सरकारी व्यवस्था जानबूझकर की गई ध्वस्त, प्राइवेट संस्थानों पर खुलकर मेहरबानी
हृदेश कुमार
फर्रुखाबाद: जनपद का स्वास्थ्य विभाग (health department) इन दिनों खुद ही वेंटिलेटर पर है। सरकारी अस्पतालों और योजनाओं को धीरे-धीरे पंगु बनाकर, प्राइवेट संस्थानों को लाभ पहुंचाने का जो खेल चल रहा है, वह किसी सुनियोजित साजिश से कम नहीं। सिस्टम की कमजोरी का फायदा उठा रहे अफसरों और ठेकेदारों के गठजोड़ ने जनसेवा को मुनाफे का धंधा बना डाला है।
जिले में कुल 27 “108” एम्बुलेंस उपलब्ध हैं, जिनमें से 13 एम्बुलेंस खराब हालत में खड़ी हैं। महीनों से उनकी मरम्मत तक नहीं कराई गई। वहीं दूसरी ओर, रेफरल के नाम पर निजी एम्बुलेंस सेवा प्रदाताओं को हर महीने ₹8 से ₹10 लाख तक का भुगतान किया जा रहा है। सवाल ये उठता है कि जब सरकारी एम्बुलेंस मौजूद हैं, तो जनता के टैक्स के पैसे से प्राइवेट जेबें क्यों भरी जा रही हैं?
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘जननी सुरक्षा योजना’ भी जिले में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। बीते छह महीनों में सरकारी अस्पतालों में प्रसव का प्रतिशत घटकर 38% पर आ गया है, जबकि निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा 61% के पार पहुंच गया है। सूत्रों के अनुसार, अधिकांश महिलाएं बिना कारण बताए प्राइवेट संस्थानों को रेफर कर दी जाती हैं — ताकि वहां मोटी बिलिंग हो सके।
जिले के सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ब्लड, यूरिन व शुगर जैसी सामान्य जांचों के लिए आधुनिक मशीनें उपलब्ध हैं, लेकिन इनका उपयोग नहीं हो रहा। इसके बावजूद हर महीने लगभग ₹5 से ₹7 लाख की जांचें बाहर की प्राइवेट लैब्स को दी जा रही हैं। मरीज को मुफ्त में सुविधा देने का दावा करने वाला विभाग, असल में बाहर के ठेकेदारों के लिए कमाई का रास्ता बन गया है।
जिले में कुल 52 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 17 पद रिक्त हैं। वहीं कुछ डॉक्टरों की पोस्टिंग ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई जा रही है, लेकिन वह ड्यूटी शहर में कर रहे हैं। नाम गाँव का, काम शहर का — यह भी एक नया ‘फॉर्मूला’ बन गया है, जिसमें अधिकारियों की मौन सहमति शामिल है। 2024-25 में ₹1.4 करोड़ की दवाएं खरीदी गईं, लेकिन 70% दवाएं अभी भी गोदाम में पड़ी हुई हैं। इनमें से कई दवाएं एक्सपायरी के करीब हैं। दूसरी ओर अस्पतालों में मरीजों को “स्टॉक नहीं है” कहकर टरकाया जा रहा है। यह खेल सीएमएस और सप्लाई एजेंसियों की मिलीभगत का संकेत देता है।
जनता सवाल पूछ रही है कि आखिर कब इस भ्रष्ट और मुनाफाखोर सिस्टम का इलाज होगा? क्या सरकारी अस्पतालों को जानबूझकर बर्बाद किया जा रहा है ताकि प्राइवेट अस्पतालों को ‘बूस्टर डोज़’ दिया जा सके? और सबसे अहम सवाल – क्या किसी की जिम्मेदारी तय की जाएगी या यह भी किसी फाइल में दबा दिया जाएगा? यह सिर्फ घोटाले की रिपोर्ट नहीं, आम जनता की जान की कीमत पर खेला जा रहा खेल है — जिसे अब सामने लाना जरूरी है।