तौर पर कहा कि कंपनी हालात पर नजर रखे हुए है और क्लाइंट्स की जरूरत के हिसाब से अपनी भर्ती रणनीति में बदलाव करेगी। जबकि टेक महिंद्रा ने इसे “ग्लोबल टैलेंट मोबिलिटी पर आघात” बताया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अमेरिकी चुनावी राजनीति से भी जुड़ा है। ट्रंप प्रशासन स्थानीय रोजगार को सुरक्षित दिखाने के लिए यह कदम उठा रहा है। हालांकि इससे भारतीय आईटी कंपनियों को भारी वित्तीय नुकसान हो सकता है क्योंकि अमेरिका उनका सबसे बड़ा बाजार है। आने वाले महीनों में भारतीय आईटी सेक्टर को अपनी रणनीति, निवेश और वर्कफोर्स पॉलिसी में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं। वहीं भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिकी सपनों की राह और मुश्किल हो गई है।

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